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Khinwsar Vidhan Sabha Seat : इस सीट पर बेनीवाल का कब्जा, जानें इसका राजनीतिक इतिहास

Shanu kumari • LAST UPDATED : November 6, 2023, 9:59 pm IST
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Khinwsar Vidhan Sabha Seat : इस सीट पर बेनीवाल का कब्जा, जानें इसका राजनीतिक इतिहास

India News (इंडिया न्यूज), Khinwsar Vidhansabha Seat : राजस्थान विधानसभा चुनाव में महज कुछ दिनों का समय बचा है। इससे पहले हम आपको राजस्थान की सारी प्रमुख सीटों की जानकारी लगातार दे रहे हैं। इसी क्रम में आज हम नागौर की खींवसर विधानसभा सीट के बारे में बात करेंगे। Khinwsar Vidhansabha Seat राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिहाजे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

  • 2008 में यह सीट अस्तित्व में आई
  • 2019 के उपचुनाव में बेनीवाल के भाई को मिली जीत

बेनीवाल-मिर्धा की सियासी मुकाबला

बता दें कि यह सीट 2008 से पहले मुंडवा निर्वाचन क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। 2008 में यह सीट अस्तित्व में आई है। इस सीट पर बेनीवाल परिवार की पकड़ है। यहां से दो बार हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव जीत हासिल की थी। जिसके बाद हनुमान बेनीवाल और फिर उनके भाई नारायण बेनीवाल ने चुनाव जीता। पिछले 40 सालों से इस सीट पर बेनीवाल वर्सेस मिर्धा की सियासी अदावत जारी है।

बेनीवाल की पारंपरिक सीट

विधानसभा चुनाव 2008 में यह सीट मुंडवा विधानसभा सीट के नाम से जानी जाती थी। इस सीट से रामदेव के अलावा एक बार हरेंद्र मृदा तीन बार हबीब बुक रहमान और एक बार उषा पूनिया ने जीत हासिल की है। रामदेव ने 1977 में कांग्रेस की ओर चुनाव लड़ा था। जिसके बाद उन्होंने 1985 में लोक दल की ओर से चुनाव लड़ा। जिसके बाद 2008 में हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी, 2013 में निर्दलीय और 2018 में अपनी पार्टी आरएलपी से चुनावी मैदान में उतरे और जीत भी हासिल किया। वहीं 2019 के उपचुनाव में बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल ने भी जीत हासिल की। बता दें कि यह सीट बेनीवाल की पारंपरिक सीट कही जाती है।

40 साल की लड़ाई

अगर सीट पर जातिय समीकरण की बात करें तो यहां शुरु से जाट समाज का दबदबा रहा है। इसके अलावा बड़ी संख्या में दलित मतदाता भी रहते हैं। बता दें कि यहां बेनीवाल और मिर्धा की लड़ाई 40 साल से चली आ रही है। साल 1980 में हरेंद्र मिर्धा ने हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव को हराया था। जिसके अगले चुनाव 1985 में रामदेव ने मिर्धा को शिकस्त दी थी।

किसे कब मिली जीत 

• 1977- राम देव (कांग्रेस जनरल)

• 1980- हरेन्द्र मिर्धा (कांग्रेस जनरल)

• 1985- राम देव (एलकेडी-जनरल)

• 1990- हबीबुर रहमान (कांग्रेस जनरल)

• 1995 – हबीबुरेहमान (कांग्रेस जनरल)

• 1998 – हबीबुरेहमान (कांग्रेस जनरल)

• 2003 उषा पुनिया (भाजपा-जनरल)

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