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अजीत मेंदोला, नई दिल्ली:
Rajasthan BJP में चल रहा घमासान आने वाले दिनों में आलाकमान की परेशानी बढ़ा सकता है। घमासान कम होने के बजाए लगातार बढ़ता ही जा रहा है। स्थिति यह हो गई कि प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह को जयपुर पहुंच बार बार दखल देना पड़ रहा है। पार्टी पूरी तरह से अभी तो दो गुटों में बंटी हुई दिखाई दे रही है, लेकिन जिस तरह से राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के नेता उभर रहे हैं तो दूसरे राज्यों की तरह राजस्थान में भी गुटों की संख्या बढ़ सकती है। बीजेपी आलाकमान राजस्थान के नेताओं पर ज्यादा भरोसा कर उन्हें बड़ी जिम्मेदारियां देता रहा है। हाल में केंद्र में मंत्री बने भूपेंद्र यादव तो लगातार संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते रहे हैं। विधानसभा चुनाव के समय बिहार जैसे राज्य के प्रमुख रणनीतिकार यादव ही थे। अब उन्हें मणिपुर जैसे राज्य की जिम्मेदारी दी गई है। इसी तरह केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह को पंजाब जैसे राज्य दिया गया। बीजेपी पहली बार वहां पर अकेले चुनाव लड़ेगी। राजस्थान के ही एक ओर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल को उत्तर प्रदेश में धर्मेंद्र प्रधान की अगुवाई में जिम्मेदारी दी गई है। दिल्ली में इन तीनों नेताओं का कद लगातार बढ़ता रहा है।जहां तक राज्य की राजनीति का सवाल है तो भूपेंद्र यादव और अर्जुन मेघवाल अभी सीधे तौर पर गुटबाजी से दूर है।
शेखावत कहीं न कहीं राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं और मौजूदा प्रदेश की टीम उनकी करीबी मानी जाती है। प्रदेश की मौजूदा टीम से सीधा टकराव बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के समर्थकों से है। इस टकराव को लंबा समय हो गया है, लेकिन जिस तरह समर्थक नेता खुल कर सामने आ रहे हैं उसने आलाकमान की चिंता बढ़ाई है। पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल जो कई पदों में रह चुके हैं उनके एक पत्र ने प्रदेश बीजेपी की राजनीति को गर्मा दिया। उन्होंने पार्टी के ही दूसरे वरिष्ठ नेता गुलाब चंद कटारिया पर गंभीर आरोप लगा उन्हें प्रतिपक्ष के नेता पद से हटाने की मांग कर डाली। इसका असर दिल्ली तक हुआ। राष्ट्रीय अध्य्क्ष जेपी नड्डा ने तुरंत प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह को जयपुर भेज मामले को शांत कराने को कहा। अरुण सिंह ने दखल दे जैसे तैसे फिलहाल मामला शांत जरूर करवा दिया। मेघवाल भी चुप हो गए, लेकिन बात खत्म नहीं हुई है। बीजेपी के लिए यह स्थिति तब ओर चिंताजनक हो जाती है जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो। सरकार को घेरने के बजाए विपक्ष आपस मे ही उलझ जाता है। इससे पूर्व भी कई बार ऐसी स्थिति बनी कि बीजेपी वाले ही आपस मे भिड़ गए।
खुद गुटों में बंटी कांग्रेस को बीजेपी पर तंज कसने का मौका मिल जाता है। पंचायत चुनाव में भी गुटबाजी खुल कर देखी गई। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही गुटबाजी का शिकार हुए। दरअसल बीजेपी में झगड़ा 2018 के विधानसभा चुनाव के समय शुरू हुआ। चुनाव हारने के बाद बीजेपी आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को साइड करने की कोशिशें शुरू कर दी। बात यहां तक रहती ठीक थी, लेकिन दिल्ली से समर्थन मिलने के बाद मौजूदा प्रदेश की टीम ने पहले वसुंधरा राजे को फिर उनके समर्थकों को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। बात दिल्ली तक पहुंची। उसका कोई असर नहीं पड़ा। राजे समर्थक भी खुलकर सामने आ गए। कैलाश मेघवाल का कटारिया पर किया गया लेटर बम का हमला उसी का परिणाम था। यही नहीं एक ओर समर्थक रोहिताश शर्मा जिन्हें पार्टी ने 6 साल के लिए निष्कासित किया हुआ है जल्द वसुंधरा के समर्थन में जनजागरण अभियान चलाएंगे। आने वाले दिनों में प्रदेश बीजेपी की राजनीति और गर्माएगी। जानकारों का मानना है कि आलाकमान के लिए वसुंधरा राजे को प्रदेश की राजनीति से अलग करना मुश्किल होगा। क्योंकि वह एक मात्र ऐसी नेता हैं जिनका पूरे प्रदेश में जनाधार है। वहीं दूसरी तरफ जानकार यह भी मानते हैं कि अगले साल होने वाले राज्यों के चुनाव परिणाम ओर खासतौर पर यूपी का रिजल्ट राजस्थान और मध्यप्रदेश की राजनीति पर असर डाल सकता है। बीजेपी ने यूपी में 2017 का परिणाम दोहराया तो फिर असलाकमान दोनों राज्यों में बड़े प्रयोग कर सकता है।
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