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मछली खाने के बाद दूध पीने से पड़ते हैं सफेद दाग! क्या है सच? हैरान कर देगी सच्चाई

BY: Babli • LAST UPDATED : August 30, 2024, 9:29 am IST
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मछली खाने के बाद दूध पीने से पड़ते हैं सफेद दाग! क्या है सच? हैरान कर देगी सच्चाई

Vitiligo

India News (इंडिया न्यूज), Safed Daag Kaise Hote hai: हम सब ने शुरू से ही सुना है की मछली खाने के बाद दूध पीने से सफेद दाग पड़ जाते हैं। लेकिन यह बात आपको बिल्कुल हैरान कर देगी की की इस बात में 1% भी सच्चाई नहीं है। तब यह सवाल डॉक्टर से पूछा गया तो उन्होंने इसे नकार दिया और कहा कि मछली खाने के बाद दूध पीने से सफेद दाग पड़ने की बात में 1% भी सच्चाई नहीं है। डॉक्टर कहते हैं कि सफेद दाग जिसे मेडिकल साइंस की भाषा में विटिलिगो भी कहा जाता है असल में त्वचा से संबंधित एक बीमारी है।

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कैसे फैलती है विटिलिगो?

डॉक्टर का कहना है कि सफेद दाग आपके शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं के प्रभावित होने से होता है। दुनिया भर में लगभग 0.5% से 1% आबादी इस रोग से प्रभावित है। लेकिन भारत में यह लगभग 8% के आसपास है। बता दें की विटिलिगो किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। लेकिन आधे से ज्यादा मामलों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही शुरू हो जाती है। मरीजों में घाव बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है जबकि कुछ में यह रोग बहुत तेजी से बढ़ता हुआ देखा जा सकता है। कुछ ही महीना में विटिलिगो पूरे शरीर को ढक लेता है।

वहीं कुछ मामलों में त्वचा के रंग में खुद-ब-खुद पूर्णनिर्माण भी देखा गया है। जब शरीर में मेलेनोसाइट्स बढ़ने लगता हैं। तब आपकी त्वचा में सफेद धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं जो आमतौर पर शरीर के उन हिस्सों को प्रभावित करता है। जो सीधा सूरज की रोशनी के संपर्क में आते हैं। इसमें आपका शरीर, हाथ, कलाई, गाल पर यह सब शामिल है।

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किन लोगों में पाई जाती है ये बीमारी

रिसर्च में पाया गया है कि लगभग 30% मामलों में विटिलिगो से प्रभावित लोग अपनी फैमिली हिस्ट्री की वजह से होते हैं। यानी परिवार में पहले से ही के रोग किसी न किसी को हो चुका है। सफेद दाग से प्रभावित लोगों के बच्चों में विटिलिगो विकसित होने का खतरा करीबन 5% होता है। यह स्थिति में आमतौर पर दर्द नहीं होता लेकिन मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव काफी देखने को मिलता है। खासकर की बच्चों और गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों में यह ज्यादा खतरनाक हो सकता है। बता दे कि डॉक्टर का कहना है कि सफेद धब्बों की वजह से लगभग 15 से 35% लोग मनोवैज्ञानिक तौर पर इससे प्रभावित है।

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