India News (इंडिया न्यूज), Karna In Mahabharat: महाभारत की कथा में जब भी महान योद्धाओं का जिक्र होता है, तो कर्ण का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। कर्ण, जिनका जन्म सूर्य देव के आशीर्वाद से हुआ था, अद्वितीय धनुर्धर और महान योद्धा थे। बावजूद इसके, उन्हें जीवनभर हर मोड़ पर खुद को साबित करना पड़ा और अपमान सहना पड़ा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों कर्ण को इतनी समस्याओं का सामना करना पड़ा?
इस सवाल का जवाब हमें उनके पूर्वजन्म की कहानी में मिलता है। सतयुग में एक राक्षस था, जिसका नाम था दुरदुम्भ। इस राक्षस को एक अद्वितीय वरदान प्राप्त था कि उसे कोई नहीं मार सकता, केवल वही उसे पराजित कर सकता है जिसने सौ वर्षों तक तपस्या की हो। इतना ही नहीं, राक्षस को सूर्य देव से एक अजेय कवच और कुंडल का भी वरदान मिला था। इस वरदान की वजह से जो भी उसका कवच तोड़ेगा, उसकी स्वयं मृत्यु हो जाएगी।
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दुरदुम्भ राक्षस के अत्याचार
दुरदुम्भ राक्षस के अत्याचार से त्रस्त होकर देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने सबको नर-नारायण के पास जाने का परामर्श दिया। नर-नारायण ने देवताओं को राक्षस से मुक्ति दिलाने का वचन दिया। युद्ध शुरू हुआ और पहले नर ने राक्षस से लड़ाई की। उन्होंने राक्षस का कवच तोड़ दिया, लेकिन इसी कारण उनकी मृत्यु हो गई।
नर के बलिदान के बाद नारायण युद्धभूमि में उतरे। उन्होंने अपनी शक्ति और तपस्या के फल से नर को पुनर्जीवित किया, और दूसरी बार राक्षस का कवच तोड़ा। यह सिलसिला चलता रहा, हर बार नर का जीवन समाप्त होता और नारायण उसे तपस्या के फल से पुनर्जीवित कर देते। इस प्रकार उन्होंने राक्षस के 99 कवच-कुंडल तोड़ दिए।
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खो दिए जब कवच-कुंडल?
जब दुरदुम्भ ने अपने अधिकांश कवच-कुंडल खो दिए, तो वह घबराकर सूर्य देव के पास चला गया और उनकी शरण में छिप गया। सूर्य देव ने नर-नारायण से राक्षस की रक्षा करने की प्रार्थना की। इस पर नारायण ने कहा कि यह राक्षस अगले जन्म में सूर्य की रोशनी से द्वापर युग में जन्म लेगा। तब भी उसके पास कवच और कुंडल होंगे, लेकिन आवश्यक समय पर वे उसके किसी काम नहीं आएंगे।
द्वापर युग
द्वापर युग में वही राक्षस कर्ण के रूप में जन्मा। कर्ण के पास भी जन्म से ही अजेय कवच-कुंडल थे, जो उन्हें सूर्य देव से मिले थे। लेकिन, महाभारत के युद्ध से पहले भगवान कृष्ण की योजना के अनुसार ये कवच-कुंडल उनसे छीन लिए गए। इस प्रकार, कर्ण का पूर्वजन्म का कर्म उनके वर्तमान जीवन में भी उनके साथ रहा, और उनके जीवन की त्रासदी का कारण बना।
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