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प्रयागराज के किसानों के लिए समृद्धि की राह बन रही ‘अकरकरा’ की खेती

PUBLISHED BY: Vir Singh • LAST UPDATED : September 14, 2021, 3:57 am IST
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प्रयागराज के किसानों के लिए समृद्धि की राह बन रही ‘अकरकरा’ की खेती

4000 रुपए खर्च करके कमा सकते हैं 50 हजार रुपए

इंडिया न्यूज, लखनऊ :

Akarkara cultivation:

अकरकरा (Akarkara cultivation) एक ऐसा औषधीय पौधा (medicinal plant) है जो 25 से ज्यादा रोगों के लिए फायदेमंद है। और तो और, इसकी खेती इतनी आसान है कि हम सिर्फ चार हजार रुपए खर्च करके इससे 50 हजार तक अर्जित कर सकते हैं। एक बीघा ऐरिया में इस पौधे की खेती करने पर 4000 रुपए का खर्च आता है। महज छह महीने के बाद किसान इससे 50 हजार रुपए तक कमा सकता। यह कोई बढ़ा चढ़ाकर बताने वाली बात नहीं है बल्कि हकीकत है।

उत्तर प्रदेश में प्रयागराज (Paryagraj) के कुछ गांवों में इस पौधे की खेती की जा रही है और बेहतर पैसा भी लोग कमा रहे हैं। दरअसल आरपी पांडेय नाम के एक व्यक्ति ने इसी शुरुआत की और उन्हें देखकर आसपास के कई लोग अकरकरा की खेती करने लग गए। आरपी पांडेय हाई कोर्ट में सब रजिस्ट्रार हैं और जानकारी के अनुसार अपनी माता के निधन के बाद उन्होंने अकरकरा की खेती को करना शुरू किया। उन्हें मां इसकी खेती करने के लिए कई बार कह चुकी थी लेकिन पहले उन्होंने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जब मां चल बसी तो उन्हें लगा कि इसका प्रयोग किया जाए। लगभग डेढ़ साल पहले आरपी पांडेय को केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (CIMP), लखनऊ की वर्चुअल मीटिंग में औषधीय पौधों की खेती के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद कृषि वैज्ञानिक भूपेंद्र सिंह और शैलेंद्र डांगी की सलाह व मदद लेकर उन्होंने अकरकरा की खेती करनी शुरू की। उन्होंने आसपास के गांवों के किसानों को भी इसकी खेती करने के लिए प्रेरित किया।

किसानों को अकरकरा की खेती करके फायदा लगा तो इसके बाद प्रयागराज जिले में यमुनापार के करछना इलाके के कबरा और आसपास इलाकों में कई किसान अब करीब 100 बीघा एरिया में इसकी खेती कर रहे हैं। इन गांवों के लोगों के लिए अब अकरकरा की खेती समृद्धि की राह बन रही है। आरपी पांडेय परंपरागत खेती को अलविदा कहकर अब अकरकरा की खेती कर रहे हैं। वे 15 बीघे में इसकी खेती करते हैं। बता दें कि अकरकरा का वानस्पतिक नाम एनासाइक्लस पाइरेथ्रम है। यह एस्टरेशिया कुल का पौधा है और इसकी उत्पत्ति मूल रूप से अरब में हुई। करीब 400 वर्ष से आयुर्वेद में अकरकरा का उपयोग हो रहा है।

सर्दियां शुरू होते ही कर सकते है बुवाई

अकरकरा की खेती अक्टूबर-नवंबर में होती है। अकरकरा पौधे के बीज की कई वैराइटी हैं। इनकी कीमत 500-1500 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। आरपी पांडेय का कहना है कि उन्होंने एक बीघा ऐरिया के लिए 3 किलो बीज लिया था। एक बीघे में तीन ट्राली गोबर की खाद डलवाई थी। बुवाई से पहले बीजों को गोमूत्र से 12 घंटे तक उपचारित किया ताकि पौधे या बीज को रोग न लगे।

खाद और पानी की बहुत कम जरूरत

अकरकरा पौधे की खासियत यह है कि इसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। यह इसलिए कि इसकी फसल रबी के सीजन यानी सर्दी के मौसम में हो जाती है। खाद का इस्तेमाल बहुत कम होता है। अकरकरा की जड़ पांच माह में खोदाई लायक हो जाती है। एक बीघे में तीन से चार क्विंटल तक जड़ और करीब 20 किलो बीज प्राप्त होता है। बाजार में जड़ों की कीमत लगभग 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल है।

किन दवाओं में इसका यूज व किन रोगों के लिए है लाभकारी

अकरकरा के चूर्ण से आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक व यूनानी दवाएं बनाई जाती हैं। इसे मिर्गी, गंूगापन, लकवा, नपुंसकता और वात पित्त कफ आदि का नाशक माना जाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। इसके अलावा आर्थराइटिस, पायरिया, ज्वर नाशक, शरीर की सूजन कम करने, मासिक धर्म, मसूड़ों का रोग, साइटिका, दांत दर्द, शक्ति वर्धक, चर्म रोग, सिर दर्द, सर्दी जुकाम, जीवाणुरोधी, पाचन और दमा संबंधी रोगों से निजात दिलाने में भी इससे बनी दवाओं का इस्तेमाल होता है।

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