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Chandrayan-3: जानिए कब और कैसे होगी ट्रांस-लूनर इंजेक्शन के लिए चंद्रयान-3 की थ्रस्टर्स और फायरिंग प्रक्रिया

Mudit Goswami • LAST UPDATED : July 31, 2023, 8:48 pm IST
Chandrayan-3: जानिए कब और कैसे होगी ट्रांस-लूनर इंजेक्शन के लिए चंद्रयान-3 की थ्रस्टर्स और फायरिंग प्रक्रिया

Chandrayan-3:

India News (इंडिया न्यूज़), Chandrayan-3: भारत का ऐतिहासिक मिशन चंद्रयान-3 लगातार अपने रास्ते पर सेक्सेफूली अग्रसर है। माना जा रहा है कि चंद्रयान-3 यान 6 दिन के भीतर चंद्रामा के आर्बिट में चला जाएगा। इस वक्त चंद्रयान-3 पृथ्वी के बहारी 5 आर्बिट में है। वहीं इसरो (ISRO) ने चंद्रयान-3 को पृथ्वी की कक्षा से चंद्रमा की कक्षा में भेजने के लिए 1 अगस्त को  मध्यरात्री 12:01 बजे के बीच उसके थ्रस्टर्स को चालू करने का प्लान कर रहा है।

चंद्रयान-3 इस बार जैसे ही पृथ्वी का अपना 5वा चक्कर पूरा करते हुए पृथ्वी के निकटतम बिंदू की और आएगा। वैसे ही इस थ्रस्टर्स की प्रक्रिया स्टार्ट करके इसे ट्रांस-लूनर इंजेक्शन (Trans-Lunar Injection-TLI) के पाथ पर ले जाया जाएगा। बता दें कि इस प्रक्रिया को पूरा होने में 28 से 31 मिनट के बीच का समय लगने की उम्मीद है।

 

(Perigee) बिंदू में की जाती है थ्रस्टर्स और फायरिंग की प्रक्रिया

चंद्रयान- 3 के लिए पृथ्वी का सबसे निकटम बिंदू (Perigee) और सबसे अधिक दूर बिंदू (Apogee) होता है। पृथ्वी के सबसे निकटतम बिंदू (Perigee) से ही इसरों थ्रस्टर्स और फायरिंग की प्रक्रिया करता है। इस दौरान थ्रस्टर्स की प्रक्रिया से चंद्रयान-3 की रफ्तार बढ़ाई जाती है। गौरतलब है कि इस बिंदू पर आकर धर्ती के ग्रविटि के कारण चंद्रयान की रफ्तार बहारी बिंदू (Apogee) तुलना का काफी अधिक होता है। धर्ती के सबसे करीबी बिंदू पर चंद्रयान की गति 10.3 किमी/सेकंड से अधित की रफ्तार पकड़ लेती है। वहीं बहारी बिंदू तक पहुंते-पहुंचे ये रफ्तार घटकर 1 किमी/सेकंड के करीब तक पहुंच जाती है। यहीं बजह है कि पृथ्वी के निकटतम बिंदू की तेज गति में फारिंग करते हुए रफ्तार को और अधिक बढ़या जाता है, जिस्से यान को अपनी अगले आर्बिट पर पहुंचने में मदद मिलती है। इसके अलावा थ्रस्टर्स में फायरिंग की मदद से चंद्रयान का चंद्रमा के परिपेक्ष कोण बदलने में भी सहायता प्राप्त होती है।

23 अप्रेल हो होगी लैंडिंग

इसरो के द्वारा दी गई जानकारी के हिसाब से चंद्रयान-3  23 अप्रैल तक चंद्रमा के जमीन पर अपनी लैंडिंग पूरी कर सकता है। इस दौरान चंद्रयान- चंद्रमा के साउथ पोल में उतरेगा। इससे पहले इसरो ने चंद्रयान-1 की 2008 में चंद्रमा के इसी क्षेत्र में  एक ऑबजेक्ट के द्वारा हार्ड लैंडिंग करते हुए, चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज करने में सफलता हासिल की थी।

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