संबंधित खबरें
क्यों दुर्योधन की जांघ तोड़कर ही भीम ने उतारा था उसे मौत के घाट, पैर में छिपा था ऐसा कौन-सा जीवन का राज?
जो लोग छिपा लेते हैं दूसरों से ये 7 राज…माँ लक्ष्मी का रहता है उस घर में सदैव वास, खुशियों से भरी रहती है झोली
इन 4 राशियों की लड़कियों का प्यार पाना होता है जंग जीतने जैसा, स्वर्ग सा बना देती हैं जीवन
देवो के देव महादेव के माता-पिता है कौन? शिव परिवार में क्यों नहीं दिया जाता पूजा स्थान
नए साल पर गलती से भी न करें ये काम, अगर कर दिया ऐसा तो मां लक्ष्मी देंगी ऐसी सजा जो सोच भी नहीं पाएंगे आप
दान में जो दे दिए इतने मुट्ठी चावल तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो रोक दे आपके अच्छे दिन, जानें सही तरीका और नियम?
India News (इंडिया न्यूज), Shree Krishna & Arjuna: महाभारत के 18वें दिन की यह घटना बेहद महत्वपूर्ण और त्रासद है, क्योंकि इसने युद्ध के अंत में एक और दुखद अध्याय जोड़ा। दुर्योधन की जांघें भीम द्वारा तोड़े जाने के बाद, कौरवों की पराजय लगभग सुनिश्चित हो गई थी। भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली थी और पांडव अपनी जीत से संतुष्ट महसूस कर रहे थे। युद्ध के मैदान में अब कौरवों की कोई शक्ति शेष नहीं थी, और पांडवों ने कौरव शिविर पर पड़ाव डाल लिया था।
जब रात्रिभोज के समय श्रीकृष्ण को मौन देखकर अर्जुन ने उनसे पूछा कि वे अभी तक युधिष्ठिर को विजय की शुभकामनाएं क्यों नहीं दे रहे, तो कृष्ण ने संकेत किया कि युद्ध अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। भीम ने इस पर कहा कि दुर्योधन पराजित हो चुका है और उनका प्रमुख शत्रु तालाब के किनारे औंधे मुंह पड़ा है। लेकिन कृष्ण ने चेतावनी दी कि जब तक धृतराष्ट्र हस्तिनापुर का सिंहासन खाली नहीं करते और पूरी तरह से पराजय स्वीकार नहीं होती, तब तक पांडवों को आश्वस्त नहीं होना चाहिए।
सात्यकि ने तब यह तर्क दिया कि युद्ध के अंतिम पड़ाव का भी अपना महत्व होता है। यह पांडवों का आखिरी पड़ाव था, और अगर वे बिना किसी ठोस निर्णय के यहां से लौटते हैं, तो इसे उनके कदम पीछे हटाने के समान माना जाएगा। यह शास्त्रसम्मत तर्क था, जिस पर पांडवों ने सहमति जताई और शिविर में रुकने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने अनजाने में पांडवों के लिए एक और दुखद घटना का रास्ता खोल दिया।
अश्वत्थामा, जो अपने पिता गुरु द्रोण की हत्या से क्रोधित था, ने रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में प्रवेश किया। उसने कौरवों की पराजय और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय कर लिया था। अश्वत्थामा ने अपने क्रोध और प्रतिशोध की भावना में पांडवों के पांच पुत्रों को निर्दयता से मार डाला, जिन्हें वह पांडव समझ रहा था। इस भयानक घटना ने पांडवों की विजय के क्षण को एक गहरे दुख में बदल दिया।
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि महाभारत का युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि उसमें व्यक्तिगत प्रतिशोध, राजनीति और भावनात्मक पीड़ा का भी गहरा प्रभाव था। युद्ध की समाप्ति के बाद भी अश्वत्थामा का प्रतिशोध दिखाता है कि युद्ध की विभीषिका ने सभी पात्रों के जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। इस घटना ने पांडवों की विजय के क्षण को दुःख और शोक से भर दिया, क्योंकि उन्होंने अपने पुत्रों की हत्या का सामना किया।
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.