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आखिर क्यों मनाया जाता है भाई दूज? यमराज और यमुना का इस त्योहार से है संबंध, जाने पौराणिक कथा!

BY: Preeti Pandey • LAST UPDATED : November 3, 2024, 7:59 am IST
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आखिर क्यों मनाया जाता है भाई दूज? यमराज और यमुना का इस त्योहार से है संबंध, जाने पौराणिक कथा!

Bhai Dooj Story: आखिर क्यों मनाया जाता है भाई दूज? यमराज और यमुना का इस त्योहार से है संबंध

India News (इंडिया न्यूज), Bhai Dooj Story: भाई-बहन के प्यार का प्रतीक भाई दूज का त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है और हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे भाई दूज, भाई टीका, यम द्वितीया और भातृ द्वितीया। इस दिन भाई अपनी बहन के घर भोजन करने जाता है और बहन भाई की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती है। बहुत से लोग इस त्योहार के महत्व के बारे में नहीं जानते हैं

क्या है भाई दूज की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार भाई दूज की शुरुआत सूर्य पुत्र यमराज और उनकी प्रिय बहन यमुना से जुड़ी है। यमुना अपने भाई यमराज को लगातार अपने घर आने का निमंत्रण देती रहती थी, लेकिन समय की कमी के कारण यमराज नहीं आ पाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को यमुना देवी ने भोजन की व्यवस्था की और अपने भाई यमराज से आने का अनुरोध किया। बहन के लगातार अनुरोध पर मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे और उसे विभिन्न बर्तनों से सजाया और विभिन्न खाद्य पदार्थों से उसका स्वागत किया।

यमुना को मिला वरदान

यमराज अपनी बहन के आतिथ्य से बहुत प्रसन्न हुए और उसे उपहार स्वरूप वरदान मांगने को कहा। भाई के आग्रह पर यमुना ने प्रतिवर्ष इस तिथि पर उसके घर आने, समस्त नरक वासियों को नरक से मुक्त करने तथा इस तिथि पर उसकी बहन के हाथ से भोजन करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने का वरदान मांगा। बहन के आतिथ्य से प्रसन्न होकर यमराज ने उपरोक्त वरदान दिया तथा इस विशेष तिथि पर यमुना नदी में स्नान कर अपने पितरों को जल तर्पण करने तथा अपनी बहन के घर जाकर निमंत्रण स्वीकार करने तथा भोजन करने वालों को हमेशा के लिए नरक से मुक्त करने का वरदान भी दिया।

यमराज द्वारा दिए गए इस वरदान की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। वरदान में उल्लेख है कि छोटी बहन के अभाव में यदि कोई बड़ी बहन या रिश्तेदारों में कोई बहन हो तो उस तिथि पर उसके घर भोजन करने से यह फल अवश्य प्राप्त होगा। प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा को लोग आस्था और विश्वास के साथ मनाते आ रहे हैं।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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