Arunachal India China Border Dispute: कब्जा करने की नियत से भारतीय सीमा में घुसे चीनी सेना के सैनिकों के मंसूबे को भारतीय जवानों ने एक बार फिर धराशाई कर दिया।
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कब्जा करने की नियत से भारतीय सीमा में घुसे चीनी सेना के सैनिकों के मंसूबे को भारतीय जवानों ने एक बार फिर धराशाई कर दिया। बता दें कि गत 17 महीनों से अरुणाचल प्रदेश के तंगवा सेक्टर में हिंद की सेना और
चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध जारी था। जानकारी के अनुसार पिछले सप्ताह वीरवार को एक बार फिर चीनी सैनिकों ने देश की सीमा में घुसपैठ करने का दुस्साहस किया। जहां तवांग क्षेत्र के यांग्से में दुश्मन सेना ने एक
बार फिर से नियमों का उल्लघंन किया। जिसकी वजह से कई घंटे तक स्थिति तनावपूर्ण बनी रही। इसके बाद स्थानीय कमांडर्स के बीच चली बैठक में विवाद को सुलझा लिया।
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1962 में हुए दोनों के देशों के बीच युद्ध के बाद से ही कई बार टकराव की स्थिति बनती रही है। दोनों देशों के बीच पूर्वी सीमा को लेकर लद्दाख में होने वाली हाई-लेवल कंमाडर की बैठक आने वाले तीन चार दिनों में हो सकती है। इससे पहले ही पूर्वी सीमा पर इस तरह की घटना सामने आना चीनियों की मंशा का दर्शाता है। वहीं आमतौर पर देखने में आया है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी हिंदुस्तान की सीमा में घुसपैठ करती है तो भारतीय सैनिक इन्हें वापस खदेड़ देते आए हैं। सेना से जुड़े सूत्रों के अनुसार घंटों तक बनी तनाव की स्थिति से किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ है, और यह तनाव आपसी बातचीत के जरिए समाप्त कर दिया गया है।
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दुनिया की सबसे लंबी सीमा कही जाने वाली इंडो चाइना सीमा की दरअसल आज तक पूरी तरह से मैपिंग ही नहीं की गई। इन सब के बीच भारत मैकमोहन रेखा को वास्तविक सीमा मानता आया है, जबकि चाइना इससे मानने को तैयार ही नहीं है। 1962 में हुआ दोनों देशों के बीच युद्ध भी इसी को लेकर ही हुआ था। आज भी कई भारतीय क्षेत्रों पर लाल सेना का कब्जा है जो कि करीब 6 दशक हो चुके हैं। इनमें लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत कई जगह शामिल हैं। जहां तक चीन ने कब्जा किया हुआ है वहां तक की सीमा को एलएसी रेखा मानी जाती है।
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दोनों देशों के बीच हुए युद्ध के कई पहलू हैं। एक और जहां चीन भारतीय क्षेत्र में पड़ने वाली हिमालय की सीमा को लेकर विवाद खड़ा कर रहा था। वहीं दूसरी ओर साल 1959 के दौरान पड़ोसी देश तिब्बत में हुए विद्रोह के बाद धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण देना माना जाता है। सन 1962 में चीन ने लद्दाख के चुशूल में रेजांग-ला और अरुणाचल के त्वांग में भारतीय जमीनों पर विस्तारवादी नियत के चलते अवैध कब्जा करते हुए एक साथ एक साथ लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में आक्रमण कर दिया। 20 अक्टूबर 1962 को लगे इस युद्ध का अंत एक महीने बाद 20 नवंबर को हुआ। इस जंग में चीन को बशर्ते जीत मिली थी। लेकिन इस दौरान चीन को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा था। हालांकि उस समय भारत युद्ध के लिए कतई तैयार नहीं था।
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इसके बाद साल 1967 में दोनों सेनाओं के बीच टकराव तब हुआ, जब भारत ने नाथू ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर की मैपिंग करते हुए कार्रवाई कर डाली। यह सीमा समुद्रतल से करीब 14,200 फीट की ऊंचाई पर तिब्बत-सिक्किम सीमा पर पड़ती है। यहीं से होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा सड़क निकलती है। 1965 में भारत-पाकिस्तान की जंग के दौरान चीन ने भारत को नाथू ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने को कह दिया। तब भारत ने नाथू ला दर्रे पर कब्जा कायम रखते हुए जेलेप ला को खाली कर दिया था। तब से लेकर आज तक नाथू ला दोनों देशों के लिए विवाद का केंद्र बना हुआ है।
