Simone Tata Death: देश की सबसे प्रतिष्ठित बिजनेसवुमन और लैक्मे कॉस्मेटिक्स की को-फाउंडर सिमोन टाटा का 95 साल की उम्र में निधन हो गया है. उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली. उनके निधन से भारतीय व्यापार में शोक की लहर है. तो वहीं, सिमोन टाटा, टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा की मां और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा की सौतेली मां थीं. वह काफी समय से अस्वस्थ थीं और दुबई के किंग्स अस्पताल में उनका इलाज भी चल रहा था.
कौन थीं सिमोन टाटा?
सिमोन टाटा, टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा की मां और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा की सौतेली मां और नोएल टाटा की मां थीं.सिमोन टाटा को लैक्मे को भारत का आइकॉनिक ब्यूटी ब्रांड बनाने की शुरुआत कर भारतीय रिटेल सेक्टर में क्रांति लाने के लिए ही जाना जाता है. जिनेवा से टाटा ने साल1955 में नवल एच. टाटा से शादी के बाद वह भारत में ही बस गईं थी. इसके बाद उन्होंने साल 1961में लैक्मे की मैनेजिंग डायरेक्टर और 1982 में चेयरपर्सन बनकर उसका नेतृत्व भी किया था. और फिर साल 1996 में लैक्मे को बेचने के बाद प्राप्त फंड से उन्होंने वेस्टसाइड की शुरुआत की थी. इन सबके अलावा वह सामाजिक कार्यों में भी अपना योगदान करना पसंद करतीं थीं.
टाटा ग्रुप ने दी अंतिम विदाई
सिमोन टाटा के निधन के बाद, टाटा ग्रुप ने एक आधिकारिक बयान जारी कर उनकी उपलब्धियों को याद किया है. उन्हें कोलाबा स्थित कैथेड्रल ऑफ द होली नेम चर्च में उन्हें अंतिम विदाई दी है. तो वहीं, ग्रुप ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सिमोन टाटा ने न सिर्फ लैक्मे को भारत का एक आइकॉनिक ब्यूटी ब्रांड बनाया, बल्कि वेस्टसाइड (Westside) की शुरुआत करके भारतीय रिटेल सेक्टर को भी एक नई दिशा दी. उनके परिवार में बेटे नोएल टाटा, बहू आलू मिस्त्री, और उनके पोते-पोतियां नेविल, माया और लिआ शामिल हैं.
1 लाख करोड़ का कारोबार किया खड़ा
सिमोन टाटा का जीवन स्विट्जरलैंड के जिनेवा से शुरू होकर भारतीय व्यापार जगत के शिखर तक पहुंचा. जिनेवा विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह साल 1950 के दशक में पहली बार भारत आईं. भारत में उनकी मुलाकात उद्योगपति नवल एच. टाटा से हुई, जो रतन टाटा के पिता थे, फिर इसके बाद साल 1955 में दोनों ने एक दूसरे शादी कर ली और सिमोन टाटा ने मुंबई को ही अपना आशियाना बना लिया.
इस बात से बेहद ही अंजान कि आगे चलकर वह भारतीय बिजनेस इतिहास का ऐसा बड़ा नाम बनेंगी जो एक लाख करोड़ रुपये के व्यापारिक साम्राज्य को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
लैक्मे को शून्य से शिखत पहुंचाने में उनका हाथ
सिमोन टाटा की व्यापारिक यात्रा की शुरुआत साल 1960 के दशक की शुरुआत में हुई, जब उन्होंने लैक्मे के बोर्ड में अपना पहला कदम रखा था. उस समय, लैक्मे टाटा ऑयल मिल्स की एक छोटी-सी सब्सिडियरी हुआ करती थी, जिसे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आदेश के बाद ही शुरू किया गया था, ताकि भारतीय महिलाओं को कॉस्मेटिक्स के लिए विदेशी मुद्रा बाहर भेजने की किसी भी तरह से ज़रूरत ही नहीं पड़े. साल 1961 में, उन्हें मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया और फिर साल 1982 में वह आखिरकार चेयरपर्सन बन गईं.
भारतीय रिटेल में ‘वेस्टसाइड’ की क्रांति को दी नई दिशा
सिमोन टाटा की दूरदर्शिता का एक और बड़ा प्रमाण साल 1990 के दशक में सामने आया, जब टाटा ग्रुप ने लैक्मे को हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड (HUL) को एक रणनीतिक कदम के तहत बेच दिया था. लैक्मे की बिक्री से प्राप्त फंड का इस्तेमाल करते हुए टाटा ग्रुप ने ट्रेंट (Trent) नाम की एक नई कंपनी की शुरुआत की थी.
इसी ट्रेंट कंपनी के तहत, वेस्टसाइड (Westside) की शुरुआत की गई, जो आज वेस्टसाइड भारत के सबसे सफल और भरोसेमंद फैशन रिटेल ब्रांडों में से एक माना जाता है. सिमोन टाटा का यह कदम रिटेल की दुनिया में एक एतिहासिक कदम था, जिसने टाटा ग्रुप के व्यापार को भारत में रिटेल (Organized Retail) को पूरी तरह से मजबूत करने का काम किया.
समाजसेवा में सिमोन टाटा की देखने को मिली भागीदारी
सिमोन टाटा की पहचान सिर्फ एक सफल व्यवसायी तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि समाजसेवा और कला के क्षेत्र में भी वह पहले से बेहद ही सक्रिय थीं. वह सर रतन टाटा इंस्टीट्यूट की चेयरपर्सन भी थीं. उन्होंने चिल्ड्रन ऑफ द वर्ल्ड इंडिया (CWI) समेत कई सामाजिक संस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से काम भी किया. इसके अलावा वह इंडिया फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स (IFA) की ट्रस्टी भी रहीं, जहां उन्होंने भारतीय कला और शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान भी दिया था.
सिमोन टाटा एक ऐसी बिजनेस लीडर थीं जिन्होंने अपने व्यापारिक दूरदर्शिता और सामाजिक संवेदनशीलता से भारतीय व्यापार जगत पर एक गहरी छाप छोड़ दी थी.