किसान प्रतिनिधियों ने किया आंदोलन खत्म करने का ऐलान
इंडिया न्यूज, करनाल:
बसताड़ा टोल प्लाजा घरौंडा में पुलिस द्वारा किसानों पर किए गए लाठीचार्ज के मामले की जांच सरकार रिटायर्ड जच से करवाएगी। जांच एक माह में पूरी कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी। जब तक जांच जारी रहेंगी, तब तक आईएएस आयुष सिन्हा अवकाश पर ही रहेंगे। इसके अलावा मृतक किसान सुशील काजल के परिवार के दो सदस्यों को डीसी रेट पर नौकरी सहित मुआवजा दिया जाएगा। वहीं लाठीचार्ज में घायल किसानों को 2-2 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। जिला सचिवालय के डीसी के कॉन्फ्रेंस हॉल में किसान प्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में एसीएस देवेंद्र कुमार ने उपरोक्त मांगों को माने जाने का ऐलान किया। उन्होंने बताया कि शुक्रवार देर रात दोनों ही पक्षों के बीच सकारात्मक माहौल में बातचीत हुई और सम्मानजनक समझौता हुआ। देर रात ही मांगों को लेकर लगभग सहमति बन चुकी थी, लेकिन किसान प्रतिनिधियों ने सुबह 9 बजे तक समय की मांग की थी, ताकि संयुक्त किसान मोर्चा के अन्य प्रतिनिधियों से बातचीत कर राय मशवरा किया जा सके। वहीं सरकार द्वारा किसानों की मांगें माने जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों ने जिला सचिवालय के समक्ष 5 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन को खत्म करने का ऐलान कर दिया। संयुक्त प्रेसवार्ता में एसीएस देवेंद्र कुमार, डीसी निशांत यादव, एसपी गंगा राम पूनिया व किसान नेताओं में भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी, रतनमान, रामपाल चहल, सुरेश कौंथ, जोगिंद्र झिंडा सहित किसान नेता शामिल रहे।
आखिरकार सरकार को किसानों की मांगों को मानना पड़ा
सरकार शुरू से ही आंदोलन को लेकर कड़ा रुख अपनाती हुई दिख रही थी, लेकिन किसानों ने जिस तरीके से जिला सचिवालय के समक्ष पहुंचकर मजबूत मोर्चाबंदी की। उसे देखते सरकार धीरे-धीरे पीछे हटती चली गई। नतीजन किसानों की मांगों को मान लिया गया। सरकार को फीड बैक मिल चुका था कि जिला सचिवालय के समक्ष चल रहे धरना प्रदर्शन का रूप कम न होकर बढ़ता जाएगा, जो आने वाले दिनों में सरकार को कहीं परेशानी में न डाल दे। इसे देखते हुए सरकार को किसानों की मांगें मानने के सिवा कोई और दूसरा रास्ता नजर नहीं आया।
वहीं दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा के नेतागण भी करनाल में चल रही मोर्चाबंदी को लम्बी नहीं चलाना चाहते थे, उन्हें अंदेशा था कि अगर करनाल की मोर्चाबंदी लम्बी चलेगी तो दिल्ली बॉर्डरों पर चल रहे आंदोलन की धार कहीं कम न हो जाए। सारा ध्यान करनाल पर ही केंद्रित न हो जाए।
10 दौर की बातचीत के बाद बनी सहमति
किसानों पर लाठीचार्ज के बाद चल रहे गतिरोध थामने के लिए किसान प्रतिनिधियों राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, योगेंद्र यादव व बलबीर राजोवाल सहित अन्य किसान नेताओं की प्रशासन के साथ 7-8 सितम्बर को 6 दौर की करीब 6 घंटों तक बातचीत चली, बातचीत बेनतीजा निकली। बातचीत का दौर चलता रहा, जिला सचिवालय के बाहर पक्की मोर्चाबंदी होती रही। मांगें न माने जाने के बाद किसान नेताओं ने साफ ऐलान कर दिया था कि वे करनाल के प्रशासनिक अधिकारी के साथ बातचीत नहीं करेंगे।
सरकार ने एसीएस देवेंद्र कुमार को भेजा था बातचीत के लिए
जिला सचिवालय के समक्ष मजबूत होती मोर्चाबंदी को देखते हुए सरकार कहीं न कहीं बैकफूट पर दिखाई दी, क्योंकि करनाल विधानसभा क्षेत्र मुख्यमंत्री मनोहर लाल का है। मनोहर लाल करनाल विधानसभा क्षेत्र से चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं। सीएम सिटी होने के चलते सरकार पर बढ़ते आंदोलन को लेकर दवाब था। यही कारण था कि सरकार किसान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत का दौर जारी रखना चाहती थी और चल रहे गतिरोध को थामने के हर जत्न करना चाहती थी। इसी के चलते सरकार ने एसीएस देवेंद्र कुमार को किसान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के लिए भेजा।
प्रशासनिक अधिकारियों को ही बातचीत के लिए आगे रखा
हालांकि आंदोलन समाप्त हो गया, बावजूद सरकार जनता को ये दिखाना चाहती थी कि वे किसी भी प्रकार से झूकने को तैयार नहीं है। यही कारण रहा कि सरकार के मंत्रियों-विधायकों व सांसदों में से किसी भी प्रतिनिधि की ड्यूटी किसानों के साथ चल रहे विवाद को निपटाने में नहीं लगाई। सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों को ही किसानों के साथ बातचीत के लिए आगे रखा, पीछे से ही अधिकारियों को गतिरोध दूर करने के दिशा-निर्देश जारी किए जाते रहे।
करनाल में आंदोलन लम्बा चलता तो शायद सरकारी कार्यक्रम न हो पाते
जिला सचिवालय के समक्ष मोर्चाबंदी लगाए बैठे किसानों के आंदोलन को देखते हुए सरकार को डर था कि अगर मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों के कार्यक्रम करनाल सिटी में होंगे। कहीं उन कार्यक्रमों में किसान सीधे तौर पर परेशानी न खड़ी कर दें, क्योंकि किसान बसताड़ा टोल प्लाजा से करनाल सिटी के अंदर तक धरना लगाकर बैठ चुके थे। कानून व्यवस्था के बिगड़ने के डर से सरकार ने सीधे बातचीत न करके प्रशासनिक अधिकारियों को आगे करके बातचीत की।
सुरक्षा व्यवस्था के बिगड़ने का भी प्रशासन को था भय
किसानों के तीव्र होते आंदोलन को देखते हुए प्रशासन के हाथ-पांव फूले हुए थे, उन्हें सुरक्षा व्यवस्था के बिगड़ने का डर था। ऐहतियात के तौर पर हजारों बीएसएफ के जवानों के साथ पुलिसबलों की भारी संख्या में तैनाती की हुई थी। ड्रोन से भी नजर रखी जा रही थी, सिविल वर्दी में खुफिया एजेंसियों के कर्मचारी हर जगह नजर रखे हुए थे। हालांकि प्रशासन किसानों से लगातार आंदोलन को शांतिपूर्वक रखने की अपील कर वार्ता के लिए बुलाता रहा। प्रशासन के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यही थी कि किसान अपनी मांगों पर अड़े थे।