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यहां भारतीय सीमा पर चीन ने विरोध जताया था जिसके बाद फिर से टकराव हुआ और सेनाओं के बीच हाथापाई व टकराव की नौबत बन गई। इसके कुछ ही दिन बाद चीनियों ने मशीन गन से भारतीय सैनिकों पर हमला किया और भारत ने इसका जवाब बड़ी ही बहादूरी से दिया। कई दिनों तक चली इस लड़ाई में भारतीये जवानों ने अपनी पोस्ट बचाकर रखी। लेकिन इसके तीन सप्ताह बाद ही चीनी सेना ने फिर से भारतीय इलाके में घुसने की कोशिश की। उस समय हुए संघर्ष में एक तरफ जहां भारत के 80 जवान शहीद हुए अक्टूबर 1967 में सिक्किम तिब्बत बॉर्डर के चो ला के पास घटित हुई इस कार्रवाई में बौनी सेना के करीब 400 सैनिकों को वीरों ने मौत के घाट उतार दिया।
1967 में मिली हार चीन सेना को हजम नहीं हुई और एक बार फिर साल 1975 में ड्रेगन ने अरुणाचल के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला कर दिया। इस हमले में भारत के चार सुपूत शहीद हो गए। जिसका विरोध दर्ज करवाते हुए भारत ने कहा था कि चीन ने एलएसी के प्रहरियों पर हमला किया है। लेकिन चीन ने भारत के दावे को नकार दिया। इसी तरह साल 1987 में भारत-चीन के टकराव त्वांग के उत्तर में समदोरांग चू इलाके में हुआ। यहां भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में रुकी हुई थी। लेकिन एक वन बी टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये एरिया नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है। समदोरंग चू और नामका चू दोनों नाले नयामजंग चू नदी में गिरते हैं।
1985 के दौरान भारतीय सेना पूरी गर्मी मेंं तैनात रही। जब एक साल बाद फिर से गर्मियों में इंडियन आर्मी के जवान यहां पहुंचे तो चीनी सेना पहले ही यहां कब्जा जमाए बैठे थे। तब भारत ने चीन को अपनी हद में चले जाने को कहा लेकिन चीनी मानने को तैयार नहीं हुए। यहां भारतीय सेना ने मिशन फाल्कन चलाते हुए जवानों को विवादित जगह पर एयरलैंड करवाया। इस दौरान भारतीय वीरों ने हाथुंग ला पहाड़ी पर मोर्चा संभाल लिया। यहां से समदोई चू के अलावा अन्य तीन पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी। तब भारत ने लद्दाख से लेकर सिक्किम तक अपनी सेना की तैनाती कर दी, जिसके बाद स्थिति काबू में आई आई। तब जाकर कहीं दोनों देशों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ और गतिरोध पर विराम लगा। इसी तरह चार साल पहले 2017 में 75 दिनों तक टकराव की स्थिति बनी रही। यहां डोकलाम में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने डटी रहीं।
डोकलाम एक ऐसी जगह है जहां तीन देशों के सीमाओं का आमने सामने होती हैं। डोकलाम एक ऐसा विवादित पहाड़ी इलाका है, जिस पर चीन व भूटान अपना दावा जताते रहे हैं। डोकलाम पर भारत भूटान के दावे का समर्थन करता रहा है। 2017 के मध्य में जब चीनियों ने यहां सड़क बनाने का काम शुरू किया तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया। यहीं से डोकलाम को लेकर विवाद शुरू हुआ। जिसको लेकर भारत का कहना था कि चीन जो सड़क बनाना चाहता है। उससे देश की सुरक्षा को खतरा है। चीन की नजर डोकलाम के रास्ते सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर थी। इस दौरान कोई हिंसात्मक कोई घटना नहीं हुई लेकिन दोनों सेनाएं करीब 75 दिनों तक आमने सामने तैनात रही।
गत वर्ष गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच 10 महीने तनाव चलता रहा हालांकि हालात अब भी सामान्य नहीं हुए हैं। इसी जगह पर गत वर्ष मई जून के मध्य में न सिर्फ जबरदस्त टकरात हुआ बल्कि चीन ने 27 साल पहले हुए समझौते को भी तार-तार कर दिया। यहां कुछ मोर्चों पर गतिरोध बना रहा और करीब 45 सालों के बाद दोनों देशों के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ, जिसमें 20 जवान भारत के शहीद हुए थे तो वहीं चीनी सैनिकों के मरने की संख्या भी 40 के पार पहुंच गई थी। यहां भी कई दौर की बातचीत के 10 महीने बाद दोनों देशों के सेनाएं पीछे हटी थी। बैठक के दौरान इस बात पर सहमति बनी थी।
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