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‘कॉफी शॉप में नहीं, ऑफिस में ..’ – अभिषेक बनर्जी ने बॉलीवुड पर दिया बड़ा बयान, अपनी कास्टिंग कंपनी के लिए बनाए नियम’

अभिषेक बनर्जी ने कास्टिंग काउच के खिलाफ सख्त नियम अपनाए. मीटू मूवमेंट के बाद उनकी कंपनी सिर्फ टैलेंट पर ध्यान देती है, न कि निजी या फिजिकल डिमांड्स पर.

Written By: Sanskriti jaipuria
Last Updated: September 15, 2025 16:11:27 IST

फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच की बातें कोई नई नहीं हैं, लेकिन बीते कुछ सालों में इस पर खुलकर चर्चा होने लगी है. खासतौर पर #MeToo मूवमेंट के बाद, कई कलाकारों और एक्सपर्ट ने अपने एक्सपीरिएंस शेयर किए हैं. अब एक्टर और कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी ने भी इस मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखी है.

अभिषेक बनर्जी, जो ‘स्त्री’ और अन्य हिट फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया कि बॉलीवुड में मीटू मूवमेंट के बाद काम करने का माहौल काफी बदल गया है. पहले जहां कास्टिंग के बहाने कॉफी शॉप या डिनर पर मीटिंग्स आम थीं, अब ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है. उनका मानना है कि अब कलाकार, खासकर महिलाएं, कहीं ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई हैं.

कंपनी में लागू किए सख्त नियम

अभिषेक ने बताया कि जब उन्होंने अपनी कास्टिंग कंपनी शुरू की, तो उन्होंने कुछ बहुत ही साफ और सख्त नियम बनाए. उनके अनुसार, कोई भी कास्टिंग डायरेक्टर या टीम का सदस्य किसी एक्टर से ऑफिस के बाहर नहीं मिल सकता. अगर ऐसा कोई मामला सामने आता है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाती है. अभिषेक की साफ नीति है कि कास्टिंग केवल ऑफिस परिसर में, पेशेवर माहौल में ही की जानी चाहिए.

कंपनी के रवैये से चौंक जाते थे लोग

अभिषेक ने स्वीकार किया कि जब इंडस्ट्री में उनके काम करने के तरीके के बारे में लोगों को पता चला, तो कई लोग हैरान रह गए. उस दौर में जब ‘फ्लर्टिंग’ और अनुचित व्यवहार कुछ कास्टिंग ऑफिसों में आम बात माने जाते थे, तब अभिषेक ने ये साफ किया कि उनकी टीम केवल टैलेंट और प्रोफेशनलिज्म के आधार पर कलाकारों का सिलेक्ट करे.

सिर्फ काम पर देते ध्यान

बनर्जी का कहना है कि जब वे खुद कास्टिंग कर रहे होते थे, तो केवल काम पर ध्यान देते थे. उनका साफ मानना है कि अभिनय क्षमता ही एकमात्र पैमाना होना चाहिए, न कि कोई निजी या शारीरिक अपेक्षा.

अभिषेक बनर्जी का ये रुख न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि फिल्म इंडस्ट्री के बदलते चेहरे की एक सही मिसाल भी है. ऐसी सख्त नीतियों और साफ सोच के जरिए ही बॉलीवुड को एक सुरक्षित जगह बनाया जा सकता है.

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