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रामलला के गढ़ में कैसे हार गई बीजेपी? जानें समाजवादी पार्टी की रणनीति

PUBLISHED BY: Rajesh kumar • LAST UPDATED : June 5, 2024, 5:17 pm IST
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रामलला के गढ़ में कैसे हार गई बीजेपी? जानें समाजवादी पार्टी की रणनीति

रामलला के गढ़ में कैसे हार गई बीजेपी? जानें समाजवादी पार्टी की रणनीति

India News (इंडिया न्यूज), Lok Sabha Results: जहां रामलला का मंदिर है, वहीं से संविधान बदलने की हवा चलनी शुरू हुई थी। ये हवा बाद में आंधी में बदल गई। चुनाव में बीजेपी के कई बड़े चेहरे बह गए। इस बार अयोध्या में एक नारा काफी प्रचलित हुआ। न अयोध्या न काशी, इस बार अवधेश पासी। समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद दलितों में पासी जाति से आते हैं। उनके समर्थक पूरे चुनाव में ये नारा लगाते रहे। इस नारे के आगे बीजेपी के मंदिर की महिमा और ब्रांड मोदी का जादू नहीं चल पाया। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देशभर में हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोरने की योजना थी। लेकिन अयोध्या में बीजेपी का ये प्रयोग काम नहीं आया। अयोध्या यूपी की फैजाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा है। यहां अयोध्या नाम से एक विधानसभा सीट भी है।

फैजाबाद में बीजेपी क्यों और कैसे हारी?

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कराई थी। आरएसएस और बीजेपी ने मिलकर लाखों लोगों को मंदिर के दर्शन कराए। पीएम मोदी ने अयोध्या में रोड शो किया। वो दलित महिला मीरा मांझी के घर भी गए। इसे बड़ा राजनीतिक संदेश माना गया। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी यहां दो चुनावी रैलियां कीं। लेकिन रामलला की जन्मभूमि पर राम भक्तों की पार्टी बीजेपी चुनाव हार गई। पिछली बार समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच गठबंधन था। इसके बावजूद बीजेपी उम्मीदवार लल्लू सिंह 65 हजार वोटों से जीते थे। इस बार वे समाजवादी पार्टी से 54 हजार वोटों से हार गए। फैजाबाद में बीजेपी की हार सबसे बड़ी हार है।

बता दें कि पिछले कई दशकों से बीजेपी के लिए राम मंदिर मुद्दा रहा है। पार्टी के हर चुनावी घोषणापत्र में इसका जिक्र होता रहा है। लेकिन जब राम मंदिर बना तो पार्टी हार गई। फैजाबाद में अखिलेश ने किया बड़ा प्रयोग अखिलेश यादव ने फैजाबाद में बड़ा प्रयोग किया। उन्होंने सामान्य लोकसभा सीट पर दलित उम्मीदवार को मैदान में उतारा। उन्होंने मेरठ में भी ऐसा ही प्रयोग किया। लेकिन रामायण सीरियल के राम यानी अरुण गोविल चुनाव जीत गए। लेकिन लल्लू सिंह फैजाबाद में ही फंस गए। भगवान राम की कृपा ऐसी रही। अखिलेश यादव दो बार फैजाबाद में प्रचार करने आए। एक बार अवधेश प्रसाद का जिक्र करते हुए उन्हें पूर्व विधायक बता दिया। बाद में माइक संभालते हुए अखिलेश ने कहा कि आप सांसद बनने वाले हैं, इसलिए मैंने आपको ऐसा कहा था।

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टिकट देने के बाद अनुकूल सोशल इंजीनियरिंग

अवधेश प्रसाद को टिकट देने के बाद उनके अनुकूल सोशल इंजीनियरिंग की गई। आसपास की सभी सीटों पर अलग-अलग जातियों के नेताओं को टिकट दिया गया। अंबेडकर नगर से कुर्मी समुदाय के लालची वर्मा को मैदान में उतारा गया, जबकि सुल्तानपुर से निषाद समुदाय के नेता को टिकट मिला। वहीं फैजाबाद की पड़ोसी सीटों पर भाजपा ने ठाकुर और ब्राह्मण नेताओं को मैदान में उतारा। समाजवादी पार्टी के पास पहले से ही मुस्लिम और यादव वोट थे। इनमें कुर्मी-पटेल, निषाद और दलित वोट भी जुड़ गए। संविधान और आरक्षण बचाने के नाम पर मायावती का समर्थन करने वाले जाटव मतदाताओं ने भी समाजवादी पार्टी का साथ दिया। उन्हें लगा कि बसपा लड़ाई नहीं लड़ पा रही है, इसलिए वे भाजपा को हराने के लिए समाजवादी पार्टी के सहयोगी बन गए।

भूमि अधिग्रहण को लेकर लोगों में गुस्सा

फैजाबाद में दलित 26 प्रतिशत, मुस्लिम 14 प्रतिशत, कुर्मी 12 प्रतिशत, ब्राह्मण 12 प्रतिशत और यादव भी 12 प्रतिशत हैं। भाजपा उम्मीदवार लल्लू सिंह ठाकुर समुदाय से हैं। साल 2014 और 2019 में भी वे यहीं से सांसद रहे। लेकिन इस बार उनका काफी विरोध हुआ। पार्टी के लोग प्रत्याशी बदलने की मांग कर रहे थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अयोध्या में मंदिर निर्माण के बाद विकास के काफी काम हुए। लेकिन स्थानीय लोगों में जमीन अधिग्रहण को लेकर काफी गुस्सा है। उन्हें लगता है कि मुआवजे के बदले उनके साथ धोखा हुआ। स्थानीय सामाजिक समीकरण और बीजेपी प्रत्याशी की एंटी इनकंबेंसी ने रामलला के घर में समाजवादी पार्टी का झंडा फहरा दिया।

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