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India News (इंडिया न्यूज़),Gopashtami 2024: आज गोपाष्टमी है और इस दिवस पर गौ धन की पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि दीवाली के बाद पड़ने वाली अष्टमी को भगवान कृष्ण पहली बार पशु लेकर चराने को गए थे तभी से इसे गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है और गौ धन की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। सिरमौर जिला मुख्यालय नाहन में आज गोपाष्टमी पर माता बाला सुंदरी गौ सदन में विशेष आयोजन किया गया। जहां गौ सदन में हवन समारोह का आयोजन हुआ वहीं गौधन को हरा चारा ,गुड़ इत्यादि के भोग लगाया गया। दूर दूर से लोग गौ सदन पहुंच रहे हैं और गौधन की पूजा अर्चना कर रहे हैं।
पशु क्रूरता निवारण समिति जोकि इस गौ सदन को चलाती है अध्यक्ष डॉ नीरू शबनम ने बताया कि आज के दिन गौ सदन में अनेक आयोजन किये जा रहे हैं और लोग गौधन की पूजा करने पहुंच रहे हैं। यह गौ सदन माता माला सुंदरी मंदिर न्यास त्रिलोकपुर के सहयोग से कार्य करता है।
डॉ नीरू शबनम ने बताया कि आज के दिन भगवान कृष्ण पहली बार गौ धन को चराने गए थे तभी से यह गोपाष्टमी पर्व मनाया जाता है। उन्होंने लोगो से भी अनुरोध कियाकि अपने पशुओं को बेसहारा सड़कों पर मत छोड़ें और हर दिन गोपाष्टमी की तरह अपने पशु धन की सेवा करें।
गोपाष्टमी, जो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है, विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण और गायों की पूजा का दिन होता है। इस दिन विशेष रूप से गायों को स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है। गायों को स्नान कराकर उन्हें अच्छे से संवारना चाहिए। गाय के सींगों पर मेहंदी, हल्दी और रंगीन छापे लगाए जाते हैं। गायों की पूजा में धूप, दीप, फूल और गंध का इस्तेमाल किया जाता है। पूजा के बाद गाय की आरती की जाती है। इस दिन ग्वालों (गायों को पालने वालों) को उपहार देकर उनका भी पूजन किया जाता है। गायों को गो-ग्रास (हरा चारा) और गुड़ जैसे भोग अर्पित किए जाते हैं। जब गायें चरकर घर वापस आती हैं, तो उन्हें भी गो-ग्रास खिलाना चाहिए और उनके चरणों को माथे से लगाना चाहिए। गोपाष्टमी के दिन गोशालाओं में दान देना और गायों की रक्षा करना एक महत्वपूर्ण कार्य है।
हिंदू धर्म में गायों का दर्जा माँ के समान माना जाता है। गाय की पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और यह हमें भगवान श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी शिक्षाओं की याद दिलाता है। गायें न केवल हमें दूध, दही, घी जैसी पोषक सामग्री देती हैं, बल्कि उनका मूत्र भी आयुर्वेद में औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। इस प्रकार, गायों से मिलने वाले प्रत्येक पदार्थ को लाभकारी माना जाता है। गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विशेष रूप से गायों की सेवा और उनका सम्मान करने की परंपरा है, जैसा कि भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीलाओं में गायों की रक्षा की थी। यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हुए, गायों की रक्षा और सेवा करनी चाहिए, जो हमारी सामाजिक और पारिस्थितिकीय जिम्मेदारी भी है।
गोपाष्टमी के दिन से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है कि जब भगवान श्री कृष्ण बाल्यकाल में थे, तब उन्होंने गायों को चराने का मन बनाया। उन्होंने अपनी माता से अनुमति प्राप्त की, और फिर गोपाष्टमी के दिन वे गायों को चराने के लिए निकले। यह दिन विशेष रूप से इसीलिए महत्व रखता है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने गायों के साथ अपनी लीला शुरू की थी, और इसी दिन से गोपाष्टमी का त्यौहार मनाने की परंपरा बन गई। गोपाष्टमी पर ब्रज में गायों और गवैयों की पूजा अर्चना की जाती है। गायों को विशेष रूप से दीपक, गुड़, केला, लड्डू, फूल माला, और गंगाजल से पूजा जाता है। महिलाएं गायों को तिलक करके उन्हें हरा चारा और गुड़ अर्पित करती हैं।
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