A Spot Of Blood Can Also Be Cancer भारत में देखा गया है कि महिलाएं अक्सर अपनी बीमारियों को लेकर जागरुकता नहीं दिखातीं। वे या तो अपनी बीमारियों को हल्के में लेती हैं या फिर उनका समाधान महिलाओं की आपसी बातचीत में ढूंढती हैं। इसका असर यह होता है कि उनकी छोटी सी बीमारी जिसका इलाज आसान हो सकता था, एक गंभीर बीमारी में बदल जाती है।
आजकल महिलाओं की ऐसी ही एक खास परेशानी के मामले काफी ज्यादा सामने आ रहे हैं। महिलाओं में पीरियड बंद होने या रजोनिवृत्ति के बाद अचानक फिर से ब्लीडिंग होने, कई महीने बाद खून आने या खून का धब्बा आने की समस्याएं सामने आ रही हैं। जिसे महिलाएं सामान्य बात मानकर टाल देती हैं, जबकि ये एक बड़ी परेशानी का संकेत हो सकता है।
(A Spot Of Blood Can Also Be Cancer)
एक्सपर्ट का कहना है कि आज पोस्ट मीनोपॉज ब्लीडिंग महिलाओं में काफी ज्यादा सामने आ रहा है। ध्यान देने वाली बात है कि यह सामान्य चीज नहीं है बल्कि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का संकेत होता है। वर्तमान में 50-65 साल की ऐसी बड़ी संख्या में महिला मरीज सामने आ रही हैं जिन्हें मेनोपॉज के बाद ये समस्या हुई है लेकिन उन्होंने समय रहते न तो इसे गंभीरता से लिया और न ही चिकित्सकों से संपर्क किया। जिसके चलते उनकी बीमारी बढ़ जाती है और कैंसर या अन्य क्रिटिकल हालात पैदा हो जाते हैं।
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लंबे समय तक पीरियड होते रहने के कारण ये महिलाओं की आदत में आ जाता है। इस दौरान प्रेग्नेंसी और फिर बच्चे होने के बाद भी कई बार देखा जाता है कि महिलाओं में पीरियड कुछ समय के लिए टल जाता है और फिर शुरू हो जाता है।
ऐसे में इन अनियमितताओं को देखते-देखते जब मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति का समय आता है तो उस दौरान भी महिलाओं की ये मानसिकता काम करती है और वे इससे संबंधित किसी भी बदलाव को न तो किसी को बताती हैं और न ही इसे लेकर बहुत जागरुकता दिखाती हैं। ऐसे समय में कई चीजें ऐसी हो जाती हैं जो उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं। हाल ही में ऐसे कई केस आ रहे हैं।
47 साल के बाद या इसके आसपास महिलाओं का महीना आना बंद होता है। फिर इसके कई महीनों बाद अचानक उन्हें फिर से ब्लीडिंग शुरू हो जाती है या वैजाइना से खून आता है तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को लगता है कि ये सामान्य बात है।
जबकि ऐसा नहीं है। मेनोपॉज होने के 6 महीने के बाद अगर खून का एक धब्बा भी आता है तो वह किसी गंभीर बीमारी का लक्षण होता है न कि पीरियड से संबंधित घटना। महिलाओं में अभी भी इसे लेकर बहुत कम जागरुकता है। इन मसलों को लेकर झिझक बहुत ज्यादा है।
यहां तक कि कई बार देखा गया है कि महिलाएं ये बातें अपने जीवनसाथी से भी शेयर नहीं करतीं। जिसका परिणाम यह होता है कि महिलाएं बच्चेदानी के अंदर होने वाले एंडोमीट्रिएल कैंसर की एडवांस स्टेज में पहुंच जाती हैं।
विश्व के अन्य देशों में महिलाओं में मेनोपोज़ की औसत उम्र 49-51 मानी गई है जबकि भारतीय महिलाओं में मेनोपोज़ 47-49 की उम्र को औसत माना गया है। भारत में पहले ही औसत उम्र बाकी सबसे कम है।
वहीं कई बार देखा गया है कि 40 से पहले या इसके आसपास भी यहां की महिलाओं को मेनोपॉज हो जाता है। जैसे सभी महिलाओं की गर्भावस्था एक जैसी नहीं होती ऐसे ही रजोनिवृत्ति का समय भी एक जैसा नहीं होता। इसी तरह पीरियड का टाइम टेबल भी अलग-अलग होता है।
बच्चेदानी के अंदर एंडोमीट्रिएल कैंसर।. गर्भाशय या वेजाइना में कैंसर। सर्वाइकल कैंसर। जननांगों में सुखाव आना। गर्भ लाइनिंग में सूजन।
महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे मेनोपॉज के बाद बीपी, थायरॉइड, शुगर, वजन, पैपस्मीयर, मैमोग्राफी आदि जांच कराती रहें। इसके साथ ही लगातार व्यायाम करें और खान-पान का विशेष ध्यान रखें।
वहीं जो सबसे जरूरी है वह यह है कि अगर मासिक धर्म बंद होने के 6 महीने बाद भी कोई ब्लीडिंग हो, फिर वह 50 से 65 के बीच या चाहे किसी भी उम्र में हो, उसकी तत्काल जांच कराएं और लापरवाही न बरतें। इससे कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।
(A Spot Of Blood Can Also Be Cancer)
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