India News (इंडिया न्यूज़), Chandrayan-3: भारत का ऐतिहासिक मिशन चंद्रयान-3 लगातार एक के बाद एक अपने कदमों पर सफलता प्राप्त करता हुआ लक्ष्य की ओर अग्रसर है। इस क्रम में चंद्रयान ने पृथ्वी के बहारी पांचवे आर्विट का चक्कर पूरा किया, और यान में इसरो के द्रवारा थ्रस्टर्स और फायरिंग की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक करते हुएट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित कर दिया कर दिया गया। बता दे कि चंद्रयान-3 को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित करने के लिए फायरिंग की प्रक्रिया आज मध्यरात्री करीब 12:00 बजे से 12: 30 बजे तक की गई। इस दौरान चंद्रयान के इंजनों को करीब 20 मिनट तक ऑन रखा गया।
वहीं अब चंद्रयान-3 का अगला पड़ाव चंद्रमा के आर्विट में स्थापित होना रहेगा। इसरों की माने तो चंद्रयान 5 अगस्त तक चंद्रमा के आर्विट स्थापित कर दिया जाएगा। इस ऑर्विटल की चंद्रमा से दूरी करीब 11 हजार किलोमीटर के आसपास रहेगी। गौरतलब है कि चंद्रमा के आस-पास करीब पांच आर्विट रहेगे, जिसमें सबसे कम दूरी का आर्बिट 100 किलोमीटर का रहेगा।
चंद्रयान- 3 के लिए पृथ्वी का सबसे निकटम बिंदू (Perigee) और सबसे अधिक दूर बिंदू (Apogee) होता है। पृथ्वी के सबसे निकटतम बिंदू (Perigee) से ही इसरों थ्रस्टर्स और फायरिंग की प्रक्रिया करता है। इस दौरान थ्रस्टर्स की प्रक्रिया से चंद्रयान-3 की रफ्तार बढ़ाई जाती है। गौरतलब है कि इस बिंदू पर आकर धर्ती के ग्रविटि के कारण चंद्रयान की रफ्तार बहारी बिंदू (Apogee) तुलना का काफी अधिक होता है। धर्ती के सबसे करीबी बिंदू पर चंद्रयान की गति 10.3 किमी/सेकंड से अधित की रफ्तार पकड़ लेती है। वहीं बहारी बिंदू तक पहुंते-पहुंचे ये रफ्तार घटकर 1 किमी/सेकंड के करीब तक पहुंच जाती है। यहीं बजह है कि पृथ्वी के निकटतम बिंदू की तेज गति में फारिंग करते हुए रफ्तार को और अधिक बढ़या जाता है, जिस्से यान को अपनी अगले आर्बिट पर पहुंचने में मदद मिलती है। इसके अलावा थ्रस्टर्स में फायरिंग की मदद से चंद्रयान का चंद्रमा के परिपेक्ष कोण बदलने में भी सहायता प्राप्त होती है।
चंद्रयान-3 को 14 जूलाई को श्री हरिकोटा से लॉच किया गया था। चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर पहुंचने में करीब 45 दिनों लगेंगे। इसरो के द्वारा दी गई जानकारी के हिसाब से चंद्रयान-3 23 अप्रैल तक चंद्रमा के जमीन पर अपनी लैंडिंग पूरी कर सकता है। इस दौरान चंद्रयान- चंद्रमा के साउथ पोल में उतरेगा। इससे पहले इसरो ने चंद्रयान-1 की 2008 में चंद्रमा के इसी क्षेत्र में एक ऑबजेक्ट के द्वारा हार्ड लैंडिंग करते हुए, चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज करने में सफलता हासिल की थी।
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