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Himalaya: बढ़ती गर्मी का ताप हिमालय के लिए श्राप, भविष्य में सूख सकता है 90 फिसदी हिस्सा

India News (इंडिया न्यूज),Himalaya: मानवीय गतिविधियों के कारण दुनिया का तापमान लगातार बढ़ रहा है। 2023 इतिहास का दूसरा सबसे गर्म साल था। विशेषज्ञ पहले ही कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की बात नहीं, वर्तमान बन चुका है। यह मानव जाति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। इसका खामियाजा ‘तीसरे ध्रुव’ के नाम से मशहूर हिमालय को भुगतना पड़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में हिमालय के हजारों ग्लेशियर पिघल चुके हैं और हालिया शोध भी इसकी पुष्टि करते हैं। नए शोध के मुताबिक, हिमालय गर्म हो रहा है, अगर ग्लोबल वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाती है, तो हिमालय क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा एक साल तक सूखा रहेगा।

भारत गर्मी से होने वाले नुकसान को कैसे कर सकता है कम?

यह रिपोर्ट क्लाइमैटिक चेंज नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है। ब्रिटेन में ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस टीम का नेतृत्व किया है। आठ अध्ययनों को एकत्रित करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सूखा, बाढ़, फसल की पैदावार में गिरावट ग्लोबल वार्मिंग के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। ये आठ अध्ययन भारत, ब्राजील, चीन, मिस्र, इथियोपिया और घाना पर केंद्रित थे। इसके मुताबिक, भारत बढ़ती गर्मी से होने वाले 80 फीसदी नुकसान से बच सकता है, लेकिन ऐसा तभी होगा जब भारत पेरिस समझौते को सही तरीके से अपनाएगा। पेरिस समझौता क्या है? दरअसल, यह समझौता वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों की बात करता है ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सके।

रिपोर्ट में हुआ यह खुलासा

इस रिपोर्ट में पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से आधी जैव विविधता को बचाने में मदद मिल सकती है। जबकि अगर इसे 3 डिग्री पर रखने की कोशिश की जाए तो सिर्फ 6 फीसदी ही बचाया जा सकता है। टीम के मुताबिक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के कारण कृषि भूमि पर सूखे की मार ज्यादा पड़ती है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हर देश की 50 फीसदी से ज्यादा कृषि भूमि को एक साल से लेकर 30 साल तक भयंकर सूखे का सामना करना पड़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से कृषि भूमि पर सूखे का खतरा 21 प्रतिशत (भारत) और 61 प्रतिशत (इथियोपिया) के बीच कम हो जाएगा।

शोधकर्ताओं ने दी यह चेतावनी

साथ ही नदी से आने वाली बाढ़ से होने वाला आर्थिक नुकसान भी कम होगा। ऐसा तब होता है जब नदियाँ और झरने अपने किनारों को तोड़ देते हैं और पानी आस-पास के निचले इलाकों में बहने लगता है। भीषण सूखे से इंसानों को होने वाले खतरे को भी 20-80 फीसदी तक कम किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर जो नीतियां चल रही हैं, उनके परिणामस्वरूप 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है।

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Rajesh kumar

राजेश कुमार एक वर्ष से अधिक समय से पत्रकारिता कर रहे हैं। फिलहाल इंडिया न्यूज में नेशनल डेस्क पर बतौर कंटेंट राइटर की भूमिका निभा रहे हैं। इससे पहले एएनबी, विलेज कनेक्शन में काम कर चुके हैं। इनसे आप rajeshsingh11899@gmail.com के जरिए संपर्क कर सकते हैं।

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