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Men Andropause Vs Female Menopause जब महिलाओं का मासिक धर्म चक्र प्राकृतिक रूप से पूरी तरह बंद हो जाता है, ऐसी स्थिति को मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति बोलते हैं। अब यहां सवाल यह है कि महिलाओं की तरह क्या पुरुषों को भी मेनोपॉज होते हैं। पुरुष मेनोपॉज होता है या नहीं होता है, यह अपने आप में कंट्रोवर्सी है। डॉक्टर्स के एक वर्ग का मानना है कि पुरुषों में मेनोपॉज होता है, जिसे हम एंड्रोपॉज बोलते हैं। दूसरे वर्ग एंड्रोपॉज की थ्योरी को स्वीकार नहीं करता है। 40 साल के बाद सामान्यतय: कुछ हार्मोनल बदलाव आते है। इन बदलाव की वजह से आने वाले लक्षणों और टेस्टोस्टेरोन कम होने की बात को एंड्रोपॉज से जोड़कर देखा जाता है।
मूड चेंज होना, कमजोरी आना, आलस आना, बदन में दर्द रहना, हड्डियों का कमजोर होना, काम करने में मन नहीं लगना, यौन उत्तेजना कम होना, डिप्रेस फील होना आदि।
40 साल की उम्र पार कर चुका कोई मरीज अपने डॉक्टर के पास जाकर काम में मन नहीं लगने, धकान होने या डिप्रेस होने, हड्डियो के कमजोर होने, बदन में दर्द होने जैसे अन्य सभी लक्षण बताता है, तो बहुत संभव है कि ये लक्षण किसी इंफेक्शन से हुई बीमारी या मेटाबॉलिक बीमारियों के चलते हों। लिहाजा, किसी भी मरीज पर एंड्रोपॉज का लेबल लगाने से पहले बहुत जरूर है कि थॉरोली इंवेस्टिगेशन किया जाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि यह सभी लक्षण किसी अन्य बीमारी या परेशानी की वजह से हो रहे हों और हम मरीज पर एंड्रोपॉज का लेबल लगा दें। (Men Andropause Vs Female Menopause)
एंड्रोपॉज के इलाज के तौर पर टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट की बात आती है। यहां भी कई तरह की समस्याएं हैं। पहली समस्या यह है कि हर लैब का टेस्टोस्टेरोन की जांच करने का तरीका ही नहीं, उनकी वैल्यूज भी अलग है। ऐसे में टेस्टोस्टेरोन की सही वैल्यूपता कर पाना अपने आप में बड़ी चुनौती है। यदि एक मरीज एक ही लैब से सारी जांच कराए तो शायद टेस्टोस्टेरोन की सही वैल्यू पता चल सके। दूसरी बात आती है टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट की। यदि किसी का टेस्टोस्टेरोन कम हैं तो उसे टेस्टोस्टेरोन देना चाहिए या नहीं देना चाहिए, यह भी अपने आप में एक बार फिर कंट्रोवर्सियल सब्जेक्ट है। (Men Andropause Vs Female Menopause)
टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट के लिए बहुत सारे इंजेक्टेबल विकल्प मौजूद हैं। प्लेसमेंट के लिए बहुत सारी क्रीम्स और पैचेज भी आते हैं। इंजेक्शन वाला विकल्प थोड़ा मुश्किल और दर्द भरा होता है। वहीं, अगर इसको प्रॉपर गाइडेंस में नहीं लिया गया तो प्रोस्टेट कैंसर का खतरा भी होता है। प्लेसमेंट के बाद कई बार मूड स्विग्स, गुस्सा आना, नींद कम आना आदि के लक्षण भी देखे जाते है। वहीं अभी तक इस बात की गारंटी भी नहीं है कि टेस्टोस्टेरोन प्लेसमेंट के बाद आपकी समस्या का निदान हो जाए। ऐसे स्थित में मरीज को डिप्रेशन या एरेक्टाइल डिस्फंशन ट्रीटमेंट की तरफ भी जाना पड़ सकता है। (Men Andropause Vs Female Menopause)
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