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स्वाद के नाम पर कहीं आप भी तो नहीं ले रहे ये जहर, liver transplant की आ सकती है नौबत

माइक्रोप्लास्टिक (5mm से छोटे प्लास्टिक के कण) दुनिया भर की खासतौर पर भारत की फूड चेन में तेजी से घुस रहे हैं. भारत में 2024 में हुई टॉक्सिक्स लिंक स्टडी में 10 तरह के नमक (टेबल, रॉक, समुद्री, कच्चा) और 5 चीनी को टेस्ट किया गया, जिसमें 100% सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए.

Written By: Shivangi Shukla
Last Updated: December 12, 2025 13:22:00 IST

Health: नमक और चीनी जैसी रोज़मर्रा की चीज़ें, जो स्वाद और food conservation के लिए ज़रूरी हैं, कई अनदेखे खतरों को निमंत्रण दे रही हैं. माइक्रोप्लास्टिक (5mm से छोटे प्लास्टिक के कण) दुनिया भर की खासतौर पर भारत की फूड चेन में तेजी से घुस रहे हैं. 
भारत में 2024 में हुई टॉक्सिक्स लिंक स्टडी में 10 तरह के नमक (टेबल, रॉक, समुद्री, कच्चा) और 5 चीनी को टेस्ट किया गया, जिसमें 100% सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए, जिनका कंसंट्रेशन नमक में 6.71 से 89.15 पीस प्रति kg और चीनी में 11.85 से 68.25 था. खाद्य-पदार्थों में ये पॉल्यूटेंट, जो फ़ाइबर, पेलेट, फ़िल्म और टुकड़ों (0.1-5mm) के रूप में होते हैं, पर्यावरण प्रदूषण, प्रोसेसिंग और पैकेजिंग से आते हैं.

प्रदूषण के सोर्स

नमक में माइक्रोप्लास्टिक नमक बनाने की प्रक्रिया के दौरान शामिल हो जाते हैं. चूंकि समुद्री जल में प्रदूषण बढ़ने के कारण उसमें पहले से माइक्रोप्लास्टिक मौजूद होते हैं, इसलिए समुद्री जल से जो नमक बनाया जाता है, उनमें माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा अन्य नमकों से अपेक्षाकृत अधिक होती है. आयोडीन वाले पैकेज्ड नमक में सबसे ज़्यादा 89.15 पीस/kg मिलावट थी, जो शायद मल्टी-प्रोडक्ट प्रोसेसिंग लाइन से थी, जबकि ऑर्गेनिक रॉक सॉल्ट में सबसे कम 6.71 पीस/kg मिला. वहीं चीनी में रिफाइनिंग की प्रक्रिया के दौरान माइक्रोप्लास्टिक जमा होने लगते हैं. भारतीय हर साल लगभग 4kg नमक और 18kg चीनी खाते हैं, जो अनजाने में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है. 

गंभीर हेल्थ रिस्क का खतरा 

रिसर्च से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक्स लिवर में सूजन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और सेलुलर डैमेज से जुड़े हैं और साथ ही हार्मोन्स को प्रभावित करते हैं. शोध में आये परिणामों के अनुसार ये मइक्रोप्लास्टिक्स कार्डियोवस्कुलर बीमारी, कैंसर और रिप्रोडक्टिव समस्याओं को जन्म देते हैं. 2023 में हुई एक स्टडी में पता चला कि इंसानों के प्लेसेंटा और खून में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स अंगों में ट्रांसफर (लिवर ट्रांसप्लांट, किडनी ट्रांसप्लांट) होने का इशारा करते हैं.

सेफ ऑप्शन

दैनिक जीवन में ऑर्गेनिक रॉक सॉल्ट या अनप्रोसेस्ड हिमालयन पिंक सॉल्ट का उपयोग करें क्योंकि रिसर्च के दौरान इसमें कम माइक्रोप्लास्टिक्स पार्टिकल्स देखने को मिले हैं. इसी तरह सेल्यूलोज-बेस्ड या ग्लास-पैक्ड शुगर जो प्लास्टिक के कॉन्टैक्ट को कम करते हैं, उनके उपयोग को प्राथमिकता दें. खाद्य-पदार्थ जैसे चीनी, नमक आदि बनाने वाली कंपनियों के लिए उच्च गुणवत्ता मानक तय किये जाने की आवश्यकता है, जिससे हाई क्वालिटी प्रोडक्ट ही बाज़ार में आएं. यूरोपीय यूनियन (EU) के नियम कुछ सॉल्ट में MPs को लिमिट करते हैं; इंडिया को भी ऐसे ही स्टैंडर्ड्स की ज़रूरत है.

लाइफस्टाइल प्रोटेक्शन

प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें: प्लास्टिक को माइक्रोवेव करने से बचें, स्टेनलेस स्टील/ग्लास स्टोरेज पर स्विच करें, और नल के पानी को रिवर्स ऑस्मोसिस से फिल्टर करें (रिवर्स ऑस्मोसिस 99% MPs हटाता है). प्रोसेस्ड फूड के बजाय ताजे भोज्य-पदार्थों के उपयोग को प्राथमिकता दें. प्लास्टिक फुटप्रिंट्स को मॉनिटर करने वाले ऐप्स से पर्सनल एक्सपोजर को ट्रैक करें. स्टडीज़ से सपोर्टेड ये स्टेप्स, स्वाद से समझौता किए बिना रिस्क को 50-80% तक कम करते हैं.

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