होम / 'ये है पांडवों का अंतिम पड़ाव'…महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कह दी थी इतनी बड़ी बात?

'ये है पांडवों का अंतिम पड़ाव'…महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद आखिर क्यों श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कह दी थी इतनी बड़ी बात?

Prachi Jain • LAST UPDATED : September 22, 2024, 8:45 pm IST

Shree Krishna & Arjuna: जब रात्रिभोज के समय श्रीकृष्ण को मौन देखकर अर्जुन ने उनसे पूछा कि वे अभी तक युधिष्ठिर को विजय की शुभकामनाएं क्यों नहीं दे रहे, तो कृष्ण ने संकेत किया कि युद्ध अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।

India News (इंडिया न्यूज), Shree Krishna & Arjuna: महाभारत के 18वें दिन की यह घटना बेहद महत्वपूर्ण और त्रासद है, क्योंकि इसने युद्ध के अंत में एक और दुखद अध्याय जोड़ा। दुर्योधन की जांघें भीम द्वारा तोड़े जाने के बाद, कौरवों की पराजय लगभग सुनिश्चित हो गई थी। भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली थी और पांडव अपनी जीत से संतुष्ट महसूस कर रहे थे। युद्ध के मैदान में अब कौरवों की कोई शक्ति शेष नहीं थी, और पांडवों ने कौरव शिविर पर पड़ाव डाल लिया था।

कृष्ण का मौन और पांडवों का आत्मसंतोष

जब रात्रिभोज के समय श्रीकृष्ण को मौन देखकर अर्जुन ने उनसे पूछा कि वे अभी तक युधिष्ठिर को विजय की शुभकामनाएं क्यों नहीं दे रहे, तो कृष्ण ने संकेत किया कि युद्ध अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। भीम ने इस पर कहा कि दुर्योधन पराजित हो चुका है और उनका प्रमुख शत्रु तालाब के किनारे औंधे मुंह पड़ा है। लेकिन कृष्ण ने चेतावनी दी कि जब तक धृतराष्ट्र हस्तिनापुर का सिंहासन खाली नहीं करते और पूरी तरह से पराजय स्वीकार नहीं होती, तब तक पांडवों को आश्वस्त नहीं होना चाहिए।

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सात्यकि की सलाह

सात्यकि ने तब यह तर्क दिया कि युद्ध के अंतिम पड़ाव का भी अपना महत्व होता है। यह पांडवों का आखिरी पड़ाव था, और अगर वे बिना किसी ठोस निर्णय के यहां से लौटते हैं, तो इसे उनके कदम पीछे हटाने के समान माना जाएगा। यह शास्त्रसम्मत तर्क था, जिस पर पांडवों ने सहमति जताई और शिविर में रुकने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने अनजाने में पांडवों के लिए एक और दुखद घटना का रास्ता खोल दिया।

अश्वत्थामा का प्रतिशोध

अश्वत्थामा, जो अपने पिता गुरु द्रोण की हत्या से क्रोधित था, ने रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में प्रवेश किया। उसने कौरवों की पराजय और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का निश्चय कर लिया था। अश्वत्थामा ने अपने क्रोध और प्रतिशोध की भावना में पांडवों के पांच पुत्रों को निर्दयता से मार डाला, जिन्हें वह पांडव समझ रहा था। इस भयानक घटना ने पांडवों की विजय के क्षण को एक गहरे दुख में बदल दिया।

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निष्कर्ष

इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि महाभारत का युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि उसमें व्यक्तिगत प्रतिशोध, राजनीति और भावनात्मक पीड़ा का भी गहरा प्रभाव था। युद्ध की समाप्ति के बाद भी अश्वत्थामा का प्रतिशोध दिखाता है कि युद्ध की विभीषिका ने सभी पात्रों के जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। इस घटना ने पांडवों की विजय के क्षण को दुःख और शोक से भर दिया, क्योंकि उन्होंने अपने पुत्रों की हत्या का सामना किया।

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