संबंधित खबरें
शिव जी की जांघ से हुए प्रकट, रहस्यों से भरा है जीवन! जानें कौन है जंगम साधु?
धारण करते हैं दुसरा भेस! देवी-देवता इन रुपों में देते हैं दरशन, अगर महाकुंभ में मिल जाए ये वस्तु तो पलट जाएगा भाग्य!
बन रहा महासंयोग, शुक्र-शनि मिल कर बना रहे हैं शश राजयोग, इन रेशियों की खुलेगी किस्मत की चाभी!
इस मूलांक के जातकों की बदल जाएगी किस्मत, नए हमसफर का मिल सकता है साथ, जिंदगी में होगा पलटफेर!
Today Horoscope: इस एक राशि के जीवन में आएगा एक नया साथी, तो वही 5 जातकों को रखना होगा अपने काम का विशेष ध्यान, जानें आज का राशिफल
Basant Panchami 2025: 2 या 3 फरवरी आखिर कब है इस साल की बसंत पंचमी, इस एक उपाय को करने से पाए पूरे साल सुख और ऐश्वर्य?
(इंडिया न्यूज़): प्राचीनकाल से ही हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत संस्कार को प्रमुख संस्कारों में से एक माना जाता है। यज्ञोपवीत को ही जनेऊ कहा जाता है। मनु महाराज का वचन है कि पहला जन्म माता के पेट से होता है। माता के गर्भ से जो जन्म होता है,उसपर जन्म-जन्मांतरों के संस्कार हावी रहते हैं। इसी को द्विज अर्थात दूसरा जन्म भी कहते हैं।
यज्ञोपवीत-संस्कार द्वारा बुरे संस्कारों का शमन करके अच्छे संस्कारों को स्थाई बनाया जाता है। मनु महाराज के अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार हुए बिना द्विज किसी कर्म का अधिकारी नहीं होता। इसी प्रकार ये संस्कार होने के बाद ही बालक को धार्मिक कार्य को करने का अधिकार मिलता है। व्यक्ति को सर्वविध यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त हो जाना ही यज्ञोपवीत है।पदम् पुराण में लिखा है कि करोड़ों जन्म के ज्ञान-अज्ञान में किए हुए पाप यज्ञोपवीत धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। पारस्कर ग्रहसूत्र में लिखा है,जिस प्रकार इंद्र को वृहस्पति ने यज्ञोपवीत दिया था,उसी तरह आयु,बल,बुद्धि और सम्पत्ति की वृद्धि के लिए यज्ञोपवीत पहनना चाहिए। इसे धारण करने से शुद्ध चरित्र और कर्तव्य पालन की प्रेरणा मिलती है।
जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहनते हैं। इसे देवऋण,पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है,साथ ही इसे सत्व, रज और तम का भी प्रतीक माना गया है। यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं।यज्ञोपवीत के तीन लड़,सृष्टि के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यांन आकर्षित करते हैं। इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है। ये नौ तार शरीर के नौ द्वार एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं। इसमें लगाई जाने वाली पांच गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई हैं। यही कारण है कि जनेऊ को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है और इसकी शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके कुछ नियमों का पालन आवश्यक है।
जनेऊ को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथों को धोकर ही इसे कान से उतारना चाहिए। यदि जनेऊ का कोई तार टूट जाए तो इसे बदल लेना चाहिए। इससे पहनने के बाद तभी उतारना चाहिए जब आप नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं इसे गर्दन में घुमाते हुए ही धो लिया जाता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.