नेचुरोपैथ कौशल
Goolar ke Fayade गूलर का पेड़ सारे संसार मे बहुत प्रसिद्ध है। पके हुए गूलर की सब्जी बनायी जाती है। गूलर की छाया ठंडी और सुखकारी होती है। गूलर की लकड़ी बहुत मजबूत और चिकनी होती है। गूलर के फलों का आकार अंजीर के फल जैसा होता है। गूलर का पेड़ अधिकतर झरने या पानी के स्थान के आस-पास होता है।
गूलर के पेड़ के पास कुंआ खोदने से पानी जल्दी निकल आता है। गूलर की छाया में खुदे हुए कुंऐ का पानी बहुत गुणकारी होता है और इसमें बहुत से रोगों को नष्ट करने के गुण पाये जाते हैं। गूलर का पेड़ 6 मीटर से 12 मीटर तक ऊंचा होता है।
(Goolar ke Fayade)
गूलर का तना, मोटा, लम्बा, तथा टेढ़ा होता है। गूलर की छाल लाल व मटमैली रंग की होती है। गूलर के पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे, 1.5 से 3 इंच चौडे़, नुकीले, चिकने और चमकीले होते हैं। इसके फूल अक्सर दिखाई नहीं देते हैं।
गूलर के फल गर्मी के मौसम में 1 से 2 इंच व्यास के गोलाकार अंजीर के फल के समान होते हैं तथा ये गुच्छों में होते हैं। गूलर के कच्चे फल हरे रंग और पके फल लाल रंग के होते हैं। गूलर के फल को थोड़ा सा दबाते ही वह फूट जाता है और इसमें सूक्ष्म कीटाणु भी पाये जाते हैं।
गूलर की प्रकृति ठंडी होती है तथा यह घाव को भरने वाला होता है। यह रूखा तथा स्वाद में मीठा, फीका तथा भारी होता है। यह कफ, पित्त, अतिसार और योनि रोग को ठीक करता है।
गूलर की छाल की प्रकृति ठंडी होती है। इसके छाल में दूध भर रहता है तथा यह स्वाद में फीकी होती है। यह गर्भ के लिए लाभकारी तथा घावों को भरने वाली होती है।
कच्चे गूलर स्तंभक, फीके और गुणकारी होते हैं तथा यह प्यास को खत्म करने वाला, पित्त, कफ और रक्तविकार को भी दूर करने वाला होता है।
गूलर के फल स्वाद में मीठे तथा फीके होते हैं। साधारण गूलर की प्रकृति ठंडी होती हैं। यह पित्त, प्यास और मोह को उत्पन्न करने वाला होता है! उल्टी, रक्तस्राव और प्रदर रोग को यह ठीक कर सकता है।
पके गूलर स्वाद में फीका तथा मीठा होता है। यह पेट में कीडे़ पैदा करने वाला होता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है।
यह भूख को बढ़ाने वाला होता है।
यह कफ को उत्पन्न करने वाला तथा भोजन करने की रुचि को बढ़ाने वाला होता है।
यह प्यास और थकावट को दूर करने वाला होता है।
यह सूखी खांसी और शरीर की जकड़न को दूर कर सकता है!
गूलर के लकड़ी के राख को गर्मी के मौसम में होने वाले घावों पर लगाने से लाभ मिलता है।
गूलर का अधिक मात्रा में सेवन करने से बुखार पैदा हो सकता है।
गूलर का दूध जकड़न वाले अंग पर लगाकर इस पर रूई चिपकाएं इससे लाभ मिलेगा।
पके हुए हुए गूलर, गुड़ या शहद के साथ खाना चाहिए अथवा गूलर की जड़ को घिसकर चीनी के साथ खाने से लाभ मिलेगा और रक्तपित्त दोष दूर हो जाएगा।
गूलर की छाल के रस में घी मिलाकर गर्म करके रोगी को इसका सेवन कराने से सिंगिया का जहर उतर जाता है।
गूलर के दूध से आंखों पर लेप करें इससे आंखों का दर्द दूर होता है
फोड़े पर गूलर का दूध लगाकर उस पर पतला कागज चिपकाने से फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।
गूलर की 4-5 बूंद दूध को बताशे में डालकर दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार (दस्त) के रोग में लाभ मिलता है।
बच्चों के अतिसार (दस्त) तथा रक्तातिसार (खूनी दस्त), वमन (उल्टी) और कमजोरी में गूलर का दूध 10 बूंद सुबह और शाम दूध में मिलाकर सेवन कराएं इससे लाभ मिलता है।
गूलर की जड़ का पानी गर्भवती स्त्री को सेवन कराएं इससे उसका अतिसार रोग ठीक हो जाता है।
पके हुए कीड़े रहित गूलरों में पीसी हुई मिश्री डालकर सुबह के समय खाने से गर्मी में राहत मिलती है।
गर्मी के कारण जीभ पर छाले होने पर गूलर के कांटे और मिश्री को पीसकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
गूलर के रस में मिश्री डालकर बच्चों को पिलाने से शीतला (चेचक) की गर्मी दूर होती है।
भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) में गूलर की जड़ का रस चीनी के साथ पिलाने से लाभ मिलता है।
जहां पर बिच्छू ने काटा हो उस स्थान पर गूलर के अंकुरों को पीसकर लगाए इससे जहर चढ़ता नहीं है और दर्द से आराम मिलता है।
विसूचिका (हैजा) के रोगी को गूलर का रस पिलाने से रोगी को आराम मिलता है।
गूलर और कपास के दूध को मिलाकर कान पर लगाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को पीसकर इसे मीठे या दही मिला दें और इसमें मिश्री मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन करें इससे कंठमाला के रोग से मुक्ति मिलती है।
गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को गाय के ताजे दूध में पीसकर इसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर चेचक से पीड़ित रोगी को पिलाये इससे उसका यह रोग ठीक हो जाएगा।
पके गूलर में चीनी भरकर घी में तलें, इसके बाद इस पर काली मिर्च तथा इलायची के दानों का आधा आधा ग्राम चूर्ण छिड़कर प्रतिदिन सुबह के समय में सेवन करें तथा इसके बाद बैंगन का रस मुंह पर लगाएं इससे नाक से खून गिरना बंद हो जाता है।
गूलर का पेड़, शाल पेड़, अर्जुन पेड़, और कुड़े के पड़े की पेड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर चटनी बना लें। इन सब चीजों का काढ़ा भी बनाकर रख लें। इसके बाद इस चटनी तथा इससे 4 गुना ज्यादा घी और घी से 4 गुना ज्यादा काढ़े को कढ़ाही में डालकर पकाएं। पकने पर जब घी के बराबर मात्रा रह तो इसे उतार कर छान लें। अगर नाक पक गई हो तो इस घी को नाक पर लगाने से बहुत जल्दी आराम मिलता है।
बच्चों के गाल की सूजन को दूर करने के लिए उनके गाल पर गूलर के दूध का लेप करें इससे लाभ मिलेगा।
(Goolar ke Fayade)
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