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इस देवता की मृत्यु के बाद क्यों उनके शरीर की राख को 8 भागों में कर दिया गया था विभाजित?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 23, 2024, 1:28 pm IST
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इस देवता की मृत्यु के बाद क्यों उनके शरीर की राख को 8 भागों में कर दिया गया था विभाजित?

Gautam Buddh: भगवान बुद्ध के शरीर के अवशेषों के आठ हिस्सों पर बने स्तूपों को बौद्ध धर्म में तीर्थ स्थल माना जाता है।

India News (इंडिया न्यूज), Gautam Buddh: बौद्ध धर्म का उदय लगभग 2600 साल पहले भारत में हुआ, जब भगवान बुद्ध ने इसे प्रतिष्ठित किया। भगवान बुद्ध, जिनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था, ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा के माध्यम से संसार को सत्य, अहिंसा, और अन्य महत्वपूर्ण जीवन मूल्यों का मार्गदर्शन दिया। बौद्ध धर्म का संदेश आज भी पूरी दुनिया में फैल चुका है और लाखों लोग इसे मानते हैं।

भगवान बुद्ध का जीवन और सत्य की खोज

भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनका प्रारंभिक नाम सिद्धार्थ था और वे एक शाही परिवार में जन्मे थे। सिद्धार्थ के बचपन और युवा अवस्था में भोग और ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन एक दिन जब उन्होंने बाहर की दुनिया को देखा, तो उन्हें जीवन की दुःख, बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु का सामना हुआ। इससे उन्हें यह एहसास हुआ कि जीवन में इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए किसी विशेष मार्ग की आवश्यकता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने गृहस्थ जीवन से त्याग किया और तपस्वी जीवन को अपनाया।

ज्ञान की प्राप्ति और गौतम बुद्ध का नाम

सिद्धार्थ ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की और विभिन्न आध्यात्मिक गुरुजनों से शिक्षा ली। अंततः उन्हें बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए सत्य का बोध हुआ। इस सत्य को “बुद्धत्व” कहा गया और इसके बाद उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया। बुद्ध ने “चार आर्य सत्य” और “आठ गुना मार्ग” के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया, जो बौद्ध धर्म का मूल आधार बने।

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बुद्ध के शव के अवशेष और स्तूप

भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद, उनके शरीर के अवशेषों का बहुत धार्मिक महत्व था। बौद्ध धर्म में यह मान्यता है कि उनके शरीर की राख को आठ हिस्सों में बांट दिया गया था। प्रत्येक हिस्से पर एक स्तूप का निर्माण किया गया। स्तूप एक अर्धवृत्ताकार या टीले जैसी संरचना होती है, जो बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए तीर्थ स्थल मानी जाती है।

मान्यता है कि इन आठ हिस्सों में बंटे हुए अवशेषों के ऊपर बने स्तूपों का बहुत धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व था। इन स्तूपों को भगवान बुद्ध की उपस्थिति और उनके आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।

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प्रमुख बौद्ध स्तूप

भगवान बुद्ध के शरीर के अवशेषों के आठ हिस्सों पर बने स्तूपों को बौद्ध धर्म में तीर्थ स्थल माना जाता है। भारत और नेपाल में कई प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

सांची स्तूप – मध्य प्रदेश में स्थित, यह स्तूप बौद्ध धर्म का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण स्तूप है।
सारनाथ स्तूप – यह वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था।
भरुत स्तूप – यह भी बौद्ध धर्म के प्रमुख स्तूपों में से एक है, जो मध्य प्रदेश में स्थित है।
पिपरहवा स्तूप – यह स्तूप नेपाल में स्थित है और यहाँ भगवान बुद्ध के अवशेष भी रखे गए थे।
गांधार स्तूप – यह स्तूप पाकिस्तान के क्षेत्र में स्थित है और प्राचीन बौद्ध कला के महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक है।
अमरावती स्तूप – यह दक्षिण भारत में स्थित है और इसके अवशेषों में बौद्ध कला की विशिष्टता देखी जा सकती है।
नागार्जुन कोंडा स्तूप – यह स्तूप आंध्र प्रदेश में स्थित है और इसके अवशेष भी बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इन स्तूपों पर श्रद्धालु तीर्थयात्रा करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं, ताकि उन्हें भगवान बुद्ध का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

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सम्राट अशोक का योगदान

सम्राट अशोक, जो मौर्य साम्राज्य के महान सम्राट थे, ने बौद्ध धर्म को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया, तो उन्होंने भगवान बुद्ध के अवशेषों को विभिन्न स्थानों पर वितरित किया और उन पर स्तूपों का निर्माण कराया। सम्राट अशोक ने एक तिहाई अवशेषों का उत्खनन करवाया और 84,000 स्तूपों का निर्माण किया, ताकि बौद्ध धर्म की उपस्थिति और बुद्ध के आशीर्वाद को लोगों तक पहुंचाया जा सके।

बौद्ध धर्म और भगवान बुद्ध का योगदान मानवता के लिए अनमोल है। उनके उपदेशों में अहिंसा, सत्य, प्रेम और करुणा की जो बातें हैं, वे आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक हैं। भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके शरीर के अवशेषों पर बने स्तूपों ने बौद्ध धर्म के अनुयायियों को एक स्थान दिया, जहां वे श्रद्धा और आस्था से जुड़े रहते हैं। सम्राट अशोक का योगदान बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण रहा है, और आज भी बौद्ध स्तूपों में भगवान बुद्ध के आशीर्वाद की भावना महसूस की जाती है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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