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India News (इंडिया न्यूज), Atul Subhash Suicide: बेंगलुरु के मंजूनाथ लेआउट में पड़ोसियों ने एक फ्लैट दरवाजा तोड़ा. अंदर उस घऱ में रह रहे नौजवान की लाश लटक रही थी. कमरे में एक तख्ती थी जिसपर लिखा था- ‘जस्टिस इज ड्यू’ यानी न्याय बाकी है. यह एक एआई इंजीनियर की खुदकुशी थी जो बिहार में समस्तीपुर का रहनेवाला था और उसकी शादी यूपी के जौनपुर में हुई थी. यह दर्दनाक घटना अतुल सुभाष की है, जिनके 24 पन्नों के सुसाइड नोट में पत्नी औऱ ससुरालवालों के साथ जौनपुर की जज का नाम भी लिखा हुआ है.
अतुल सुभाष के सुसाइड नोट ने देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम और कानूनी खामियों के चलते महिलाओं के हाथों पुरुषों के दमन-चक्र के सवाल को फिर से चर्चा में ला दिया है. दहेज उत्पीड़न औऱ महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामलों में पुलिस और अदालतों की सांठगांठ ऐसी हो गई है कि आदमी को अक्सर उससे मुक्ति का रास्ता नहीं सूझता. निचली अदालतों में वकीलों,दलालों और कथित तौर पर जजों का एक ऐसा नेक्सस है,जो महिला उत्पीड़न की आड़ में पुरुषों के दोहन औऱ शोषण का संस्थागत स्वरुप ले चुका है. अतुल सुभाष का सुसाइड नोट उस सिस्टम की पोल खोलता है, जिसमें पत्नी (महिला) औऱ उसका परिवार, पति (पुरुष) का आर्थिक-मानसिक उत्पीड़न करना अपना अधिकार समझता है और उसको थाना-कचहरी में संरक्षण मिलता है. इस संरक्षण के पीछे भी पुरुष-उत्पीड़न से ऐंठे गए पैसे की बंदरबांट बड़ी वजह है.
अतुल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि मेरी पत्नी ने केस सेटल करने के लिए पहले 1 करोड़ रुपए की डिमांड की, मगर बाद में उसने तीन करोड़ मांगना शुरु कर दिया. अतुल ने लिखा है कि जब 3 करोड़ रुपए की डिमांड के बारे में जौनपुर की फैमिली कोर्ट जज को बताया तो उन्होंने उनकी परेशानी समझने की बजाए,पत्नी का साथ दिया. अतुल ने जज को कहा कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो यानी NCRB की रिपोर्ट कहती है कि देश में बहुत सारे पुरुष झूठे केस की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं, तो पत्नी ने बीच में कहा कि तुम भी आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते हो. इस बात पर जज हंस पड़ी और पत्नी को बाहर जाने को कहा. फिर जज ने कहा कि ये केस झूठे ही होते हैं, तुम परिवार के बारे में सोचो और केस को सेटल करो. मैं 5 लाख रुपए लूंगी और केस सेटल करवा दूंगी. एक व्यक्ति जो अपना जीवन खत्म करने की सोच बैठा हो, उसका कारण सामान्य नहीं हो सकता. जज ने बहुत मुमकिन है कि ऐसा कहा हो जैसा अतुल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है. जब घर का कोई आदमी पुलिस औऱ अदालत के चक्करों में पिसता है तो उसके साथ समूचा परिवार भी परेशान होता है.
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अतुल को यह बात खाए जा रही थी कि ना सिर्फ वह बल्कि उसके चलते घऱवाले भी तकलीफ उठा रहे हैं. उसको ये लगने लगा था कि वह जो कमा रहा है कि उसका बड़ा हिस्सा पत्नी को कॉम्पनसेशन के तौर पर दे रहा है. उस पैसे से ना सिर्फ उसकी पत्नी और ससुरालवाले आराम से रह रहे हैं बल्कि उसके खिलाफ केस भी लड़ रहे हैं. इसलिए अगर बांस ही ना रहे तो फिर बांसुरी बज ही नहीं सकेगी. अगर वह अपनी जिंदगी खत्म कर लेता है तो सारा लफड़ा ही खत्म हो जाएगा. और उसने ऐसा किया. एक बेटा जिसको लेकर अतुल की तकलीफ औऱ चिंता दोनों सुसाइड नोट में साफ दिखती हैं, वह भी पुरुष उत्पीड़न का एक जरिया है. बेटे से नहीं मिलने देना. कोई संपर्क नहीं रहने देना. ऐसे कई मामले हम औऱ आप आसपास देखते हैं. अतुल सुभाष का सुसाइड पत्नी के हाथों पति के शोषण, दोहन और उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी संरक्षण नहीं होने के सवाल पर गंभीरता से विचार की मांग करता है. जो कानूनी प्रावधान हैं, उनमें सही स्थिति और कारणों को परखने की कोई व्यवस्था की जानी चाहिए. लंबे समय से इस सवाल पर चर्चा होती रही है लेकिन अभी तक कोई वाजिब रास्ता नहीं निकाला जा सका है.
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