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Significance of Tulsi Vivah 2021 हिंदू मान्यता के अनुसार तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए अगर किसी ने कन्या दान न किया हो तो उसे जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्या दान करने का पुण्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
मान्यताओं के अनुसार तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराने वाले भक्तों को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से सारी मनोकामना पूरी होती है। किसी के वैवाहिक जीवन में यदि परेशानी आ रही हो तो सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
शिवपुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव के क्रोध के तेज से एक तेजस्वी दैत्य बालक ने जन्म लिया। जिसे आगे चलकर दैत्यराज जलंधर कहा गया। जलंधर का विवाह वृंदा के साथ हुआ था। वृंदा पतिव्रता स्त्री थी। जलंधर को वरदान प्राप्त था कि जब तक उसकी पत्नी का सतीत्व नष्ट नहीं होता। तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती। जलंधर ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था। उसने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया था और अपनी शक्ति की मद में वो बुरी तरह चूर हो चुका था। एक दिन वो कैलाश पर्वत जा पहुंचा।
वहां उसने भगवान शिव के वध का प्रयास किया। भगवान शिव का अंश होने के कारण वो शिव के समान ही बलशाली था। साथ ही उसके पास वृंदा के सतीत्व की शक्ति भी थी। इस कारण भगवान शिव भी उसका वध नहीं कर पा रहे थे। तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से विनती की। इसके बाद भगवान विष्णु जलंधर का वेश धारण करके वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा उन्हें अपना पति समझ बैठीं और पतिव्रता का व्यवहार करने लगीं। इससे उसका सतीत्व भंग हो गया और ऐसा होते ही वृंदा का पति जलंधर युद्ध में हार कर मारा गया।
भगवान विष्णु की लीला का पता चलने पर वृंदा क्रोधित हो गई और उन्होंने भगवान विष्णु को पाषाण होने का श्राप दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु पत्थर बन गए। भगवान के पत्थर बन जाने से सृष्टि में असंतुलन होने लगा। इसके बाद सभी देवता वृंदा के पास पहुंचे और उनसे विष्णु भगवान को श्राप मुक्त करने की विनती करने लगे। तब वृंदा ने उन्हें श्राप मुक्त कर दिया और स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं वहां तुलसी का पौधा उग आया।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि वृंदा तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। तुम्हारा श्राप साकार करने के लिए मेरा एक रूप पाषाण के रूप में धरती पर रहेगा। जिसे शालिग्राम के नाम से जाना जाएगा। मेरे इस रूप में तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी। मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करूंगा। तब से तुलसी को दैवीय पौधा मानकर उनकी पूजा की जाने लगी और देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी का शालीग्राम के साथ विवाह की परंपरा शुरू हो गई।
माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से कन्या दान के समान पुण्य प्राप्त होता है। यदि आपने आज तक कन्यादान नहीं किया हो तो तुलसी विवाह करके आप इस पुण्य को अर्जित कर सकते हैं।
इसके अलावा तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराने वाले भक्तों को अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इससे वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है।
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