इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Air Pollution Effect दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत ही नहीं बल्कि हिमालय तक वायु प्रदूषण (एयर पॉल्यूशन) ने लोगों की जिंदगियों को संकट में डाल दिया है। वर्ल्ड बैंक की इस स्टडी रिपोर्ट, ग्लेसियर्स आफ द हिमालया: क्लाइमेट चेंज, ब्लैक कार्बन एंड रीजनल रीसिलिएंस ) में यह जानकारी सामने आई है। हिंदू कुश रेंज को इस रिपोर्ट में हिमालय का हिंदू कुश हिमालय (HKH) नाम दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार HKH Air Pollution से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक एयर पॉल्यूशन के कारण खासकर Sindh, Ganga and Brahmaputra नदियों के किनारे रहने वाले 75 करोड़ लोगों के लिए सबसे ज्यादा खतरा पैदा हो गया है। HKH के दक्षिणी इलाके में सिंधु-गंगा के मैदानी इलाके और उत्तर-उत्तर-पश्चिम में तिब्बत के पठारी इलाके शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार ये दुनिया के सबसे प्रदूषित इलाकों में शामिल हैं। स्टडी रिपोर्ट में साफतौर पर यहां वैश्विक गर्मी के लिए एयर पॉल्यूशन को जिम्मेदार बताया गया है। अगर HKH के ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं तो अचानक से बाढ़ आने का खतरा बना रहता है। सिर्फ यही नहीं, अगर सारे ग्लेशियर पिघल जाएंगे तो हिंदू कुश इलाके के आसपास रहने वाले लोगों को पीने के पानी का खतरा भी बढ़ जाएगा।
HKH के निचले इलाकों से उठने वाले Aerosol ब्लैक कार्बन धुएं के रूप में उड़ते हुए हिमालय की ऊंची चोटियों और इलाकों पर जमा हो रहे हैं। ऊंचाई पर जमा होने वाले इन ब्लैक कार्बन की वजह से Albedo अल्बेडो बनते हैं। Albedo यानी सूर्य की रोशनी को Reflect करने की क्षमता को कम करने वाले पदार्थ होते हैं। इसकी वजह से बर्फ और ग्लेशियर ज्यादा रोशनी रिफलेक्ट करने के बजाय ज्यादा गर्मी सोखते हैं। वह तेजी से पिघलने लगते हैं, क्योंकि ऊंचे इलाके काफी ज्यादा गर्म हो रहे हैं।
सिंध-गंगा के मैदानी इलाकों में यह प्रक्रिया अब बेहद आम हो गई है। Delhi-NCR के लोगों के लिए Smog तो हर वर्ष की कहानी हो गई है, लेकिन नई स्टडी में यह देखा गया है कि HKH के ऊपर Aerosol की मात्रा तेजी से बढ़ रही है, जिसकी वजह से स्मोग है। इसकी पुष्टि यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESXA) के सैटेलाइट सेंटिनल5पी ने भी की है।
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के मुताबिक सैटेलाइट से मिले डेटा में कहा गया है कि कैसे 24 घंटे में Albedo वाला इलाका कितना ब्लैक कार्बन और Aerosol सोख रहा है। इसकी वजह से हिमालय की अल्ट्रावॉयलेट किरणें सोखने की क्षमता बढ़ गई है, जो खतरनाक है। वश् सोखने वाले एयरोसोल गर्मी बढ़ाते हैं, जिनसे बर्फ की परतें और ग्लेशियर पिघलने लगते हैं, इसलिए जरूरी है कि हिमालय के आसपास के इलाकों में प्रदूषण के स्तर को कम किया जाए। चाहे वह घरों से हो, गाड़ियों से हो या फिर किसी तरह के निर्माण कार्य से।
भारत (India) और चीन (China) दुनिया में वायु प्रदूषण के अलावा ब्लैक कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे आगे हैं। दोनों देशों का नाम तो कढउउ की पर्यावरण रिपोर्ट में भी आए हैं। World Bank ने कहा कि इन दोनों देशों में ब्लैक कार्बन और एयरोसोल की मात्रा तेजी से ऊपर बढ़ती जा रही है, जिसके कारण जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि इससे ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) बढ़ रही है। Global Warming से प्राकृतिक आपदाएं आएंगी। खासतौर पर ग्लेशियरों इस तरह की गर्मी का सबसे ज्यादा असर होगा। जैसे कि Kedarnath और Chamoli में आई आपदा इसके उदाहरण हैं।
HKH को विश्व का तीसरा ध्रुव (Third Pole) कहा जाता है। इस पूरे इलाके में करीब 55 हजार ग्लेशियर हैं, जो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद साफ पानी के सबसे बड़े स्रोत हैं। इनकी वजह से 6 देशों में पानी की सप्लाई होती है। तीन सबसे बड़ी नदियां Sindh, Ganga and Brahmaputra भी इन्हीं ग्लेशियर से निकलती हैं। पिछले 50 वर्ष में 509 ग्लेशियर गायब हो चुके हैं। वर्ष 2005 के बाद से अब तक ग्लेशियरों के पिघलने की दर दोगुनी हुई है।
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