26/11 Mumbai Attack: महाराष्ट्र के मुंबई में 2008 में हुए भयानक आतंकवादी हमलों के सत्रह साल बाद उस आतंक के निशान भले ही मिट गया ह. लेकिन जो लोग बच गए है. उनके लिए यादे आज भी डरावनी है. आतंकवादी हमले में बची देविका रोटावन उस काली रात का आतंक झेलने वाली सबसे कम उम्र की महिलाओं में से एक है. उस समय वह सिर्फ 9 साल की थी.
भीड़भाड़ वाले छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर गोलीबारी के दौरान, आतंकवादी की गोली उनके पैर में लगने से वह घायल हो गई थी. उस एक घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी. आतंकीवादी हमले की गवाह देविकी रोटावन ने कहा कि ” सत्रह साल बीत गए है. लेकिन हमारे लिए वह रात वैसी ही है. मुझे अब भी ऐसा लगता है कि 17 साल बीत गए है. मैं हर पल हर सेकंड को फिर से जीती हूं. मेरे पैर पर अब भी वह निशान और दर्द भी वैसा ही है.”
“गोली लगने के बाद मैं बेहोश हो गई थी”
देविका बाद में हमले में एक अहम गवाह बनी और उन्होंने अजमल कसाब को हमला करने वाले आतंकवादीयों में से एक के रूप में पहचान लिया था. हालंकि उनका मानना है कि टेररिस्ट अटैक का इंसाफ तभी मिलेगा जब इसके पीछे के मास्टरमांइड को जिम्मेदार ठहराया जाएगा. देविका रोटावन ने कहा कि “मैनें फिल्म में देखा है कि हीरो को गोली लगती है और वह अगले दिन ठीक हो जाता है. लेकिन असल जिंदगी में ऐसा नही था. गोली लगने के बाद मैं बेहोश हो गई थी, और वे मुझे सेंट जार्ज हॉस्पिटल ले गए.”
‘पाकिस्तान में मास्टरमाइंड को खत्म करके पूरा इंसाफ मिलेगा’
उन्होंने आगे कहा कि “मैंने सेंट जॉर्ज में बहुत सारे मरीज देखा है. डॉक्टर कुछ को एनेस्थीसिया दे पाए है. लेकिन कुछ नहीं दे पाए है मैंने वही अपना ऑपरेशन करवाया. वहां से मुझे जेजे हॉस्पिटल में ट्रांसफर कर दिया गया था. मैं वहां लगभग डेढ़ महीने तक भर्ती रही, मेरे पैर के छह ऑपरेशन हुए थे. मेरे पैर से गोली निकाल दी गई थी. मैं सरकार के एक्शन से खुश हूं. कसाब को फांसी देने में बहुत समय लगा, और अब ऑपरेशन सिंदूर किया गया है. मैं इससे बहुत खुश हूं लेकिन जब पाकिस्तान में मास्टरमाइंड खत्म हो जाएगा, तो मुझे लगेगा कि पूरा इंसाफ हो गया है.”
मुंबई आतंकी हमले में 150 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. 2008 के उस भयानक आतंकी हमले में आतंकवादियों ने 26 नवंबर से 29 नवंबर तक मुंबई को दहला दिया था. यह हमला देश के सबसे खतरनाक आतंकी हमलों में से एक था. जिसमें 150 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई थी. मरने वालों में आम नागरिक, सुरक्षाकर्मी और विदेशी नागरिक शामिल थे. 10 आतंकवादियों में से एकमात्र ज़िंदा पकड़े गए आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को 2012 में पुणे की यरवदा जेल में फांसी दी गई थी.