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न जलाते न दफनाते…क्यों नदी में यूंही बहा देते है अघोरी साधुओं की लाश? 40 दिन लंबी होती है प्रक्रिया कांप उठेगी रूह

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : January 19, 2025, 8:00 pm IST
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न जलाते न दफनाते…क्यों नदी में यूंही बहा देते है अघोरी साधुओं की लाश? 40 दिन लंबी होती है प्रक्रिया कांप उठेगी रूह

Aghori Sadhu Antim Sanskar: क्यों नदी में यूंही बहा देते है अघोरी साधुओं की लाश 40 दिन लंबी होती है प्रक्रिया कांप उठेगी रूह

India News(इंडिया न्यूज), Aghori Sadhu Antim Sanskar: संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ के अवसर पर गंगा स्नान के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचे हैं। महाकुंभ 2025 में जहां साधारण श्रद्धालुओं के साथ-साथ संतों और साधुओं का जमावड़ा देखने को मिलता है, वहीं अघोरी बाबा और नागा साधु भी आकर्षण का मुख्य केंद्र बने हुए हैं। अघोरियों को लेकर हमेशा से ही लोगों के मन में अनेक सवाल उठते हैं। जैसे, क्या अघोरी सच में इंसानी मांस खाते हैं? वे नरमुंड क्यों रखते हैं? और उनकी मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार कैसे होते हैं? आइए, इन रहस्यमयी साधुओं की दुनिया को समझने का प्रयास करते हैं।

अघोरी: धर्म रक्षकों का अनूठा स्वरूप

अघोरियों को लेकर कहा जाता है कि वे धर्म की रक्षा के लिए सबसे आगे खड़े होते हैं। उनकी साधनाएं और आचरण आम लोगों से भिन्न होते हैं, लेकिन उनका हर कर्म किसी गहरे आध्यात्मिक उद्देश्य से प्रेरित होता है। अघोरपंथ के अनुयायी भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हैं और उनका जीवन शिव को समर्पित होता है। वे श्मशान साधना को विशेष महत्व देते हैं, क्योंकि यह उन्हें आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर करती है।

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अघोरियों का अंतिम संस्कार: अनोखी परंपरा

जब किसी अघोरी साधु का निधन होता है, तो उनके शव को जलाया नहीं जाता। इसके बजाय, एक विशेष प्रक्रिया का पालन किया जाता है। मृत शरीर को चौकड़ी लगाकर उल्टा रखा जाता है, जिसमें सिर नीचे और पैर ऊपर होते हैं। इस अवस्था में शव को सवा माह (40 दिन) तक रखा जाता है, जब तक उसमें कीड़े न पड़ जाएं। इसके बाद शव को गंगा नदी में प्रवाहित किया जाता है।

अघोरी शव के सिर को अपनी साधना के लिए उपयोग में लाते हैं। कुछ अघोरी इसे गंगा में प्रवाहित कर देते हैं, जबकि कुछ इसे अपने पास रखकर साधनात्मक कार्यों में शामिल करते हैं। उनकी मान्यता है कि गंगा में प्रवाहित करने से मृत व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मुक्ति प्राप्त होती है।

भोजन और आहार संबंधी मान्यताएं

अघोरी साधु किसी भी प्रकार के भोजन को त्याज्य नहीं मानते। वे मानव मल, मांस, और अन्य असामान्य चीजों का भी सेवन कर लेते हैं। हालांकि, वे गाय का मांस कभी नहीं खाते। उनके लिए भोजन केवल भौतिक शरीर को जीवित रखने का माध्यम है, न कि भोग का साधन। उनकी साधना श्मशान में होती है, जहां वे बिना किसी भय के ध्यान लगाते हैं। उनका मानना है कि श्मशान साधना शीघ्र फलदायक होती है।

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अघोरियों की लाल आंखें और साधनात्मक हठ

अघोरी साधु हठधर्मी होते हैं और अपनी साधनाओं में अडिग रहते हैं। उनकी आंखें अधिकतर लाल होती हैं, जिससे वे हमेशा गुस्से में प्रतीत होते हैं। लेकिन यह उनका बाहरी स्वरूप है। मन से वे शांत और स्थिर होते हैं। वे आम लोगों से दूर रहते हैं और उनके साथ केवल उनके शिष्य ही रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं।

नरमुंड का महत्व

अघोरी साधु नरमुंड को अपने पास रखते हैं, क्योंकि यह उनकी साधनाओं का अभिन्न अंग है। नरमुंड उनके लिए मृत्यु का प्रतीक है, जो उन्हें जीवन की नश्वरता का बोध कराता है। उनका मानना है कि मृत्यु का सामना करने से ही जीवन की वास्तविकता को समझा जा सकता है।

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अघोरपंथ: शिव की भक्ति का चरम स्वरूप

अघोरी भगवान शिव के अघोर रूप के उपासक हैं। वे शिव की शक्ति को आत्मसात करने के लिए कठोर साधनाएं करते हैं। उनका जीवन पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित होता है। वे सांसारिक बंधनों और मोह-माया से परे रहते हैं, जो उन्हें आत्मज्ञान के मार्ग पर अग्रसर करता है।

अघोरी साधु साधारण जनमानस के लिए एक रहस्य और जिज्ञासा का विषय बने रहते हैं। उनकी साधनाएं और जीवनशैली हमें यह सिखाती हैं कि भौतिकता से परे भी एक गहरा आध्यात्मिक संसार है। अघोरियों का जीवन त्याग, तपस्या, और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। महाकुंभ जैसे अवसरों पर इन साधुओं की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की जड़ें कितनी गहरी और समृद्ध हैं।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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