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History of Delhi Gol Dak Khana: दिल्ली की भागती-दौड़ती जिंदगी और चौड़ी सड़कों के बीच एक ऐसी इमारत खड़ी है, जो चुपचाप इतिहास की कहानियां समेटे हुए है. इसे लोग गोल डाकखाना के नाम से जानते हैं। यह सिर्फ एक डाकघर नहीं, बल्कि ब्रिटिश शासन के दौरान नई दिल्ली के निर्माण और संचार क्रांति का अहम प्रतीक रहा हैआ. ज भी यह इमारत अपने अनोखे डिजाइन और भव्यता से लोगों को आकर्षित करती है.
कैसे पड़ी गोल डाकखाने की नींव?
साल 1911 में जब ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने कोलकाता से दिल्ली को राजधानी घोषित किया, तो नई दिल्ली के निर्माण की योजनाएं भी शुरू हुईं। इसी दौरान डाक व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यहां वायसराय कैंप पोस्ट ऑफिस स्थापित किया गया। शुरुआत में यह अस्थायी था, लेकिन 1929 से 1931 के बीच इसे एक स्थायी और भव्य इमारत का रूप दिया गया। आखिरकार, 1934 में यह जगह नई दिल्ली जनरल पोस्ट ऑफिस (GPO) के रूप में पूरी तरह कार्यरत हो गई.
क्यों कहलाता है गोल डाकखाना?
नाम सुनकर लगता है कि यह इमारत पूरी तरह गोल होगी, लेकिन असल में इसका ढांचा अष्टकोणीय (आठ कोनों वाला) है. ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स ने इसे इस तरह डिज़ाइन किया कि दूर से यह गोल दिखाई दे. इसकी अनोखी बनावट ने आसपास के इलाके को भी पहचान दी और इसी कारण पड़ोस का इलाका गोले मार्केट के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
वास्तुकला का अद्भुत नमूना
इस इमारत का डिज़ाइन उस दौर के नामी आर्किटेक्ट रॉबर्ट टॉर रसेल ने तैयार किया था. उन्होंने इंडो-सरासेनिक स्टाइल का प्रयोग किया, जिसमें भारतीय और ब्रिटिश स्थापत्य कला का सुंदर मेल नजर आता है. ऊंची मेहराबें, कोनों पर बने छोटे गुंबद और एक विशाल घड़ी वाला टॉवर इसे खास पहचान देते हैं. करीब 99,000 वर्ग फुट में फैला यह भवन उस दौर की इंजीनियरिंग और कलात्मकता का शानदार उदाहरण है.
आजादी के बाद से अब तक का सफर
स्वतंत्रता के बाद भी गोल डाकखाना दिल्ली की डाक व्यवस्था का अहम केंद्र बना रहा. हालांकि समय बदलने के साथ डाक की अहमियत कम हुई और डिजिटल संचार ने इसकी जगह ले ली, लेकिन इस इमारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान कायम रही. हाल के वर्षों में यहां बने पुराने आवास और हिस्सों को बहाल करने की योजनाएं भी सामने आई हैं, जिससे यह विरासत आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सके.
आज का गोल डाकखाना
आज गोल डाकखाना सिर्फ एक डाकघर नहीं, बल्कि दिल्ली का एक हेरिटेज लैंडमार्क है. यहां आने वाले लोग पत्र डालने से ज्यादा इसकी खूबसूरती को निहारते हैं और तस्वीरें खींचना नहीं भूलते. यह जगह हमें याद दिलाती है कि संचार का सफर कितनी दूर तक आया है चिट्ठियों से लेकर स्मार्टफोन तक.