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Pneumonia: बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए खतरनाक है 'निमोनिया'

Suman Tiwari • LAST UPDATED : January 12, 2022, 12:36 pm IST
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Pneumonia: बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए खतरनाक है 'निमोनिया'

Pneumonia

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Pneumonia: जब कोई वायरस, बैक्टीरिया या कभी-कभी फंगी फेफड़ों में पहुंच कर विकसित होना शुरू कर देते हैं, तो फेफड़ों में इन्फेक्शन होने लगता है। फेफड़ों में हवा की छोटी-छोटी थैलियां होती हैं जिन्हें एयर सैक कहा जाता है। फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण ये थैलियां मवाद या अन्य द्रव भर जाती हैं, जिसके कारण बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। अगर आपका बच्चा भी लगातार खांस रहा है, उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही है, उसे बुखार भी है, तो यह निमोनिया होने के लक्षण हो सकते हैं।

क्या है साइलेंट किलर (what is silent killer)

pneumonia kids: निमोनिया होने पर बच्चे तेजी से सांस लेने लगते हैं। सामान्य रूप से सांस लेने पर छाती फैलती है लेकिन निमोनिया की स्थिति में यह सिकुड़ जाती है। यह खतरनाक है। यही वजह है कि छोटे बच्चों में निमोनिया को किलर डिजीज के रूप में जाना जाता है। हमारे देश में यह बीमारी बच्चों की (silent killer disease) साइलेंट किलर बन चुकी है। बड़ों से ज्यादा बच्चों के लिए खतरनाक माना गया है निमोनिया’ । पांच साल तक के बच्चों में इस बीमारी की पहचान किलर डिजीज के रूप में होती है। हर साल इस बीमारी से आठ लाख बच्चे दुनिया से अलविदा कह देते हैं। इनमें करीब 1.5 लाख नवजात शिशु होते हैं।

हर 39 सेकंड पर एक शिशु की मौत (An infant dies every 39 seconds)

  • कोरोना वायरस का नया वेरिएंट ओमिक्रोन के अनुभवों ने फेफड़ों के इंन्फेक्शन को लेकर आगाह किया है कि बड़ों की तुलना में बच्चों में इस तरह के संक्रमण सामने नहीं आए लेकिन डेटा बताते हैं कि छोटे बच्चों में निमोनिया एक किलर डिजीज की तरह है। भारत में बच्चों के बीच निमोनिया बहुत ज्यादा पाया जाता है। यूनिसेफ की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन एक लाख 27 हजार बच्चे निमोनिया से जान गंवा बैठे।
  • हर 39 सेकंड में एक बच्चे की जान इस बीमारी की वजह से चली जाती है। जो बच्चे तंग घरों या छोटी जगहों में रहते हैं, उनको निमोनिया जल्दी अपनी चपेट में लेता है। जिस घर में वेंटिलेशन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती है, वहां इस रोग की आशंका बढ़ जाती है। जिन इलाकों में पॉल्यूशन की प्रॉब्लम हो, वहां भी बच्चों के साथ ऐसी दिक्कतें आती है।

क्यों रुक जाती है हंसते-खेलते बच्चों की सांस 

गुरुग्राम स्थित मणिपाल हॉस्पिटल के अनुसार, फेफड़ा बहुत छोटी-छोटी थैलियों से बनता है। इन थैलियों को एल्विओली के नाम से जानते हैं। स्वस्थ शिशु के सांस लेने पर यह हवा से भर जाती हैं। लेकिन निमोनिया से पीड़ित बच्चों में यह एल्विओली पस (मवाद) और फ्लूइड (पानी) से भर जाती हैं। इसलिए सांस के लिए जरूरी आॅक्सीजन बच्चे को नहीं मिल पाती और सांस लेने में दिक्कत आने लगती है। कई बार सही समय पर या सही इलाज नहीं मिलने के कारण सांस लेने की प्रक्रिया पूरी तरह फेल हो जाती है, जो मृत्यु की वजह बनती है।

Pneumonia

सांस के रोग से संक्रमित लोगों को बच्चे से दूर रखें

बताया जाता है कि निमोनिया को एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सकता है लेकिन अभी भी केवल एक-तिहाई बच्चों को ही ये दवाएं मिल पाती हैं। आमतौर वायरस, बैक्टीरिया और फंगस की वजह से निमोनिया होता है। इम्युनाइजेशन, न्यूट्रीशन और इसके लिए जिम्मेदार पर्यावरण पहलुओं को कंट्रोल कर निमोनिया को होने से रोका जा सकता है। बच्चों के नाक और गले में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया की वजह से लंग में इन्फेक्शन हो जाता है। आसपास मौजूद किसी व्यक्ति के छींकने और खांसने से हवा में इसका संक्रमण फैलता है। यह भी बच्चों में संक्रमण की वजह बनता है।

डराते हैं ये आंकड़े

यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार निमोनिया की वजह से हर 39 सेकंड्स में एक शिशु की मृत्यु हो जाती है। सरकार की ओर से चाइल्डहुड निमोनिया के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सांस नाम का कैम्पेन शुरू किया गया है। ऐसी उम्मीद है कि यह बच्चों में निमोनिया खत्म करने के लिए लोगों को जागरूक बनाएगा। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की साल 2019-21 की रिपोर्ट के अनुसार चाइल्डहुड निमोनिया के मरीजों की संख्या 73 फीसदी से घटकर 69 फीसदी हो गई है।

इन लक्षणों में अनदेखी ना करें (Don’t ignore these symptoms)

  • इस बात का ख्याल रखें कि बच्चे के होंठ और नाखून पिंक दिख रहे हों। अगर यह ब्लू या ग्रे दिखें, तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही हो जैसे छाती तेजी से ऊपर रही हो, पेट तेजी से अंदर और बाहर हो रहा हो ये खतरनाक स्थितियां है। घरेलू भाषा में इसे पसलियों का चलना या सांस का तेज चलना कहते हैं। बिना देर किए डॉक्टर के पास जाएं।
  • घर पर ही कफ और कोल्ड की दवाएं देने के बजाय डॉक्टर के पास ले जाएं। डॉक्टर के निर्देश के अनुसार बच्चे को एंटीबायोटिक दें और समय पर दें। डॉक्टर से इस दवाओं के साइड इफेक्ट्स की भी जानकारी ले लें। थमार्मीटर से बच्चे के शरीर का तापमान लेते रहें।
  • छोटे बच्चे को ब्रेस्टफीड कराते रहें। बच्चों के शरीर में हाइड्रेशन की कमी न हो, इसके लिए पानी पिलाते रहें। कमरे में ह्यूमीडिफायर रखने का भी फायदा होगा। इससे सांस लेने में आसानी होगी। दूसरे बच्चों को संक्रमित बच्चे से दूर रखें। बच्चे को पर्याप्त आराम करने दें।
  • Read Also : Health Tips In Hindi जानिये फायदेमंद भोजन के बारे में, जो कर सकते हैं नुकसान भी

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