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India News(इंडिया न्यूज), Centre Opposes Criminalisation Of Marital Rape: केंद्र ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया है, बलात्कार पर मौजूदा कानूनों का समर्थन करते हुए, जो पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के लिए अपवाद बनाता है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपने जवाब में केंद्र ने तर्क दिया कि वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा कानूनी से ज्यादा एक सामाजिक चिंता का विषय है और कोई भी निर्णय लेने से पहले विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श की आवश्यकता है। केंद्र ने तर्क दिया कि भारत में विवाह को पारस्परिक दायित्वों की संस्था माना जाता है, जहाँ प्रतिज्ञाओं को अपरिवर्तनीय माना जाता है। इसने कहा कि जबकि विवाह के भीतर महिलाओं की सहमति वैधानिक रूप से संरक्षित है, इसे नियंत्रित करने वाले दंडात्मक प्रावधान अलग हैं।
केंद्र सरकार ने इसको लेकर तर्क दिया कि वैवाहिक दुर्व्यवहार के पीड़ितों के लिए मौजूदा क़ानूनों के तहत पहले से ही पर्याप्त कानूनी उपाय मौजूद हैं, और अपवाद को खत्म करने से विवाह संस्था अस्थिर हो सकती है। हम आपको बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता पर दिल्ली उच्च न्यायालय के विभाजित फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा है, जो पतियों को विवाह के भीतर बलात्कार के आरोप से छूट देता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक विभाजित फैसला सुनाया था, जिसमें न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित किया था, जबकि न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने इसे बरकरार रखा था।
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सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें अपनी पत्नी पर यौन हमला करने और उसे सेक्स स्लेव के रूप में रखने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था। कार्यकर्ता रूथ मनोरमा सहित याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि वैवाहिक बलात्कार अपवाद महिलाओं की सहमति, शारीरिक स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे हटाने की मांग की गई है। हालांकि, केंद्र इस बात पर जोर देता है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने का कोई भी निर्णय न्यायपालिका द्वारा नहीं, बल्कि विधायिका द्वारा किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके दूरगामी सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।
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