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इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली :
Air Force की एक महिला अधिकारी के साथ कोयंबटूर में बलात्कार की पुष्टि करने के लिए चिकित्सकों ने टू फिंगर टेस्ट करवाया। इस पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने आपत्ति जताते एयर चीफ मार्शल को पत्र लिखा है और पूछा है कि जिस जांच पर उच्चतम न्यायालय आठ साल पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है फिर ऐसा क्यों किया गया।
मामला दरअसल वायुसेना एडमिनिस्ट्रेटिव कॉलेज से जुड़ा है, जहां कथित महिला के साथ कथित रेप का है। पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर आरोपी फ्लाइट लेफ्टिनेंट को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। वहीं पीड़िता ने एफआईआर में बताया है कि टू-फिंगर टेस्ट अत्यधिक पीड़ादायक था। महिला आयोग ने नाराजगी जाहिर करते टू फिंगर जांच सीधे तौर पर महिला की गरिमा और निजता का हनन करने जैसा है। जो कि एयरफोर्स के ही डॉक्टरों ने टेस्ट
के नाम पर किया है।
यह जांच रेप की पुष्टि करने के लिए मैन्युअल प्रक्रिया होती है। जिसमें चिकित्सक पीड़िता के गुप्तांग में एक या
दो उंगली डालकर जांच करते हैं कि पीड़िता वर्जिन है या नहीं। हालांकि इस तरह की जांच से वैज्ञानिक भी संतुष्ट नहीं हैं। यह जांच पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुुंचाने वाली जांच है। पहले भी इस प्रक्रिया की तीखी आलोचना होती रही है। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि इससे रेप की पुष्टि नहीं की जा सकती।
सुप्रिम कोर्ट ने वर्ष 2013 में लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामल में टू-फिंगर टेस्ट पर रोक लगाते हुए कहा था कि यह जांच पूरी तरह से असंवैधानिक है। अदालत ने पीड़िता की निजता और उसके सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था टेस्ट यह शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाने वाला है। क्योंकि इसमें यह पता लगाना मुश्किल है किसंबंध सहमति से बने या फिर जबरदस्ती।
जस्टिस वर्मा ने16 दिसंबर 2012 में हुए गैंगरेप के बाद करीब साढ़े 600 पन्नों की रिपोर्ट में कहा था कि टू फिंगर टेस्ट में महिला के गुप्तांग की मांसपेशियों के लचीलेपन को जांचा जाता है। जिससे यह पता करने का
प्रयास किया जाता है कि उस समय महिला सेक्सुअली एक्टिव थी या नहीं। लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि संबंध उसकी रजामंदी के विपरीत जाकर बनाए गए हैं। इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए।
देश में उड़ाई जा रही सर्वोच्च न्यायालय आदेशों की धज्जियां हालांकि संयुक्त राष्ट्र तक में टू फिंगर टेस्ट बैन है।
क्योंकि यह जांंच शर्मिंदा करने वाली यह जांच शीर्ष अदालत की रोक के बाद भी जारी है। जिसको लेकर वर्ष 2019
में तकरीबन1500 रेप का दंश झेल रही पीड़िताओं व उनके परिजनों ने कोर्ट में शिकायत देते हुए कहा था कि देश की सबसे बड़ी अदालत के रोक लगाने के बाद भी यह टेस्ट किए जा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसको लेकर जांच करने वाले डॉक्टरों के लाइसेंस तक कैंसिल करने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के बाद कई मामलों में टू-फिंगर टेस्ट को गैरजरूरी बताते हुए इसे करवाने से मना कर दिया। क्योंकि टेस्ट पीड़ित स्त्रियों पर किया जाता है। शारीरिक संबंध के लिए रजामंदी को टू फिंगर टेस्ट से साबित नहीं किया जा सकता। बल्कि यह पूरी तरह से निजता, सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि सेक्सुअल हिस्ट्री का महिला के बलात्कार से कोई लेना देना नहीं है। यहां बात रजामंदी के स्तर और किन हालातों में दी गई यह जानना जरूरी है। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इस टेस्ट से सामने आई रिपोर्ट को काल्पनिक और निजी राय करार दिया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस टेस्ट को अवैज्ञानिक बता चुका है। जिसके बाद मार्च 2014 में रेप पीड़ितों के सम्मान को ध्यान में रखते हुए गाइडलाइन जारी करते हुए टू फिंगर टेस्ट न करने के आदेश जारी किए थे। वहीं देशभर में चल रहे अस्पतालों को निर्देश दिए थे कि इसके लिए फॉरेंसिक जांच और मेडिकल के लिए विशेष कक्ष तैयार करें। दिशा निर्देशों में स्पष्ट किया है कि हिस्ट्री रिकॉर्ड पर ली जाए। पीड़िता का शारीरिक के साथ ही मानसिक तौर पर जांच का परामर्श भी दिया जाए। कुछ समय पहले महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसेज ने ‘फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी’ विषय के लिए कोर्स में बदलाव किया था। इसमें अब सांइस आफ वर्जिनिटी के विषय को पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है।
हालांकि चिकित्सकीय सबूत रेप के मामले में नतीजों तक पहुंचने में अहम माने जाते हैं। लेकिन रेप के मामलों में फॉरेंसिक सबूतों पर भरोसा करना मुश्किल होता है। क्योंकि हो सकता है संबंध आपसी रजामंदी से बने हों जो कि अपराध की श्रेणी में नहीं आते। इसे सिर्फ नाबालिगों के मामले में यह ठोस सबूत साबित हो सकता है।
टू-फिंगर टेस्ट को भारत समेत अधिकतर देशों ने प्रतिबंधित कर रखा है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही अनैतिक बता चुका है। डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि रेप के केस में सिर्फ हाइमन की जांच से रेप साबित नहीं किया जा सकता। टू-फिंगर टेस्ट जहां मानवाधिकार उल्लंघन करने जैसा है वहीं पीड़िता को इस दौरान घोर शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। इससे जिस यौन हिंसा से महिला गुजरी है फिर से वही प्रक्रिया दोहराने जैसा है।
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