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इंडिया न्यूज, Festival (International Tea Day) News : सुबह जगाने से लेकर घर में आए मेहमानों की नवाजी तक चाय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक तरह से चाय हमारे लिए दवा का भी काम करती है। क्योंकि सर्दी-जुकाम जैसी कई बीमारियों में सबसे पहले चाय का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कुछ लोगों के लिए चाय जीवन का एक अभिन्न अंग है जो लय जोड़ती है। दुनियाभर में हर बार 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता है। तो चलिए आज अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस के मौके पर जानते है इसके पीछे मनाने की वजह क्या है।
चाय कैमेलिया सिनेंसिस के पौधे से बना एक पेय है। पानी के बाद चाय दुनिया का सबसे ज्यादा पिया जाने वाला पेय है। देश में चाय की शुरुआत 18 वीं सदी से मानी जाती है। सबसे पहले बर्मा, म्यांमार और असम की सीमांत पहाड़ियों पर चाय के पौधे लगाने की शुरुआत हुई। अंग्रेजों के भारत आने के बाद चाय के उत्पादन में तेजी आई। पहले खेती के लिए चीन से बीज मंगवाए जाते थे। कुछ समय बाद असम की मशहूर चाय के बीजों का इस्तेमाल खेती के लिए किया जाने लगा और भारत में बड़े पैमाने पर चाय का उत्पादन शुरू हो गया।
एक कथा अनुसार करीब 2700 ईसापूर्व चीनी शासक शेन नुंग बगीचे में बैठे गर्म पानी पी रहे थे। तभी एक पेड़ की पत्ती उस पानी में आ गिरी जिससे उसका रंग बदला और महक भी उठी। राजा ने चखा तो उन्हें इसका स्वाद बड़ा पसंद आया और इस तरह चाय का आविष्कार हुआ। वहीं एक और कथा के अनुसार छठवीं शताब्दी में चीन के हुनान प्रांत में भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म बिना सोए ध्यान साधना करते थे। वे जागे रहने के लिए एक खास पौधे की पत्तियां चबाते थे और बाद में यही पौधा चाय के पौधे के रूप में पहचाना गया।
वाइट टी शुद्ध और सभी चाय में सबसे कम प्रोसेस्ड होती है। ग्रीन टी सबसे मशहूर और एशिया में खासी पसंद की जाती है। ओलांग टी चीनी चाय है जो चाइनीज रेस्त्रां में परोसी जाती है। ब्लैक टी को केवल गर्म पानी में पत्तियां डालकर या दूध और शक्कर के साथ भी पिया जाता है। हर्बल टी में किसी भी प्रकार की चाय की पत्तियां नहीं डाली जाती हैं।
1824 में बर्मा (म्यांमार) और असम की सीमांत पहाड़ियों पर चाय के पौधे पाए गए। अंग्रेजों ने चाय उत्पादन की शुरूआत 1836 में भारत और 1867 में श्रीलंका में की। पहले खेती के लिए बीज चीन से आते थे लेकिन बाद में असम चाय के बीजों का उपयोग होने लगा। भारत में चाय का उत्पादन मूल रूप से ब्रिटेन के बाजारों में चाय की मांग को पूरा करने के लिए किया गया था। उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध तक भारत में चाय की खपत न के बराबर थी। लेकिन आज भारत के हर चौराहे, नुक्कड़ पर आपको कुछ मिले न मिले चाय जरूर मिल जाएगी।
चाय का वर्गीकरण खेती के स्थान के हिसाब से किया जाता है। जैसे चीनी, जापानी, श्रीलंका, इंडोनेशिया और अफ्रीकन चाय। कुछ नाम क्षेत्र विशेष के अनुसार हैं जैसे भारत में दार्जिलिंग, असम, नीलगिरी, श्रीलंका में उवा और डिम्बुला, चीन के अन्हुई प्रांत के कीमन क्षेत्र की कीमुन चाय और जापान की एंशु चाय।
दरअसल दुनियाभर में चाय उत्पादक देश 2005 से 15 दिसंबर को हर साल अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाते रहे हैं। क्योंकि तब तक इसे संयुक्त राष्ट्र की ओर से मान्यता नहीं दी गई थी। इसे लेकर भारत सरकार ने बड़ी पहल की और 2015 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के माध्यम से आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। जिसे स्वीकार कर लिया गया।
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 दिसंबर 2019 को एक संकल्प प्रस्ताव पारित किया और 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाने की घोषणा कर दी। चाय का उत्पादन तो कई देश करते हैं लेकिन भारत इस मामले में दूसरे पायदान पर है। लेकिन चाय के इस्तेमाल के मामले में भारत पहले स्थान पर है। भारत में चाय की लोकप्रियता और स्वीकार्यता का अंदाजा इससे आसानी से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में सबसे अधिक कुल उत्पादन की लगभग 30 फीसदी चाय की खपत यहां होती है।
दुनियाभर में चाय का सर्वाधिक उत्पादन एशिया महाद्वीप में होता है। जिसमें भारत, चीन, नेपाल, श्रीलंका और केन्या जैसे देश शामिल हैं। इन देशों में यह चाय पीना रोजाना की दिनचर्या से लेकर, समारोहों में भी सामान्य प्रचलन में है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह आसानी से और बेहद कम लागत में उपलब्ध है। पूर्वोत्तर भारत में भी हजारों लोग चाय बागानों में काम करते हैं। उनकी आजीविका चाय पर ही निर्भर है। इसके लिए एक सुचारू रूप से व्यवसाय प्रबंधन होना बेहद जरूरी है। ताकि, चाय उत्पादक और बागानों के गरीब लोगों अपने मेहनत की लागत निकल सकें।
संयुक्त राष्ट्र की ओर से मनाए जाने वाले अन्य दिवसों की तरह ही अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस की भी थीम निर्धारित होती है। अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस 2022 की थीम है ”दुनिया भर में चाय का जश्न” दुनिया भर में चाय का जश्न मनाना है। इसके साथ ही ”चाय दिवस” एक आदर्श वाक्य के साथ मनाया जाता है जो फील्ड से लेकर कप तक है।
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