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'सास-ससुर की सेवा करना जरूरी नहीं', तलाक के मामले पर हाईकोर्ट ने दिया हैरान करने वाला फैसला

BY: Simran Singh • LAST UPDATED : August 20, 2024, 11:36 am IST
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'सास-ससुर की सेवा करना जरूरी नहीं', तलाक के मामले पर हाईकोर्ट ने दिया हैरान करने वाला फैसला

Allahabad High Court

India News (इंडिया न्यूज), Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला अपने पति के बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करती है तो इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले निजी होते हैं। हर घर की क्या स्थिति है, ऐसे में कोर्ट उनकी विस्तार के साथ जांच नहीं कर सकता है, यह किसी भी तरीके से कोर्ट का काम नहीं है।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की खंडपीठ ने मुरादाबाद के एक पुलिसकर्मी के तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि वह पुलिस में है, जिसके चलते वह अक्सर घर से बाहर रहता है। उसकी पत्नी अपने ससुराल वालों की सेवा करने की नैतिक जिम्मेदारी नहीं निभा रही है।

बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता नहीं है

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस तरह के आरोप व्यक्तिपरक होते हैं। घर से बाहर रहने पर पति के माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता के दायरे में नहीं आता। पति द्वारा की गई देखभाल के स्तर को कभी भी जरूरी नहीं माना गया। वहीं बता दें कि तलाक के लिए आरोपों को साबित करने के लिए पति की ओर से किसी भी तरीके के अमानवीय या क्रूर व्यवहार की कोई दलील नहीं दी गई है।

पत्नी के बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल न करना, खासकर तब जब पति अपने घर से दूर रह रहा हो, कभी भी क्रूरता नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा, हर घर में क्या स्थिति है। उस संबंध में विस्तार से जांच करना या कोई कानून या सिद्धांत बनाना कोर्ट का काम नहीं है। एक अच्छे विवाह की नींव सहनशीलता, समायोजन और आपसी सम्मान है।

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हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की

क्रूरता का निर्धारण करते समय सभी विवादों को निष्पक्ष दृष्टिकोण से तौला जाना चाहिए। इससे पहले याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए मुरादाबाद के फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की।

कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता अपनी नौकरी के कारण घर से दूर रहा है और वह उम्मीद कर रहा था कि उसकी पत्नी माता-पिता के साथ रहेगी। जिसके बाद कोर्ट ने उसकी अपील को निराधार माना और ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं पाया।

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