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India News ( इंडिया न्यूज़ ) Uttarakhand Alert : उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में करीब एक हजार से ज्यादा ग्लेशियर मौजूद हैं। इन सभी ग्लेशियरों में हजारों की संख्या में ग्लेशियर लेक मौजूद हैं। जिनकी समय पर निगरानी करने की सख्त जरूरत है। बता दें साल 2013 में चौराबाड़ी ग्लेशियर लेक के टूटने से केदारघाटी में आई भीषण आपदा के बाद ग्लेशियर और ग्लेशियर लेक को लेकर सरकारें भी संजीदा हो गईं। जिसके तहत अब ग्लेशियर लेक पर सरकार अध्ययन करवा रही है। वहीं उत्तराखंड के वैज्ञानिकों का बड़ा दावा सामने आया है,कहा जा रहा है जो झीलें होती हैं, वो समय-समय पर ग्लेशियर से पिघल कर आने वाले पानी के साथ अलग-अलग मटेरियल से बनती है और कभी भी टूट सकती है।
बता दें, वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक ने भिलंगना लेक पर चल रहे अध्ययन पर कहा कि अभी तक हुए अध्ययन के अनुसार भिलंगना लेक से जुड़ा ग्लेशियर पिघल रहा है और भिलंगना लेक बड़ी हो रही है। साथ ही पिछले 45 सालों में भिलंगना लेक का क्षेत्रफल 0.4 स्क्वायर किलोमीटर बड़ा हुआ है। हालांकि, यह लेक भी मोरेन डैम लेक है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर मोरेन डैम लेक खतरा पैदा करती है। जिसके चलते इस लेक के अन्य पहलुओं का भी अध्ययन किया गया। ऐसे में अगर लेक में ज्यादा पानी आता है, तो लेक के चारों तरफ मोरेन से बनी दीवार पानी के तेज बहाव को झेल नहीं सकती है, इसलिए लेक को लगातार मॉनिटर करने की जरूरत होती है।
वाडिया के निदेशक कला चंद सैन की मानें तो फिलहाल इस झील से कोई खतरा नहीं है, लेकिन अगर इस झील में ज्यादा पानी आया तो झील के टूटने का खतरा बना हुआ है। हालांकि इस झील तक पहुंच पाना नामुमकिन है। इसीलिए वाडिया के वैज्ञानिक भी सैटेलाइट की मदद से ही मॉनिटरिंग कर पा रहे हैं। जिससे वह सतर्क रहें।
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