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हेल्थ टिप्स (Nutritionist Bhuvan Rastogi in his recent Instagram post has claimed that ‘maida is not easily digestible’ is a myth) : उच्च फाइबर सामग्री वाले खाद्य पदार्थ धीरे-धीरे पचते हैं इसलिए कोई भी साबुत अनाज (उदाहरण, आटा) मैदे की तुलना में धीरे-धीरे पचता है।
अक्सर आपने लोगों को मैदा से परहेज करते देखा होगा। रोज रोटी खाने के लिए लोग मैदा के बदले गेंहू का इस्तेमाल करते हैं ताकि वह आसानी से पच सके। ऐसी अवधारणा है कि मैदा आसानी से नहीं पचता इसी कारण लोग मैदे से बनी चीज को नहीं खाते है या फिर कम खाते है। आमतौर पर जंक फूड जैसे की मैगी, पेटीज, भटूरे, समोसे, इत्यादि मैदे के बने होते हैं जिसे लोग खाना तो चाहते हैं लेकिन रोजाना नहीं खाते। बचपन से हम सभी के मां बाप ने भी यही बताया है कि मैदा डेली नहीं खाना चाहिए, यह आसानी से नहीं पचता।
न्यूट्रिशनिस्ट भुवन रस्तोगी ने अपने हालिया इंस्टाग्राम पोस्ट में दावा किया है कि ‘मैदा आसानी से पचता नहीं है’ यह एक मिथक है। रस्तोगी का कहना है कि वास्तव में मैदा तेजी से पचता है, जिसके परिणामस्वरूप रक्त शर्करा के स्तर में तेज वृद्धि होती है। न्यूट्रिशनिस्ट का कहना है कि मैदे की तुलना में आटा धीरे-धीरे पचता है और इसमें उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स और अधिक पोषक तत्व होते हैं। रस्तोगी लिखते हैं “अगर आप सर्च करें ‘क्या मैदा पचाना मुश्किल है?’ आप विपरीत राय के साथ बहुत सारे लेख देखेंगे। अंतर्राष्ट्रीय लेख हां और भारतीय लेख ना कहेंगे। हम भारत में यह धारणा रही है कि मैदा (परिष्कृत आटा) पेट / आंत में जमा हो जाता है और आसानी से पचता नहीं है, यहां तक कि आमतौर पर पढ़े जाने वाले कई समाचार मंचों पर लेख यही कहते हैं,” न्यूट्रिशनिस्ट का कहना है, “मैदा पचने में बेहद आसान है। दरअसल, यह चीनी की तरह जल्दी पचता है और इस वजह से सेहत के लिए खराब है।”
रस्तोगी ने कहा कि उच्च फाइबर सामग्री वाले खाद्य पदार्थ धीरे-धीरे पचते हैं, “इसलिए कोई भी साबुत अनाज (उदाहरण, आटा) मैदे की तुलना में धीरे-धीरे पचता है। “रस्तोगी ने कहा “टेबल शुगर का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई): 70-75; सफेद ब्रेड का जीआई: 70-75; आटे की रोटी का जीआई लगभग 55-65 होता है (चूंकि आटे में मैदे की तुलना में अधिक फाइबर होता है)। 70 से ऊपर कुछ भी उच्च जीआई माना जाता है।”
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