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क्यों अपने ही ससुराल शिवजी की नगरी को दे दिया था मां पार्वती ने श्मशान बनने का श्राप? चिताओं का खेल देख रूह भी जाए कांप

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 15, 2024, 3:00 pm IST
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क्यों अपने ही ससुराल शिवजी की नगरी को दे दिया था मां पार्वती ने श्मशान बनने का श्राप? चिताओं का खेल देख रूह भी जाए कांप

Manikarnika Ghat Varanasi: माता पार्वती ने मणिकर्णिका को हमेशा जलते रहने का श्राप दिया।

India News (इंडिया न्यूज), Manikarnika Ghat Varanasi: वाराणसी (जिसे बनारस भी कहा जाता है) हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है और यह दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक माना जाता है। इस शहर के बारे में मान्यता है कि इसे स्वयं देवों के देव महादेव शिवजी ने बसाया था। इसे मोक्ष नगरी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां के कण-कण में शिवजी के होने की आस्था है और यह स्थान मृत्यु के बाद मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

शिवजी की बसाई नगरी और पार्वती जी का श्राप

वाराणसी को लेकर एक महत्वपूर्ण धार्मिक मान्यता जुड़ी हुई है, जिसमें कहा जाता है कि इसे स्वयं पार्वती जी ने श्रापित किया था। इस श्राप के कारण, काशी के मणिकर्णिका घाट पर हमेशा चिताएं जलती रहती हैं और अग्नि कभी नहीं बुझती। इस श्राप की कथा इस प्रकार है:

मणिकर्णिका घाट का श्राप:

मणिकर्णिका घाट वाराणसी का एक महत्वपूर्ण और पवित्र स्थल है, जहां हर दिन हज़ारों लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने आते हैं। यह घाट हमेशा जलती हुई चिताओं और उनके धुएं के लिए प्रसिद्ध है। इसके बारे में मान्यता है कि इस घाट को माता पार्वती ने श्राप दिया था।

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श्राप की कथा:

कहा जाता है कि एक दिन माता पार्वती स्नान करने के बाद अपने कानों में लगी बाली को खो बैठीं। यह बाली बहुत कीमती थी, क्योंकि उसमें मणि जड़ी हुई थी। पार्वती जी ने बहुत तलाश की, लेकिन वह बाली नहीं मिली। उनकी इस खोई हुई बाली को लेकर बहुत क्रोध और शोक उत्पन्न हुआ, और इसी के चलते माता पार्वती ने इस स्थान को हमेशा जलते रहने का श्राप दिया। इस कारण से मणिकर्णिका घाट पर हमेशा आग जलती रहती है और यह घाट महाश्मशान (अंतिम संस्कार स्थल) के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

घाट का नाम “मणिकर्णिका”:

कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट का नाम इस घटना के कारण पड़ा। मणि की खोज के बाद, इस स्थान को मणिकर्णिका के नाम से जाना गया, जो आज भी हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत पवित्र और महत्वूपर्ण स्थल है।

मोक्ष की प्राप्ति की मान्यता:

यह मान्यता भी है कि जो व्यक्ति मणिकर्णिका घाट पर अपनी देह का अंतिम संस्कार करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे “मोक्ष नगरी” कहा जाता है क्योंकि यहां भगवान शिव का वास है और यहां मरने वाला व्यक्ति सीधे स्वर्ग को जाता है। यह माना जाता है कि जो यहां मरता है, वह जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्त हो जाता है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

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मणिकर्णिका घाट का महत्व:

मणिकर्णिका घाट न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी बहुत गहरा है। यह घाट हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार की परंपरा का केंद्र है, और हजारों वर्षो से यहां मृतक शरीरों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।

वाराणसी और मणिकर्णिका घाट, दोनों ही स्थान धार्मिक यात्रा के लिए अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। यहां के दर्शन और यहां की धार्मिक मान्यताएं लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं, जो मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा के साथ इस पवित्र स्थान पर आते हैं।

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वाराणसी और मणिकर्णिका घाट के बारे में जो धार्मिक मान्यताएँ हैं, वे न केवल इस शहर की ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर को दर्शाती हैं, बल्कि ये जीवन और मृत्यु के चक्र, मोक्ष और पुनर्जन्म की अवधारणा को भी बहुत गहराई से समझाती हैं। शिवजी और पार्वती जी से जुड़ी इन कथाओं का एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, जो वाराणसी को एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धा का केंद्र बनाता है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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