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Side Effects Of Oxidative Stress कोलंबिया विश्वविद्यालय के मेलमैन स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ तथा रूटजर्स स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के शोधकतार्ओं ने फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के माध्यम से खुलासा किया कि मानसिक तनाव से शुक्राणु और वीर्य की गुणवत्ता पर हानिकारक प्रभाव हो सकता है।
उसके अनुसार तनाव एकाग्रता, उपस्थिति, और अंडे को निषेचित करने की क्षमता को भी हानिकारक रूप से प्रभावित कर सकता है।
क्या है बांझपन. (Side Effects Of Oxidative Stress)
बांझपन हमेशा महिला की समस्या नहीं होती है।
पुरुष और महिला दोनों में यह समस्या हो सकती है।
लगभग एक तिहाई फर्टिलिटी के मामले पुरुषों से जुड़े होते हैं।
पुरुषों में नपुंसकता के कई कारण हो सकते हैं जैसे, मानसिक दबाव और अवसाद, शराब/ड्रग आदि का नशा, धुम्रपान, मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग या उच्च रक्त चाप आदि लेकिन शोध बताते हैं कि इसमें से सबसे प्रमुख कारण है मानसिक तनाव.!
इस समस्या से पीड़ितों की संख्या भारत में तेजी से बढ़ रही है।
एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में एक शोध में यह आशंका व्यक्त की गई है जिसमें 2025 तक नपुंसक लोगों की सर्वाधिक संख्या भारत में होगी।
तनाव का शरीर पर प्रभाव (Side Effects Of Oxidative Stress)
अक्सर लगातार चिंता में रहने के कारण महिला व पुरुष दोनों में हार्मोन असंतुलन की समस्या होती है। हमारे शरीर में केमिकल ट्रांसमीटर होता है, और सेरोटोनियर और डोपामीन नामक के हार्मोन मिलकर आपके दिमाग को संतुलित रखते हैं।
जब हार्मोन असंतुलन का असर आपके दिमाग पर होता है तो कई शारीरिक बदलाव होते हैं, जिसमें वीर्य की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव होना भी शामिल है। जब आप लगातार किसी दबाव में रहते हैं तो हार्मोन्स असंतुलित हो जाते हैं।
* मैट्रो सिटीज में इस प्रकार की समस्या अधिक देखने को मिलती है। क्योंकि यहां आपा-धापी और काम का तनाव बहुत रहता है।
* लोगों को अनियमित जीवनशैली और आपा-धापी के चलते तमाम तरह के तनाव हो जाते हैं।
* वे निरंतर चिंता, डिप्रेशन फस्ट्रेशन में डूबे रहने लगते हैं जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ता है (विशेषकर प्रजनन क्षमता पर)।
* हाल में हुए एक शोध के मुताबिक जो पुरुष ज्यादा तनाव में रहते हैं उनमें से 30 प्रतिशत में बांझपन की शिकायत होती है।
हालांकि इस शोध में इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिला है कि तनाव के कारण ही बांझपन होता है।
* वीर्य की गुणवत्ता बनाए रखने और बेहतर दामपत्य जीवन जीने के लिए अपने तनाव को नियंत्रित करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि इससे गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है।
* यदि आप गर्भधारण करने की योजना बना रहे हैं तो आपके लिए तनाव प्रबंधन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
तनाव को कई तरीकों को मिलकर ही दूर किया जा सकता है, जिसके बारे में भी हन चर्चा जरूर करेंगे।
कई अध्ययनों से पता चलता है कि गहरी नींद की कमी, तनाव और बांझपन में गहरा संबंध है।
क्योंकि लंबे समय तक रोत को देर तक जागने से हार्मोन लेवल में मूलभूत परिवर्तन होते हैं जिससे बांझपन की समस्या बढ़ सकती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि वे लोग जो लंबे समय तक पूरी नींद नहीं ले पाते हैं, वे विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और कम प्रजनन दर की समस्या से ग्रसित हो सकते हैं।
नींद पूरी ना होना तनाव और शरीर में हार्मोनल इंबैलेंस का कारम बनता है, जिससे बांझापन का सामना करना पड़ता है।
पुरुष बांझपन का निदान और इलाज थोड़ा जटिल होता है।
इसके लिए शुक्राणु की संख्या, शुक्राणु की शक्ति और ऐसे ही अन्य कारकों का पता लगाने के लिए वीर्य के नमूनों की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा जाता है।
फिर टेस्टोस्टेरोन का स्तर निर्धारित करने के लिए हार्मोन स्तर की जांच भी की जाती है।
शारीरिक समस्याओं जैसे योन अंगों में दोष, एसटीडी अथवा वीडी, पतित स्खलन की भी जांच इसके तहत की जाती है।
और फिर समस्या के कारण के हिसाब से उसका इलाज किया जाता है।
* मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत 33 वर्षीय सपना (बदला हुआ नाम) कई सालों से गर्भधारण करने के लिए प्रयासरत थीं, लेकिन वे इसमें असफल रहती थीं।
* फर्टिलिटी टेस्ट कराने पर उनके व उनके पति दोनों में से किसी में कोई शारीरिक कमी नहीं निकली।
डॉक्टर ने उन्हें मनोवैज्ञानिक से मिलने की सलाह दी।
* मनोवैज्ञानिक ने देखा तो पाया कि यह मामला हेल्थ का नहीं है, बल्कि तनाव के कारण वे गर्भधारण में असफल हो रहे थे।
* डाक्टर ने पाया कि तनाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।
* मनोवैज्ञानिक की सलाह मानते हुए दंपती ने रोजना सुबह 20 मिनट वॉक, हल्के व्यायाम और ध्यान आदि करना शुरू किया।
इधर उन्होंने लाइफ स्टाइल बदलने के लिए माइंड बाडी प्रोग्राम में भी डाला गया।
* कुछ हफ्ते में ही सपना गर्भवती हो गई और अब वह एक संदर सी बेटी की मां है।
वीर्य की गुणवत्ता बनाए रखने और पुरुष बांझपन की समस्या से बचने के लिए आप संज्ञानात्मक और व्यवहारात्मक थेरेपी अपनाकर जीवन के प्रति आपना रवैया सकारात्मक बना सकते हैं।
(Side Effects Of Oxidative Stress)
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