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India News (इंडिया न्यूज), Shri Krishna Janma: प्राचीन काल की बात है, जब भगवान श्री कृष्ण ने कंस के अत्याचारों से अपनी माता देवकी और पिता वासुदेव को 14 वर्षों के कारावास से मुक्त करवाया। यह कथा उस समय की है जब कंस के वध के बाद, श्री कृष्ण ने कारागार के द्वार खोले और अपने माता-पिता को आज़ादी दिलाई। इस महान कार्य के बाद, माता देवकी के मन में एक सवाल उमड़ा, जिसे उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा।
माता देवकी ने अपने पुत्र से कहा, “हे कृष्ण, आप तो स्वयं भगवान हैं। यदि आप चाहते तो हमें इस कारागार से बहुत पहले ही मुक्त कर सकते थे। फिर आपने हमें 14 वर्षों तक इस कष्ट में क्यों रहने दिया?”
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श्री कृष्ण ने अपनी माता की बात सुनी और फिर एक रहस्य का खुलासा किया। उन्होंने कहा, “माता, यह सब हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। पूर्व जन्म में आप अयोध्या के राजा दशरथ की तीसरी पत्नी, माता केकैयी थीं, और मैं उस समय राम के रूप में आपका पुत्र था। आपने अपने स्वार्थ के चलते मुझे, यानी राम को, 14 वर्षों का वनवास दिलवाया था। उसी कर्म का फल आप इस जन्म में भुगत रही हैं। इस कारण आपको 14 वर्षों तक कारागार में रहना पड़ा।”
श्री कृष्ण ने आगे बताया, “इस जन्म में माता यशोदा, जो मेरे पालन-पोषण के लिए चुनी गईं, वही पूर्व जन्म में मेरी माता कौशल्या थीं। माता कौशल्या भी अपने पुत्र राम से 14 वर्षों तक दूर रहीं थीं। इस जन्म में मैंने उस दूरी का फल चुकाते हुए 14 वर्षों तक उनके साथ समय बिताया, जिससे वे इस जीवन में मेरे साथ रहने का सुख पा सकें।”
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श्री कृष्ण की इस बात से माता देवकी ने समझ लिया कि कर्मों का फल अवश्य मिलता है, चाहे वह इस जन्म में हो या अगले जन्म में। श्री कृष्ण ने यह स्पष्ट कर दिया कि पाप कर्म का फल व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है, और इसके लिए उसे अगला जन्म लेना पड़ता है।
इस कथा से यह सिखने को मिलता है कि हमारे कर्म हमारे जीवन और अगले जन्मों को प्रभावित करते हैं। श्री कृष्ण ने अपने जीवन के इस प्रसंग से यह संदेश दिया कि कर्मों का फल अनिवार्य है, और इसे टाला नहीं जा सकता।
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
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