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'गलत नीयत के बिना सिर-पीठ पर हाथ फेरना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं…', बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला

Akanksha Gupta • LAST UPDATED : March 14, 2023, 6:44 pm IST

Bombay High Court on Sexual Assault: महिलाओं के साथ सेक्सुअल असॉल्ट के केस आए दिन सामने आते रहते हैं। इसी वजह से इसके लिए देश में कानून बनाए गए हैं। मगर कई बार ऐसे मामले में सामने आ चुके हैं जहां इन कानूनों का फायदा उठाया जाता है। हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया था। जिसे लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नाबालिग लड़की के सिर और पीठ पर सिर्फ हाथ फेरने को सेक्सुअल असॉल्ट नहीं कह सकते हैं।

कोर्ट ने आरोपी को बताया निर्दोष

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने 28 साल के एक शख्स को निर्दोष बताते हुए कहा कि किसी गलत नीयत के बगैर नाबालिग लड़की के सिर और पीठ पर सिर्फ हाथ फेर देने से उसकी लज्जा भंग नहीं हो जाती है। ये मामला 2012 का है, जब एक 18 साल के लड़के पर 12 साल की नाबालिग लड़की की लज्जा भंग करने के आरोप में केस दर्ज किया गया था। पीड़िता के अनुसार, उसकी पीठ और सिर पर आरोपी शख्स ने हाथ फेरते हुए उससे कहा था कि वह बड़ी हो गई है।

अदालत ने 10 फरवरी को सुनाया था फैसला

इस मामले में 10 फरवरी को अदालत ने अपना फैसला सुनाया था। जिसकी प्रति बीते दिन 13 मार्च को उपलब्ध हुई। न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकल पीठ ने शख्स पर दोषसिद्धी रद्द करते हुए कहा है कि ऐसा बिल्कुल भी प्रतीत नहीं होता है कि दोषी का कोई भी गलत इरादा था। बल्कि उसकी बात से तो ये लगता है कि वह पीड़िता को बच्ची के तौर पर देख रहा था। न्यायाधीश ने कहा, “किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के लिए, किसी का उसकी लज्जा भंग करने की मंशा रखना महत्वपूर्ण है।”

अभियोजन पक्ष लज्जा भंग साबित करने में विफल

न्यायाधीश ने आगे कहा, “12-13 वर्ष की पीड़िता ने भी किसी गलत इरादे का उल्लेख नहीं किया। उसने कहा कि उसे कुछ अनुचित हरकतों की वजह से असहज महसूस हुआ।” कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस बात को साबित करने में विफल हो गया है कि अपीलकर्ता की मंशा नाबालिग लड़की की लज्जा भंग करने की थी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, अपीलकर्ता 15 मार्च 2012 को 18 वर्ष का था।

निचली अदालत ने ठहराया था दोषी

बता दें कि मामले में निचली अदालत शख्स को दोषी ठहराते हुए 6 माह की सजा सुनाई थी। जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय की तरफ रुख किया था। उच्च न्यायालय मे मामले में फैसला सुनाते हुए निचली अदालत के फैसले को उचित नहीं ठहराया है।

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