India News (इंडिया न्यूज), Pitru Paksh 2024: पितृ पक्ष, जो इस वर्ष 2024 में 17 सितंबर से शुरू हो रहा है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण समय है। यह वह समय है जब पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है, और उनके लिए तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार, देवताओं की पूजा से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करना जरूरी माना गया है। पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों को किए गए तर्पण से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितृ दोष भी समाप्त होता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि पूर्वजों के तर्पण से पहले ऋषि-मुनियों का तर्पण भी आवश्यक होता है, विशेषकर ऋषि अगस्त्य का।
पितृ पक्ष के पहले दिन, पूर्णिमा के दिन, ऋषि अगस्त्य के नाम से तर्पण करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि यह तर्पण करने से पितरों को जल की प्राप्ति होती है और वे पूरे साल भटकने से बच जाते हैं। ऋषि अगस्त्य के साथ-साथ अन्य प्रमुख ऋषियों का भी तर्पण किया जाता है, जिससे पितरों को शांति मिलती है। इस तर्पण का शुभारंभ ऋषि अगस्त्य के पूजन से होता है, ठीक वैसे ही जैसे किसी पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की अर्चना से की जाती है।
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ऋषि अगस्त्य से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा महाभारत के वन पर्व में बताई गई है। इस कथा के अनुसार, आतापी और वातापी नाम के दो असुर थे जो ऋषियों और ब्राह्मणों को छल से मारकर खा जाते थे। वातापी भोजन का रूप धारण कर लेता और आतापी उसे किसी ऋषि को खिलाता। बाद में आतापी उसे आवाज देकर फिर से जीवित कर देता, और वातापी उस ऋषि का पेट फाड़कर बाहर आ जाता। इस प्रकार वे दोनों असुर कई ऋषियों की हत्या कर चुके थे।
इस समस्या से परेशान ऋषि-मुनि ऋषि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे। ऋषि अगस्त्य ने असुरों का अंत करने का निश्चय किया। एक दिन वे आतापी-वातापी के पास पहुंचे, जहाँ आतापी ने अपने भाई वातापी को भोजन बना दिया और अगस्त्य मुनि को खिला दिया। लेकिन जब आतापी ने अपने भाई को वापस बुलाना शुरू किया, तो ऋषि अगस्त्य ने अभिमंत्रित जल पी लिया और कहा, “जिसे तुम आवाज दे रहे हो, वह अब बाहर नहीं आएगा क्योंकि मैंने उसे पचा लिया है।” यह सुनकर आतापी डर गया, और इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, ऋषि अगस्त्य ने उसे भी अपने तपोबल से भस्म कर दिया। यह घटना भाद्रपद पूर्णिमा के दिन हुई थी, और तभी से पितृ पक्ष की शुरुआत ऋषि अगस्त्य के तर्पण से की जाती है।
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ऋषि अगस्त्य के अलावा, पितृ पक्ष के दौरान अन्य ऋषियों का भी तर्पण किया जाता है:
ऋषियों का तर्पण पितरों के तर्पण से पहले किया जाता है, क्योंकि ऋषि-मुनियों ने धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में गहरा योगदान दिया है। उनके तर्पण से न केवल पितरों को मुक्ति मिलती है, बल्कि श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को भी जीवन में सफलता और शांति प्राप्त होती है। ऋषियों की पूजा के माध्यम से श्राद्ध कर्म अधिक प्रभावी और पूर्ण माना जाता है।
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