Oximeter, blood oxygen level, oxygen circulating, red blood cells, normal blood oxygen level, pulse oximeter, shortness of breath
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
बेशक कोरोना ग्राफ अब नीेचे जाने लगा है, महामारी के समय में पल्स आक्सीमीटर ने न सिर्फ आपकी सेहत का ख्याल रखा है बल्कि अस्पतालों पर अकारण पड़ने वाले बोझ को भी काफी हद तक सीमित कर दिया था। ऐसे हालातों में अब जब संक्रमितों की संख्या कम ही आने लगे है। ऐसे में शरीर के बारे में सही जानकारी देने वाला यह उपकरण घर के किसी कौन में धूल फांक रहा है। कोरोना काल की बात करें तो अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमारों की संख्या बढ़ गई थी। जिसके चलते विशेषज्ञ भी सामान्य लक्षणों वाले मरीजों को आक्सीमीटर से जांच करने की सलाह दे रहे थे।
डॉक्टर मरीजों को कह रहे थे कि घर पर एहतियात बरतते हुए आक्सीमीटर से आक्सीजन का लेवल चेक करें, अगर प्राण वायु का स्तर 90 से नीचे आता है तो बिना देरी के नजदीकी अस्पताल में भर्ती हो जाएं। इस उपकरण के जरिए मरीज की स्थिति का पता लगा कर जल्द से जल्द जरूरी उपचार मुहैया करवाई जाती रही है। वहीं इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे मरीजों में से बहुत ही कम लोग काल का ग्रास बने हैं। क्योंकि समय रहते उन्हें उचित इलाज मिलने लगा था।
दक्षिण अफ्रीका में की गई एक शोध में सामने आया है कि कोरोना ग्रसित होने के बाद जांच के लिए लोगों को रूटीन जांच के लिए पल्स आक्सीमीटर दिए गए थे। जिसके बेहतर परिणाम सामने आए हैं। इसमें व्यक्ति समय अनुसार खुद की जांच कर, जरूरत आने पर उसे प्रयाप्त उपचार मुहैया करवा कर उसकी जान बचाई जा सकती है। इस अध्ययन में हाईरिस्क वाले मरीजों जैसे बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियों से पीड़ित लोग शामिल थे। कोविड का पता लगाने के बाद इन्हें पल्स आक्सीमीटर दिया गया। इसके बाद फोन कर यह सुनिश्चित किया गया कि वह लोग इसका सही से इस्तेमाल कर भी रहे हैं या नहीं।
आक्सीमीटर का काम केवल कोरोना के समय तक ही सीमित नहीं है, यह आज भी उतना ही कारगर है जितना कि पहले था, दरअसल लोगों में धारणा बन गई है कि सैचुरेशन केवल कोरोना होने पर ही कम आती है। लेकिन कई अन्य कारणों से भी यह कम हो सकती है। यह उपकरण उन लोगों के लिए काम की चीज है जिनमें आक्सीजन सैचुरेशन को प्रभावित करने वाली बीमारियां से जूझ रहे हैं। जैसे कि रात को खरार्टे आते हैं, इसे स्लीप एपनिया कहा जाता है। ऐसे लोगों के लिए यह बड़े काम की चीज है।
पल्स आक्सीमीटर से जांच करना बेहद आसान है। फिर भी कुछ नियमों का पालन करना भी करना अनिवार्य होता है। जैसे कि अगर आपने नेलपॉलिश लगी रही है तो रीडिंग गलत होने की संभावना बढ़ जाती है। अमेरिका के एक संस्थान ने रोग निवारक, नियंत्रक प्रयोग में पाया कि हमने 10 अश्वेत रोगियों पर रिसर्च की और केवर एक प्रतिशत ही नतीजे सही आए। वहीं जिन लोगों की चमड़ी मोटी होती है, तंबाकू और नेलपॉलिश लगे हाथों व ज्यादा ठंडे हाथों की रीडिंग स्टीक नहीं पाई गई।
बड़ा सवाल यह उठता है कि रक्त में आक्सीजन का लेवल कितना होना चाहिए। और कब हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। बता दें कि एक स्वस्थ व्यक्ति का सैचुरेशन स्तर 95 से 100 प्रतिशत के बीच में होता है। आक्सीजन का स्तर 95 से कम आना मतलब फेफड़ों में में कोई परेशानी हो गई है।लेकिन अग यही स्तर 94 से कम आ जाए तो संभल जाना चाहिए। 93 से कम आक्सीजन आने पर बिना किसी देरी के अस्पताल मेंं भर्ती हो जाना चाहिए क्योंकि शरीर की 8 प्रतिशत कोशिकाओं ने आक्सीजन का प्रवाह करना बंद कर दिया है।
Also Read : Health Tips आंख से दिल की बीमारी का पता लगाना हुआ आसान, रेटिना की स्कैनिंग बताएगी स्ट्रोक का जोखिम
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.