China Controversy सूर्योदय की स्थली को अपना बताता है चीन? जबकि है भारत का हिस्सा

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:

भारत के सबसे सुदूर पूर्वोत्तर के राज्य अरुणाचल प्रदेश की उप राष्ट्रपति वेंकैया
China Controversy  नायडू की हाल ही की यात्रा से चीन बौखलाया है। सदियों से हमारा अभिन्न अंग रहे अरुणाचल प्रदेश को वह अपना होने का दावा करता है। खैर आज हम चीन के इस कुतर्क का जवाब नहीं दे रहे हैं। बल्कि हम देश के सबसे खूबसूरत प्रदेशों में शामिल इस भू-भाग के बारे में आपके साथ कुछ रोचक जानकारियां साझा कर रहे हैं।

अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है जिसके पश्चिम में भूटान, उत्तर में चीन का स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत, दक्षिण और दक्षिण पूर्व में म्यांमार और नागालैंड है। इसके दक्षिण और दक्षिण पश्चिम में असम है। अरुणाचल प्रदेश, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है। अरुण यानी सूर्य की धरती। अरुणाचल का शाब्दिक अर्थ है सूर्योदय की धरती। यह सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप का क्षेत्र रहा है। महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में भी इस क्षेत्र की चर्चा मिलती है।

नॉर्थ इस्ट फ्रंटियर एजेंसी (China Controversy )

ब्रिटिश काल से इस इलाके को नॉर्थ इस्ट फ्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था। यह असम का हिस्सा रहा। वर्ष 1972 में इसे एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और फिर 1987 में इसे एक पूर्ण भारतीय राज्य बनाया गया। इस राज्य का क्षेत्रफल 83,743 वर्ग किमी है। इसकी आबादी करीब 14 लाख है।

अरुणाचल का इतिहास (China Controversy )

वर्ष 1912-13 में ब्रिटिश भारत की सरकार ने देश पूर्वोत्तर में हिमालय की पहाड़ियों पर रहे मूल वाशिंदों के साथ एक समझौता किया। इसी समझौते के आधार पर उसने पश्चिम में बालिपारा फ्रंटियर ट्रैक, पूरब में साडिया फ्रंटियर ट्रैक और दक्षिण में अबोर व मिशमी हिल्स और तिरप फ्रंटियर ट्रैक की स्थापना की। इन सभी ट्रैकों को मिलाकर ही नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी बनाया गया, जो अब अरुणाचल प्रदेश है।

मैकमोहन लाइन (China Controversy )

उसी वक्त इस भू-भाग के उत्तरी सीमा को तय किया गया था और उसे मैकमोहन लाइन नाम दिया गया था। यह लाइन 885 किमी लंबी है और इसी को लेकर भारत और चीन के बीच विवाद है। चीन इस लाइन को स्वीकार नहीं करता है।
दरअसल, इस लाइन का नाम उस वक्त भारतीय विदेश विभाग में सचिव रहे सर हेनरी मैकमोहन के नाम पर पड़ा। वह शिमला में 1912-13 में आयोजित एक सम्मेलन में ग्रेट ब्रिटेन के प्रतिनिधि थे। यह सम्मेलन तिब्बत के साथ समलों को सुलझाने और एक फ्रंटियर की स्थापना के लिए आयोजित हुआ था।

ब्रिटिश काल तक दोनों क्षेत्रों के बीच यह लाइन भौगोलिक, जातिय और प्रशासनिक सीमा रूप में स्वीकार्य रही। इस सम्मेलन में ब्रिटेन, चीन और तिब्बत प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ये सभी तिब्बत और पूर्वोत्तर भारत के बीच एक फ्रंटियर बनाने पर सहमत हुए लेकिन बैठक के दो दिन बाद ही उस वक्त की चीन की सरकार ने समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।

पूरे पूर्वोत्तर पर चीन ने किया दावा (China Controversy )

वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद चीन ने असम के पूरे पहाड़ी इलाके पर दावा किया। उसका कहना है कि चीन ने कभी भी मैकमोहन लाइन को स्वीकार नहीं किया। उसका कहना है कि ब्रिटिश विस्तारवादी नीति के कारण इस इलाके पर उसका कब्जा रहा।

चीन के नक्शे में दिखा अरुणाचल (China Controversy )

इस विवाद को लेकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री झोऊ इनलाई के बीच इस मुद्दे पर खूब चिट्ठियां लिखी गईं। इन चिट्ठियों में चीन ने वर्ष 1929 का एक नक्शा दिखाया जिसमें इस क्षेत्र को चीन का इलाका दिखाया गया था। लेकिन 1935 से पहले के कुछ अन्य नक्शों में इसे भारत का हिस्सा दिखाया गया है।

इससे पहले 1883 के सर्वे आफ इंडिया में इस इलाके को एक विवादित इलाका बताया गया है, जिसका प्रशासन ब्रिटिश इंडिया चलाता है। इतना ही भारत और ब्रिटेन के मानचित्रों ने 1914 से ही मैकमोहन लाइन जिक्र है।

(China Controversy)

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Mukta

Sub-Editor at India News, 7 years work experience in punjab kesari as a sub editor, I love my work and like to work honestly

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