गोपेंद्र नाथ भट्ट, नई दिल्ली :
फिल्म सरंक्षण के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर की फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन,मुम्बई द्वारा पुनरुद्धार (रेस्टोरेशन) की गई मलयालम फिल्म ‘थंप’ इस वर्ष 17 से 21 मई तक फ़्राँस में हो रहें 75 वें वार्षिक कांस फिल्म फेस्टिवल के प्रीमियम शो में प्रदर्शित होंगी।
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के निर्देशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया कि थंप फिल्म को कांस फिल्म फेस्टिवल में भारत की कुछ और फिल्मों के साथ आमंत्रित किया जाना गौरवपूर्ण है ।उन्होंने बताया कि थंप फिल्म को 21 मई को कांस फिल्म महोत्सव के प्रीमियम शो में दिखाया जायेगा ।
मलयालम फिल्म के सर्वकालीन महान फिल्मकार जी.अरविंदन गोविंदन की इस फिल्म थंप (1978) का रेस्टोरेशन फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन, वर्ल्ड सिनेमा फाउंडेशन एवं सिनेटिका डी बोलोनिया संस्थान ने एक साथ मिलकर किया है।
शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने बताया कि थंप (यानि सर्कस का टेंट) के साथ विख्यात फिल्मकार जी अरविंदन की एक और मलयालम फिल्म कुमूठी (1979 ) को पुनर्जन्म देने काम भी किया गया है और इन दोनों फिल्मों का रेस्टोरेशन कार्य पूरा हो चुका है । सौभाग्य से थंप फिल्म को कांस फिल्म महोत्सव में भाग लेने का अवसर मिल रहा है जो भारतीय सिने जगत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
शिवेंद्र सिंह इस फिल्म के स्क्रीनिंग को लेकर काफी उत्साहित है । वहीं दूसरी ओर सिने विशेषज्ञ एवं फिल्म प्रेमियों का मानना है कि शिवेंद्र सिंह और उनकी टीम आने वाले समय में भारतीय सिनेमा ही नही विश्व सिनेमा में एक नया अध्याय लिखेंगी क्योंकि भारतीय सिनेमा जगत को अभी इस प्रकार की और भी फ़िल्मों के रेस्टोरेशन की जरूरत है तथा शिवेंद्र सिंह ने सही समय पर सही कार्य का आगाज किया है।
थंप फिल्म का निर्माण 1978 में के.रवींद्रन नायर की फिल्म कंपनी जनरल फिल्म्स के बैनर तले किया गया था । यह एक श्वेत श्याम फिल्म थी एवं इस फिल्म के निर्देशक और पटकथाकार मलयालम फिल्म जगत के जाने माने फिल्मकार जी अरविंदम थे। जी अरविंदम का फिल्म करियर काफी छोटा रहा । उन्होंने अपने करियर में 16-17 फ़िल्में ही बनाई जो कि सभी अपने आपमें अनूठी थी। विशेषकर कुमुठी और थंप (यानि सर्कस का टेंट ) काफी मशहूर हुई । इस फिल्म में एक सर्कस गांव में आता है और बस पूरे फिल्म की कहानी इसी के इर्द गिर्द घूमती है।
थंप फिल्म के बारे में शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर कहते है जब वे पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में डिप्लोमा कर रहे थे, उस वक्त उन्होंने यह फिल्म देखी थी और उनका मानना है कि जी.अरविंदन गोविंदन की यह फिल्में दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर देती है। उन्होंने बताया कि इस फिल्म के रेस्टोरेशन में चेन्नई की प्रसिद्ध संस्था प्रसाद कॉरपोरेशन का सराहनीय सहयोग रहा। साथ ही बंगलुरू के अरकाइविस एवं जी.अरविंदम के पुत्र रामु अरविंदन का सक्रिय सहयोग भी मिला,जिनके पास अपने पिताजी के कई फोटोग्राफ़स,स्क्रिप्ट और अन्य वस्तुएं संग्रहित थी।
वहीं फिल्म के बारे में वर्ल्ड सिनेमा फाउंडेशन के मार्टिन स्कॉरियस कहते है ये फिल्में विश्वस्तर की है लेकिन उस समय जी.अरविंदन गोविंदन की फिल्मों को जो रेसपोंस मिलना चाहिए था वो नहीं मिला। उन्होंने कहा कि हम इन फिल्मों को फिर से उनके मौलिक स्वरूप में बहाल कर दुनिया के सामने रखना चाहते है । यह भी गोरतलब है कि जी.अरविंदम एक उत्कृष्ट निर्देशक होने के साथ-साथ एक सफल संगीतकार भी थे और उन्होंने कई मलयालम फिल्मों को अपना संगीत दिया।
