क्या आया रिसर्च में सामने?
शोधकर्ताओं ने चूहों पर एक प्रयोग किया. उन्होंने कुछ नर चूहों को SARS-CoV-2 से संक्रमित किया और फिर उन्हें पूरी तरह ठीक होने दिया. इसके बाद इन संक्रमित नर चूहों को स्वस्थ मादा चूहों के साथ प्रजनन करवाया गया.
नतीजे बताते हैं कि इन संक्रमित नर चूहों से जन्मी संतानें, उन चूहों की संतानों की तुलना में अधिक चिंतित व्यवहार प्रदर्शित कर रही थीं, जिनके पिता कभी संक्रमण का शिकार नहीं हुए थे. खासकर मादा संतानों में तनाव से जुड़े जीनों में महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया. मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस क्षेत्र में भी जीन की सक्रियता में बड़े बदलाव दर्ज किए गए. यह हिस्सा हमारे भावनाओं और मूड को नियंत्रित करता है, जिससे संतानों के व्यवहार पर सीधा असर पड़ता है.
बदलाव क्यों और कैसे होते हैं?
वैज्ञानिकों ने पाया कि COVID-19 संक्रमण के बाद पुरुषों के शुक्राणुओं में मौजूद RNA, विशेषकर नॉन-कोडिंग RNA, बदल जाते हैं. नॉन-कोडिंग RNA सीधे प्रोटीन का निर्माण नहीं करते, लेकिन ये यह तय करते हैं कि कौन सा जीन सक्रिय होगा और कौन सा नहीं. जीन ही शरीर के विकास और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं. इस प्रकार, जब शुक्राणु में RNA बदल जाते हैं, तो अगली पीढ़ी के मस्तिष्क और व्यवहार पर असर पड़ सकता है. इसे वैज्ञानिक भाषा में एपिजेनेटिक बदलाव कहा जाता है.
इंसानों के लिए संभावित प्रभाव
अगला कदम यह होगा कि इंसानों में इसी तरह की जांच की जाए. शोधकर्ताओं को यह देखने की जरूरत है कि COVID-19 से ठीक हुए पुरुषों के शुक्राणुओं में इसी तरह के बदलाव हैं या नहीं और क्या उनके बच्चों में मानसिक या व्यवहारिक प्रभाव देखे जा सकते हैं. यदि यह प्रक्रिया इंसानों में भी समान रूप से चलती है, तो इसका प्रभाव लाखों परिवारों पर हो सकता है. यह रिसर्च COVID-19 को सिर्फ एक सांस संबंधी बीमारी के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसा वायरस के रूप में देखने की चेतावनी देती है, जो मानव प्रजनन और अगली पीढ़ियों के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है.