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दुनिया भर में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मेंटल प्रोब्लम्स (मानसिक दिक्कतों) को लेकर लोगों के बीच जागरूकता फैलाना है। ताकि लोग मानसिक परेशानियों के प्रति जागरूक हों और समय रहते डॉक्टर्स से सहायता ले सकें। इसके साथ ही मानसिक परेशानियों से जूझ रहे लोगों की कठिनाई को उनके दोस्तों, रिश्तेदारों और सोसाइटी को भी समझाया जा सके।
हालांकि हमारे देश में मानसिक बीमारियों को लोग नजरंदाज करते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है और मानसिक बीमारियों का इलाज करने के लिए डॉक्टर, नर्स व काउंसलर्स की भारी कमी है। साथ ही ये देखा गया है कि अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं होती हैं।
साल 2015-16 में हुए एक नेशनल सर्वे के अनुसार, भारत में हर 8 में एक व्यक्ति यानी करीब 17.5 करोड़ लोग, किसी एक तरह की मानसिक बीमारी से प्रभावित हैं। इनमें से 2.5 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो गंभीर बीमारी से प्रभावित हैं, जिन्हें सेक्सोलॉजिस्ट द्वारा नियमित इलाज की जरूरत है और बाकी बचे 15 करोड़ लोगों को, जिन्हें गंभीर मानसिक बीमारी नहीं है, उन्हें भी मजबूत और सुचारू आम स्वास्थ्य सेवाओं से फायदा मिल सकता है।
यहां ये बात भी गौर करने वाली है कि ज्यादातर लोग अपनी मानसिक बीमारी को छिपाते हैं। वो स्वास्थ्य सेवाओं के संपर्क में ही नहीं आते हैं, जिसकी वजह है हमारा समाज. जो मानसिक बीमारी को नीची नजर से देखता है। पता नहीं क्यों लोग मानसिक रोगों को भी दिल, लीवर और फेफड़े जुड़ी बीमारियों की तरह नहीं देखते? ये भी अन्य बीमारियों की तरह ही इलाज से ठीक हो सकती है।
कोरोना महामारी के बाद तो मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत बढ़ गई है। समय है जब राज्य सरकार मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करें और इनके लिए सरकारी बजट आबंटन बढ़ाएं। ऐसी नीतियां बनाई जाए, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता लोगों के करीब बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से पहुंचे।
(Mental health)
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