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अजीत मेंदोला, नई दिल्ली:
Amrinder Set to form His Party: पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह के तेवरों से साफ हो गया है कि वह देर सवेर अपनी नई पार्टी (Amrinder Set to form His Party) भी बना सकते हैं। अमरेंद्र सिंह की यह नई पार्टी (Amrinder Set to form His Party) कांग्रेस में अंसन्तुष्ठ माने जाने वाले अधिकांश नेताओं को नया ठिकाना बन सकती है। सूत्रों की माने तो नई पार्टी के गठन को लेकर कई असंतुष्ट नेता अमरेंद्र सिंह (Amrinder Set to form His Party) के सम्पर्क में है।
पंजाब के तो कई सांसद और विधायक पार्टी छोड़ने का मूड बना चुके हैं। केवल अमरेंद्र सिंह के फैसला करने की इंतजारी है। अमरेंद्र के नए रुख से कांग्रेस आलाकमान की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं। हालांकि अमरेन्द्र सिंह (Amrinder Set to form His Party) अंतिम फैसला करने से पहले एक बार सोनिया गांधी से मिल सकते हैं। उनके इस हफ्ते दिल्ली आने की संभावना है। अमरेन्द्र सिंह (Amrinder Set to form His Party) के अगले कदम पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी नजरें लगी है।
ममता बनर्जी उत्तर भारत के लिये बड़े चेहरे की तलाश में भी हैं। हालांकि नई केबीनेट पंजाब में बन गई है, लेकिन संकट कम होता नहीं दिख रहा है। अमरेंद्र सिंह (Amrinder Set to form His Party) अब कांग्रेस को संकट में डालने का कोई मौका नही छोड़ेंगे। उन्होंने सिद्धू को सीधी चुनौती देने के साथ राहुल की टीम को निशाने पर ले नाराज नेताओं को साथ आने का न्योता (Amrinder Set to form His Party) दे दिया।
नाराज नेताओं के साथ आने की संभावना इसलिये भी बढ़ गई है क्योंकि पंजाब में सिद्दू अपने हिसाब से भविष्य की राजनीति तय करेंगे। केंद्र में राहुल की मौजूदा टीम से कई अनुभवी नेता पहले से नाराज हैं। दूसरी तरफ पंजाब में सिद्दू के मजबूत होने से सांसद मनीष तिवारी, प्रताप सिंह बाजवा ओर रवनीत सिंह बिटटू जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के सामने भविष्य की राजनीति को लेकर बड़ी चुनोतियां खड़ी हो गई हैं। क्योंकि इनमें से अधिकांश सिद्दू के खिलाफ रहे हैं। सिद्दू और अमरेंद्र सिंह का झगड़ा कांग्रेस में अब नया मोड़ लेगा ही लेगा। इसका असर दिल्ली समेत कई राज्यों पर पड़ सकता है।
इसमे कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अब पुराने नेताओं पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रहे हैं। खास तौर पर अंसन्तुष्ट नेताओं को लेकर तो वह किसी प्रकार की सहानुभूति दिखाने के कतई मूड में नहीं है। वैसे तो दोनों भाई बहन 2013 से पार्टी के सभी प्रमुख फैसले करते रहे हैं। एक तरह से पार्टी वही चला रहे हैं। लेकिन अब भाई बहन खुलकर सामने आ गए हैं। सोनिया गांधी कहने भर के लिये अध्य्क्ष हैं।
यही वजह है कि अब धीरे धीरे राहुल गांधी और पुराने अनुभव वाले नेताओं के बीच संवाद कम होता जा रहा है। गिनतीं के वरिष्ठ नेता हैं जिन पर राहुल का भरोसा बना हुआ है। इनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कमलनाथ, अंबिका सोनी और दिग्विजय सिंह आदि नेता बताए जाते हैं। राहुल अब अपने तरीके से कांग्रेस को चलाना चाहते हैं। केसी वेणुगोपाल, अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला को लेकर तमाम शिकायतें हो, तीनो नेता अपने राज्यों में कमजोर हों, राहुल कुछ भी सुनने को तैयार नही हैं।
अंसन्तुष्ट नेताओं की भी शिकायतें इन्हीं नेताओं को लेकर ज्यादा हैं। अमरेंद्र सिंह ने राहुल प्रियंका के साथ इन नेताओं को भी निशाने पर लिया। राहुल को लगता है कि पुराने नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ पर सीधे हमला करने से परहेज करते हैं। इसलिये अब वह ऐसी टीम तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जो उनके हिसाब से चले। इसलिये चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ओर कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी समेत आम आदमी पार्टी छोड़ चुके कई युवा नेता उम्मीद पाले हुए हैं कि तमाम विरोध के बाद भी राहुल अगर चाहेंगे तो कांग्रेस में उनकी इंट्री हो जायेगी।
आज के दिन कांग्रेस में जो स्थिति बन गई है पुराने नेता तो विरोध करने की स्थिति में है नहीं। राहुल की टीम अंदर आपस में इन युवा नेताओं का कितना भी विरोध कर लें, राहुल के सामने शायद ही हिम्मत कर पाएं। इसलिये इन नेताओं की कांग्रेस में इंट्री हुई तो फिर अमरेंद्र सिंह की नई पार्टी (Amrinder Set to form His Party) की तरफ अंसन्तुष्ट नेता तो रुख कर ही सकते हैं।
वैसे भी पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा समेत अधिकांश राज्यों में कांग्रेस में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। जिन सात राज्यों में अगले साल चुनाव होना है सब जगह कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नहीं है। पंजाब का झगड़ा निपटाने में लगे हरीश रावत उत्तराखण्ड में पार्टी की कश्ती को डुबोने से बचा पाएंगे, लगता नहीं है। क्योंकि पंजाब के बाद उत्तराखण्ड में हरीश रावत जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं उससे यही सन्देश जा रहा है कि कांग्रेस कहीं तीसरे नंबर पर न चली जाए। रावत ने उत्तराखण्ड में दलित को सीएम बनाने की वकालत कर पार्टी को परेशानी में डाल दिया है। राहुल गांधी की कठिन परीक्षा अगले साल होने वाले चुनाव में होनी है।
क्योंकि लगातार हार अभी तक उनके हिस्से में ज्यादा आई है। पंजाब जैसे राज्य में खेला गया दांव अगर उल्टा पड़ता है और बाकी 6 राज्यों में भी पार्टी की हार होती है तो फिर ऐसे में उनके सामने चुनोतियां बढ़ती ही जाएंगी। अगले साल पंजाब के साथ उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, मणिपुर है उसके बाद गुजरात और हिमाचल है। बिगड़े हालत में उन्हें सहयोगी दलों के नेताओ ने चुनौती देनी शुरू भी कर दी है।
यही वजह है कि अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी के साथ 20 अगस्त को सड़कों पर उतरने के फैसले के बाद भी 20 सितम्बर से मोदी सरकार के खिलाफ कहीं कोई आंदोलन शुरू होता नहीं दिखा। टीएमसी ने उल्टा अपनी नेत्री ममता बनर्जी को मोदी का विकल्प बता उत्तर भारत की राजनीति करने के संकेत दिए हैं। कांग्रेस और राहुल के लिये यह शुभ संकेत नही है। ममता का मुकाबला राहुल की टीम कर पायेगी इसको लेकर आशंका है।
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