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Dussehra 2021 : बुराई पर सच्चाई की विजय का पर्व है विजयादशमी

Sunita • LAST UPDATED : October 7, 2021, 12:47 pm IST
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Dussehra 2021 : बुराई पर सच्चाई की विजय का पर्व है विजयादशमी

Dussehra 2021

Dussehra 2021 : दशहरा हिन्दुओं का प्रमुख त्योहार है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। इस बार दशहरा 15 अक्टूबर को पूरे देश में मनाया जा रहा है। इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय को प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को ‘विजयादशमी’ के नाम से जाना जाता है।

मान्यता है कि विजयादशमी के दिन सभी प्रकार के मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं और इस दिन जो कार्य शुरू किया जाता है। उसमें सफलता अवश्य मिलती है। यही वजह है कि प्राचीन काल में राजा इसी दिन विजय की कामना से रण यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है और रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। इस दिन बच्चों का अक्षर लेखन, दुकान या घर का निर्माण, गृह प्रवेश, मुंडन, अन्न प्राशन, नामकरण, कारण छेदन, यज्ञोपवीत संस्कार आदि शुभ कार्य किए जा सकते हैं। क्षत्रिय अस्त्र-शास्त्र का पूजन भी विजयादशमी के दिन ही करते हैं।

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पर्व के बारे में मान्यता (Dussehra 2021)

Dussehra 2021

माना जाता है कि तारा उदय होने के साथ ‘विजय’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से भी एक माना गया है। इस दिन लोग नया कार्य भी प्रारम्भ करते हैं साथ ही क्षत्रिय वर्ग के लोगों की ओर से इस दिन शस्त्र-पूजा किये जाने की परम्परा है। इस दिन ब्राम्हण सरस्वती पूजन तथा वैश्य बही पूजन करते हैं। पुराणों में कहा गया है कि दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।

Dussehra की धूम (Dussehra 2021)

दशहरा पर्व की धूम नवरात्रि पर्व के शुरू होने के साथ ही शुरू हो जाती है और इन नौ दिनों में विभिन्न जगहों पर रामलीलाओं का मंचन किया जाता है। दसवें दिन भव्य झांकियों और मेलों के आयोजन के पश्चात रावण के पुतले का दहन कर बुराई के खात्मे का संदेश दिया जाता है। रावण के पुतले के साथ वैसे तो मेघनाथ और कुम्भकरण के पुतले का ही दहन किया जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लोग सामाजिक बुराइयों तथा अन्य मुद्दों से संबंधित पुतले भी फूंकते हैं। कई रामलीलाओं में महंगाई और भ्रष्टाचार के पुतले भी फूंके जाते हैं।

विभिन्न राज्यों में दिखती हैं अलग-अलग छटाएँ (Dussehra 2021)

Dussehra 2021

इस दिन बंगाल में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन का आयोजन किया जाता है। बंगाल में पूरे नवरात्रि में दुर्गोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन शमी वृक्ष का पूजन बेहद शुभ माना गया है साथ ही शाम के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन भी शुभ होता है। इस पर्व की खास बात यह है कि इसे भारत में विभिन्न जगहों पर अलग अलग ढंग से मनाया जाता है। उत्तर भारत में जहां भव्य मेलों के दौरान रावण का पुलना दहन कर हर्षोल्लास मनाया जाता है वहीं दक्षिण भारत में कुछ जगहों पर रावण की पूजा भी की जाती है।

कर्नाटक में तो दशहरा राज्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यहां के मैसूर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। मैसूर में दशहरा उत्सव दस दिनों तक चलता है और इस दौरान लोग अपने घरों, दुकानों और शहर को विभिन्न तरीकों से सजाते हैं। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के कुल्लु का दशहरा भी काफी प्रसिद्ध है। कुल्लू में दशहरे से एक सप्ताह पूर्व ही इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। पंजाब में दशहरे के दिन आगंतुकों का स्वागत पारंपरिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले का दशहरा भी काफी मशहूर है। यहां लोग राम की रावण पर विजय ना मानकर, इसे मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं। यहां के दशहरा पर्व की खास बात यह है कि यह पर्व यहां लगभग सवा दो महीने तक मनाया जाता है। इसके अलावा बंगाल, ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है।

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पर्व से जुड़ी कथा (Dussehra 2021)

एक बार माता पार्वतीजी ने भगवान शिवजी से दशहरे के त्योहार के फल के बारे में पूछा। शिवजी ने उत्तर दिया कि आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल में तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है जो सब इच्छाओं को पूर्ण करने वाला होता है। इस दिन यदि श्रवण नक्षत्र का योग हो तो और भी शुभ है। भगवान श्रीराम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई करके रावण को परास्त किया था। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का गांडीव नामक धनुष धारण किया था।

एक बार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्णजी ने उन्हें बताया कि विजयादशमी के दिन राजा को स्वयं अलंकृत होकर अपने दासों और हाथी-घोड़ों को सजाना चाहिए। उस दिन अपने पुरोहित को साथ लेकर पूर्व दिशा में प्रस्थान करके दूसरे राजा की सीमा में प्रवेश करना चाहिए तथा वहां वास्तु पूजा करके अष्ट दिग्पालों तथा पार्थ देवता की वैदिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। शत्रु की मूर्ति अथवा पुतला बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिए तथा पुरोहित वेद मंत्रों का उच्चारण करें। ब्राह्मणों की पूजा करके हाथी, घोड़ा, अस्त्र, शस्त्र का निरीक्षण करना चाहिए। जो राजा इस विधि से विजय प्राप्त करता है वह सदा अपने शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।

(Dussehra 2021)

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