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India News (इंडिया न्यूज), Hayagriva: श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन हयग्रीव जयंती मनाई जाती है, और इसे भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से 16वां अवतार माना जाता है। इस विशेष अवतार की पूजा दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल में प्रचलित है। मान्यता है कि भगवान हयग्रीव ने वेदों को ब्रह्मा जी को पुनः प्रदान किया था। इस वर्ष, हयग्रीव जयंती 19 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी।
हयग्रीव अवतार के संबंध में दो प्रमुख कथाएं हैं:
मधु और कैटभ नामक दो शक्तिशाली राक्षसों ने ब्रह्मा जी से वेदों का हरण कर लिया और उन्हें रसातल में ले गए। वेदों का हरण होने से ब्रह्मा जी अत्यंत दुखी हो गए और भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने हयग्रीव अवतार लिया, जिसमें उनकी गर्दन और मुख घोड़े के समान थे। हयग्रीव ने रसातल में जाकर मधु और कैटभ का वध किया और वेदों को पुनः ब्रह्मा जी को सौंपा।
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एक समय भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी के सुंदर रूप को देखकर मुस्कुराए। देवी लक्ष्मी ने यह समझा कि भगवान उनका उपहास कर रहे हैं और उन्होंने शाप दे दिया कि भगवान का सिर धड़ से अलग हो जाए। यह एक दिव्य खेल था।
जब भगवान विष्णु थक गए, उन्होंने अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे पृथ्वी पर टिकाया और बाण की नोक पर अपना सिर रखकर योग निंद्रा में सो गए। इस समय, हयग्रीव नामक एक असुर महामाया की तपस्या कर रहा था और उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन प्राप्त हुए। महामाया ने हयग्रीव से वर मांगने को कहा, तो उसने अमरता का वरदान मांगा। माता ने कहा कि संसार में कोई भी अमर नहीं हो सकता, इसलिए उसने अपने मरण का कारण हयग्रीव को बताया।
असुर हयग्रीव ने ब्रह्मा जी से वेदों को छीन लिया और देवताओं व मुनियों को परेशान करना शुरू कर दिया। यज्ञ और अन्य धार्मिक क्रियाएं बंद हो गईं, जिससे त्राहि-त्राहि मच गई। देवता और ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की सहायता के लिए प्रार्थना की, लेकिन भगवान योगनिद्रा में निमग्न थे। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को जगाने के लिए एक वम्री कीड़ा उत्पन्न किया, जिसने धनुष की प्रत्यंचा काट दी। इस प्रक्रिया में भगवान विष्णु का सिर कट गया और अदृश्य हो गया।
देवताओं ने महामाया की स्तुति की, और माता ने उन्हें आश्वस्त किया कि चिंता न करें। ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का सिर काटकर भगवान विष्णु के धड़ से जोड़ दिया, जिससे हयग्रीव अवतार प्रकट हुआ। हयग्रीव ने भगवान विष्णु ने अपने नए रूप में दैत्य हयग्रीव से युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया। इस प्रकार, वेदों को पुनः ब्रह्मा जी को सौंपा गया और देवताओं व मुनियों को संकट से मुक्ति मिली।
इस प्रकार हयग्रीव अवतार ने धर्म की रक्षा की और वेदों की सुरक्षा सुनिश्चित की।
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