इस बारे में फिल्म के निर्माता के.रविन्द्र नायर कहते है कि वास्तव मे शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर एवं उनकी संस्थान एक महान काम कर रही है क्योंकि कुछ व्यक्तित्व एवं संस्थाएं ऐसी होती है जो अपनी उपलब्धियों का पर्याय बन जाती है । हम पर्यावरण संरक्षण, साहित्य संरक्षण या इतिहास के संरक्षण के बारे में तों काफी जानते है, लेकिन फिल्म संरक्षण एक ऐसा विषय है जिसे बहुत कम लोग जानते है।
फिल्म सरंक्षण एवं फिल्म बहाली के क्षेत्र में आज से कुछ वर्ष पूर्व सिर्फ एक नाम था पी.के.नायर का जिन्होंने राष्ट्रीय फिल्म आर्काइव संस्थान, पुणे के माध्यम से कई फिल्मों का सरंक्षण किया लेकिन पिछले कुछ वर्षो से एक और नया नाम शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर का उभरकर सामने आया है जिन्होंने 2014 में अपने संस्थान फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की स्थापना कर फिल्म हेरिटेज के कार्य को आगे बढ़ाया। आज इनकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो चुकी है ।
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने फिल्मों का सरंक्षण ही नहीं किया है वरन उन्होंने भारत के कई फिल्मकारों की जिंदगी से जुड़ी फोटोज, स्क्रिप्ट, एडिटिंग, टेबल सिनेमा टिकट, प्रोजेक्टर, कैमरा, पोस्टर टिकट गैलरी कार्ड और अन्य कई ऐसी वस्तुएं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उनकी जिंदगी से ताल्लुक रखती हो आदि का भी सरंक्षण करने का बेजोड़ काम किया है। इसी क्रम में उन्होंने फिल्म रेस्टोरेशन का काम हाथ में लेकर इस कड़ी में सर्वप्रथम वर्ल्ड सिनेमा फाउंडेशन के प्रसिद्ध अभिलेखाकार मार्टिन स्कोरोइस एवं इटली की प्रसिद्ध संस्था बोलोनिया के साथ मिलकर 1948 में बनी उदयशंकर की फिल्म ‘कल्पना’ का रेस्टोरेशन किया।
इस फिल्म को भी कांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था। उन्होंने श्रीलंका के प्रसिद्ध डॉ लेस्टर जेम्स पेरिस की फिल्म ‘निदानिया’ का भी अपने फाउंडेशन के माध्यम से पुनर्जन्म किया है । शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर का यह कारवां यहीं नहीं रुका और वर्ष 2020 में उन्होंने फिर से फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन,वर्ल्ड सिनेमा फाउंडेशन एवं डी.बोलोनिया की सिनेटिका संस्थान के साथ मिल कर मलयालम फिल्म के सर्वकालीन महान फिल्मकार जी.अरविंदन की दो फिल्में थंप (1978) और कुमूठी (1979 )को पुनर्जन्म देने का निर्णय लिया और इनका रेस्टोरेशन कर एक नया अध्याय रच दिया।
उल्लेखनीय है कि शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर का फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन फिल्म संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहा देश का एकमात्र गैर-सरकारी संगठन है। अमिताभ बच्चन इसके ब्रांड एंबेसडर हैं। फाउंडेशन के सलाहकार परिषद में जानी मानी हस्तियाँ श्याम बेनेगल, कमल हासन, गिरीश कासरावल्ली, गुलजार, गियान लुका फरीनेल्ली, जया बच्चन, क्रज़िस्टोफ ज़नुसी, मार्क, कुमार शाहनी आदि शामिल हैं ।
डूंगरपुर (राजस्थान) राजघराने के सदस्य शिवेंद्र सिंह ने फिल्म अभिनय के क्षेत्र में भी कदम रखा है और वे निदेशक आर बालकी की नई फिल्म “घूमर” में अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय कर रहें है । इस फिल्म में अभिषेक बच्चन और सयामी खेर मुख्य भूमिका निभा रहें हैं। फिल्म में शबाना आजमी और अंगद बेदी भी शामिल हैं।
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