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Nepal में Diwali की जगह मनाया जाता है ये खास त्योहार, जानें इस अनोखी परंपरा का महत्व

Diwali 2025: भारत से सटे नेपाल में दिवाली की जगह तिहार नाम का त्योहार मनाया जाता है. आज हम जानेंगे की इस अनोखी परंपरा का महत्व क्या है.

Written By: shristi S
Last Updated: 2025-10-14 14:09:55

Nepal Diwali 2025: दिवाली (Diwali) यानी रोशनी का पर्व, जिसे भारत सहित कई देशों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, सिर्फ दीपक जलाने और लक्ष्मी-गणेश की पूजा तक सीमित नहीं है. दक्षिण एशिया के एक पड़ोसी देश नेपाल में यही पर्व एक बिल्कुल अलग और अनोखे अंदाज़ में मनाया जाता है. वहां दिवाली को “तिहार” कहा जाता है. पांच दिनों तक चलने वाला यह उत्सव केवल रोशनी और समृद्धि का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि प्रकृति, पशु-पक्षियों और पारिवारिक रिश्तों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का संदेश भी देता है. तिहार को “यम पंचक” भी कहा जाता है क्योंकि यह मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना से जुड़ा हुआ है. हर दिन का एक विशेष महत्व होता है और हर दिन को समर्पित किया गया है किसी न किसी देवता, पशु या रिश्ते को. 

 काग तिहार का पहला दिन

तिहार की शुरुआत होती है काग तिहार से. हिंदू मान्यताओं में कौओं को यमराज का दूत माना जाता है. ऐसा विश्वास है कि अगर काग खुश हों तो परिवार में अशुभ घटनाएं नहीं होतीं और सौभाग्य आता है. इस दिन लोग सुबह-सुबह कौओं को मिठाई, चावल और अन्य अनाज खिलाते हैं. इसे आने वाले वर्ष में सुख-समृद्धि और दुखों के नाश का प्रतीक माना जाता है.

काग तिहार का दूसरा दिन

तिहार का दूसरा दिन समर्पित होता है कुत्तों को. नेपाल में लोग मानते हैं कि कुत्ते यमराज के रक्षक और संदेशवाहक होते हैं. इस दिन उन्हें सम्मानपूर्वक फूलों की माला पहनाई जाती है, माथे पर तिलक लगाया जाता है और स्वादिष्ट भोजन खिलाया जाता है. यह दिन निष्ठा और सुरक्षा के प्रतीक को श्रद्धांजलि देने का दिन होता है.

काग तिहार का तीसरा दिन

तीसरे दिन को गाय तिहार कहा जाता है. गाय को हिंदू धर्म में धन, समृद्धि और मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. सुबह गायों की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें मिठाई व फूलों से सजाया जाता है. शाम को घर-आंगन में दीयों और रोशनी से सजावट की जाती है और श्रद्धापूर्वक लक्ष्मी पूजा की जाती है. यह दिन तिहार का सबसे भव्य और रोशन दिन होता है, जो भारत की दिवाली से मिलता-जुलता है.

काग तिहार का  चौथा दिन

चौथे दिन को गोरु तिहार कहा जाता है. यह दिन उन बैलों और पशुओं के प्रति कृतज्ञता जताने का अवसर है जो कृषि में अहम भूमिका निभाते हैं. किसान उनके माथे पर तिलक लगाते हैं, उन्हें फूलों की माला पहनाते हैं और विशेष भोजन खिलाते हैं. यह दिन मानव और पशुओं के सह-अस्तित्व और सहयोग को सम्मानित करता है.

कांग तिहार का पांचवां दिन

तिहार का अंतिम और पांचवां दिन होता है भाई दूज. यह भारत में मनाए जाने वाले भाई दूज की ही तरह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है. बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं, उनकी लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं. भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और साथ में स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लिया जाता है. यह दिन परिवारिक रिश्तों को और गहरा करता है.

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