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Aditya L1 Mission: आखिर इसरो ने आदित्य एल1 मिशन को क्यों बताया चंद्रयान-3 मिशन से भी कठिन, जानें

BY: Itvnetwork Team • LAST UPDATED : September 1, 2023, 7:42 pm IST
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Aditya L1 Mission: आखिर इसरो ने आदित्य एल1 मिशन को क्यों बताया चंद्रयान-3 मिशन से भी कठिन, जानें

Aditya L1 Mission

India News (इंडिया न्यूज़) Aditya L1 Mission: हालही में इसरो ने चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को चांद के दक्षिणी ध्रुव भाग पर लैंड कराकर एक नया इतिहास रचा है। यह उनके लिए एक बड़ी सफलता थी। अब वे सूर्य का अध्ययन करने के लिए एक मिशन भेजने की योजना बना रहे हैं। इस मिशन का नाम आदित्य एल1 है और इसे कल लॉन्च किया जाएगा। यह चंद्रयान-3 मिशन से भी कठिन होगा।

लैग्रेंज प्वाइंट पर यान स्थापित करने जा रहे हैं इसरो के विशेषज्ञ

सूर्य पृथ्वी से बहुत दूर है, लगभग 150 मिलियन किलोमीटर। लेकिन जिस खास यान की हम बात कर रहे हैं वो पृथ्वी से सिर्फ 15 मिलियन किलोमीटर दूर ही जाएगा। यह लैग्रेंज प्वाइंट नामक एक विशेष स्थान पर रहेगा और वहां से सूर्य का अध्ययन करेगा। यह पहली बार है कि इसरो के विशेषज्ञ लैग्रेंज प्वाइंट पर यान स्थापित करने जा रहे हैं।

चंद्रयान-3 vs आदित्य एल1

अगर हम चंद्रयान-3 और आदित्य एल1 मिशन की तुलना करें तो पहली चुनौती दूरी की है। चंद्रमा पृथ्वी से 384,400 किमी दूर है, लेकिन जिस स्थान पर आदित्य एल1 स्थित होगा वह इससे भी अधिक 1.5 मिलियन किमी दूर है। इतनी लंबी दूरी तय करने में ज्यादा समय और ज्यादा ईंधन लगेगा।

तापमान बढ़ा सकता है चुनौतियां

वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रमा के तपमान से जुड़ी अधिकांश जानकारी प्राप्त की जा चुकी है। लेकिन अभी भी वैज्ञानिकों को खुले अंतरिक्ष के तापमान का कोई अंदाजा नहीं है। इसी वजह से लैग्रेंज पॉइंट का तापमान भी यान के लिए अधिक चुनौतियां बढ़ा सकता है।

सौर तूफान बना खतरा

कभी-कभी, सूर्य में बड़े विस्फोट होते हैं जिससे अंतरिक्ष में चीज़ें अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। इन विस्फोटों को सौर तूफान कहा जाता है। आदित्य L1 सूर्य के करीब जाएगा, इसलिए इसके सौर तूफान की चपेट में आने का खतरा रहेगा।

अनुभव की कमी

इस साल इसरो ने तीन बार चांद पर जाने की कोशिश की। पहली बार, वे सफल रहे, लेकिन दूसरी बार, अंतिम स्टेज में वह विफल हो गए। उन्होंने दोनों प्रयासों से बहुत कुछ सीखा और उस ज्ञान का उपयोग उन्होंने चंद्रमा पर अपने अगले मिशन चंद्रयान-3 की सफलता के लिए किया। लेकिन सूर्य का अध्ययन करने के लिए इसरो ने कोई भी मिशन नहीं भेजा है। इसलिए उनके पास इसमें अनुभव की कमी है। जिसके वजह से गलती होने की ज्यादा संभावना है।

 

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